HC: गोमुख ग्लेशियर में झील के मसले पर फिर सरकार से मांगा जवाब
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गोमुख पर बन रही झील के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सरकार से 16 फरवरी तक जवाब पेश करने का कहा है।
नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गोमुख पर बन रही झील के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सरकार से 16 फरवरी तक जवाब पेश करने का कहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि गोमुख ग्लेशियर 30 किमी दायरे में फैला हुआ है वह गुरुवार (11 जनवरी) को घटकर 22 किमी रह गया है। जुलाई 2017 में वहां भू-स्खलन से बहुत मात्रा में मलबा जमा हो गया है। जिससे वहां झील बनने की पूर्ण संभावना बन गई है, जिससे केदारनाथ जैसी आपदा होने की संभावना बन गई है।
मामले के अनुसार, दिल्ली निवासी अजय गौतम नामक याचिकाकर्ता का कहना है कि गोमुख पर एक कृत्रिम झील बन रही है, जिसकी लंबाई डेढ़ किमी है। इसकी पुष्टि इसरो द्वारा सैटलाईट द्वारा खींची तस्वीर से हुई है। इसी पर कोर्ट ने सरकार से जवाब पेश करने को कहा था। जवाब में सरकार ने कोर्ट को अवगत कराया कि वहां पर इस तरह की कोई झील नहीं है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि सरकार अदालत को गुमराह कर रही है।
जहां सरकार झील नहीं होने का दावा कर रही है। वहीं अपने शपथपत्र में इसरो द्वारा लिए गए फोटोग्राफ को पेश कर रही है। फोटोग्राफ से साफ जाहिर हो रहा है कि वहां पर झील बन रही है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि सरकार व इसरो के कथनों में विरोधाभास है। इस प्रकरण पर सही क्या है और गलत क्या है इस पर केंद्र व राज्य सरकार की एक कमेटी गठित की जानी चाहिए। याचिकाकर्ता ने अदालत से यह भी प्रार्थना की है कि गौमुख से मलुवा बोल्डर को वैज्ञानिक तरीके से हटाया जाए। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ और न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को आदेशित किया है कि वह याचिकाकर्ता के शपथ पत्र पर 16 फरवरी तक अपना जवाब दे। मामले की अगली सुनवाई 16 फरवरी को होनी है।
क्या कहती है रिपोर्ट
जुलाई 2017 में वहां हुए भूस्खलन से बहुत मात्रा में मलबा जमा हो गया है, जिससे वहां झील बनने की पूर्ण संभावना है और केदारनाथ जैसी आपदा आने की संभावना है। इसकी चेतावनी केंद्र व राज्य की नौ जांच एजेंसियां सरकार को दे चुकी हैं, परंतु सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। रिपोर्ट किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकती है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के कारण गंगा के उद्गम स्थल गोमुख को गंभीर खतरा पहुंच सकता है। समुद्र तल से 13,200 फीट ऊंचाई पर स्थित गोमुख से ही भागीरथी नदी निकलती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि गोमुख से निकलने वादी नदी की धारा की दिशा बदल रही है। गोमुख एक हिमनद (ग्लेशियर) है और पहले इससे सीधे-सीधे भागीरथी निकलती थीं लेकिन अब इसके बाएं तरफ से निकल रही हैं। कहा जा रहा है कि गोमुख में एक झील बन गयी है जिसकी वजह से ये परिवर्तन आया है।
अहमदाबाद स्थित फीजिकल रिसर्च लैब्रोटरी (पीएएल) के वरिष्ठ वैज्ञानिक नवीन जुयाल का कहना है कि इस झील के कारण गंगा लगातार बदली हुई दिशा में बह रही हैं। इसका अंतिम परिणाम गोमुख के नष्ट होने के रूप में हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार गोमुख से निकलने वाली एक धारा भारी बारिश के कारण संभवतः अवरुद्ध हो गयी है। वहीं गोमुख में मौजूद भारी कचरे के धारा के प्रवाह में बहने का भी खतरा है।
वैज्ञानिकों को आशंका है कि अगर हिमनद इसी तरह पिघलता रहा और पानी का बहाव जारी रहा तो गोमुख को खत्म हो सकता है। नवीन उन 61 वैज्ञानिकों की टीम में शामिल थे जिन्होंने 11 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक इस इलाके का मुआयना किया था।
नवीन जुयाल का कहना है कि हिमनद स्थायी नहीं होते और उनमें भ्रंश होते रहते हैं। हिमनद में बर्फ से ढंके क्षेत्र के अंदर भी गति होती रहती है जिससे वो आगे की तरफ बढ़ता है। बर्फबारी कम होने से हिमनद पिघलने लगते हैं। हिमालय में सैलानियों के छोड़े कचड़े और अन्य प्रकार के मलबे पिछले कुछ समय से पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय रहे हैं। पीएम मोदी ने हाल ही में हिमालय पर सैलानियों के छोड़े कचरे को हटाने का जिम्मा भारतीय सेना को दिया था।