Joshimath Sinking Reason: क्या NTPC प्रोजेक्ट की वजह से जोशीमठ में हो रहा भू-धंसाव?

Joshimath Sinking Reason: जोशीमठ में सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में एनटीपीसी पावर प्रोजेक्ट के टनल में चलने वाला काम है। सवाल उठता है कि क्या NTPC के प्रोजेक्ट की वजह से जमीन धंस रही है।

Written By :  aman
Update:2023-01-11 07:20 IST

जोशीमठ में NTPC प्रोजेक्ट (Social Media)

Joshimath Sinking Reason: उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath Sinking) में सैड़कों घरों में दरारें आई हैं। पुष्कर सिंह धामी सरकार राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई है। वहां रहने वाले लोग परेशान हैं। अपने जीवन को लेकर फिक्रमंद हैं। मेहनत से बनाए घर को लेकर चिंतित हैं। बीते 5 जनवरी को नेशनल थर्मल पावर प्लांट (NTPC) की 4×130 मेगावाट तपोवन विष्णुगढ़ हाइडल परियोजना (Tapovan Vishnugad hydel project) के खिलाफ स्थानीय लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। इस विरोध-प्रदर्शन के बाद यहां काम बंद कर दिया गया। जोशीमठ के लोगों का मानना है कि NTPC के इसी प्रोजेक्ट के कारण जोशीमठ में जमीन धंसने लगी है। जबकि, एनटीपीसी ने इन सभी आरोपों का खंडन करती रही है। 

जोशीमठ में 9 वार्ड के 678 मकानों को अब तक चिन्हित किया गया है। इनमें दरारें आ गई है। सुरक्षा के नजरिये से ऐसे भवनों में रहना मौत को दावत देने के समान है। दो होटलों को भी आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत बंद किया गया है। 16 जगहों पर अब तक कुल 81 परिवार ही विस्थापित किए जा सके हैं। जोशीमठ में उत्तराखंड सरकार का दावा है कि अब तक 19 जगहों पर 213 कमरे में 1,191 लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। मगर, जोशीमठ की जनता को 'स्थापित से विस्थापित' होने का दर्द झेलना पड़ रहा है। 

आखिर क्यों धंस रहा जोशीमठ?

सवाल अब ये उठता है कि आखिर जोशीमठ क्यों धंस रहा है? इसका जवाब पर्यावरणविद अतुल सती ने मीडिया को दिया। उन्होंने बताया, कि 1970-71 की बाढ़ के बाद जोशीमठ में भूस्खलन (landslide in joshimath) की घटनाएं बढ़ने लगी। तब उत्तराखंड अलग राज्य नहीं था। बल्कि ये यूपी का ही हिस्सा था। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। उस समय गढ़वाल (Garhwal) के कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में भूगर्भीय अध्ययन (Geological Studies) के लिए एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने अध्ययन में पाया कि जोशीमठ ग्लेशियर (Glacier) द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा है। लिहाजा ये बहुत अधिक मजबूत चट्टान नहीं है। ये भूस्खलन वाला क्षेत्र ही है। उस वक्त ये कहा गया था कि यदि जोशीमठ को स्थाई रखना है, तो जोशीमठ में चट्टानों के साथ छेड़छाड़ न की जाए। जोशीमठ में भारी निर्माण कार्य न किए जाएं। साथ ही, भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए ढलानों पर पौधरोपण की जाए।


सिफारिशें नजरअंदाज, बिगड़े हालात  

पर्यावरणविद बताते हैं कि 1976 के बाद से जोशीमठ को लेकर जितनी सिफारिशें की गई उन पर कोई अमल नहीं हुआ। कुछ ही जगहों पर वृक्षारोपण हुए हैं। जहां वृक्षारोपण हुए, वहां भूस्खलन (Landslide) थम गया। 90 के दशक में जोशीमठ के निचले इलाके में जयप्रकाश कंपनी ने काम शुरू किया। एक सड़क का निर्माण किया गया। तब भी सिफारिशों में कही गई बातों को नजरअंदाज किया गया। 90 के दशक में इसी निर्माण कार्य के बाद से समस्याएं शुरू हुई। इसके बाद एनटीपीसी की जल विद्युत परियोजना (NTPC Hydro Power Project) शुरू हुई। तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना भी शुरू हुई। वर्ष 2010 में जब सुरंग में एक मशीन फंस गई तब उस सुरंग से 600 लीटर पानी प्रति सेकंड निकलने लगा। जिसके बाद पर्यावरण वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ में इस सुरंग से असर पड़ रहा है।

NTPC ने कहा- सुरंग जोशीमठ टाउन के नीचे से नहीं गुजरती

एनटीपीसी (NTPC) ने एक बयान में कहा, 'एनटीपीसी द्वारा बनाए गए सुरंग जोशीमठ शहर (Joshimath town) के नीचे से नहीं गुजरती है। यह टनल एक 'टनल बोरिंग मशीन' (Tunnel Boring Machine) द्वारा खोदी गई है। वर्तमान में कोई धमाका भी नहीं की जा रही है। सुरंग नदी के पानी को संयंत्र की टरबाइन तक ले जाने के लिए है।' मगर, कंपनी ने जो उल्लेख नहीं किया वह ये है कि उसके 'टनल बोरिंग मशीन' (TBM) के उल्लंघनों का इतिहास रहा है। अंग्रेजी अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' द्वारा एक्सेस किए गए ऑफिशियल रिकॉर्ड बताते हैं कि दिसंबर 2009 के बाद से तपोवन विष्णुगढ़ हायडल परियोजना की सुरंग के अंदर जाने के बाद TBM चट्टान में टूट जाती है।


2009 में हुआ था हादसा

आपको बता दें, कि दिसंबर 2009 में टनल बोरिंग मशीन (TBM) 900 मीटर की गहराई में फंस गया था। इसके कारण हाई प्रेशर बना था। तब पानी सतह पर आ गया था। जिसके बाद शहर में पीने के पानी की समस्या आई थी। तब स्थानीय लोगों के विरोध के बाद 2010 में एनटीपीसी स्थानीय निवासियों की मांगों पर सहमत हुआ था। उस साल एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय (HNB Garhwal University) के भूवैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट तथा पीयूष रौतेला (MPS Bisht and Piyoosh Rautela) ने 'करेंट साइंस' में लाल झंडी दिखा दी थी। इसका स्थायी प्रभाव कैसे हो सकता है। उनके अनुसार TBM के कारण हुई ऐसी घटनाओं से जमीन धंसने की स्थिति शुरू हो सकती है।

चारधाम परियोजना (Chardham Project) पर सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्त 'High-powered Committee' के सदस्य डॉ. हेमंत ध्यानी ने बताया, 'जब दिसंबर 2009 में NTPC के TBM की वजह से जलभृत प्रवेश ने जोशीमठ (Joshimath) में पानी की स्थिति को प्रभावित किया। कंपनी ये कैसे दावा कर सकती है कि वर्तमान परियोजना सुरंग को उस भू-धंसान से नहीं जोड़ा जा सकता, जिसे हम अभी देख रहे हैं? केवल एक पानी का परीक्षण ही बता सकता है कि क्या शहर में जलविद्युत सुरंग (Hydroelectric Tunnel) से धाराएं निकल रही हैं।' 

NTPC प्रोजेक्ट में हो रही देरी

साल 2012-13 में चालू होने के लिए निर्धारित तपोवन विष्णुगढ़ हाइडल परियोजना (Tapovan Vishnugarh Hydel Project) दुर्घटनाओं के कारण लगभग एक दशक से देरी से चल रही है। NTPC ने 2006 के अंत में परियोजना पर काम शुरू किया था। कंपनी ने सिविल वर्क के लिए लार्सन एंड टुब्रो (larsen and toubro, India) और एल्पाइन मेयरेडर बाऊ (Austria) का सहारा लिया। टीबीएम कार्य में सहायता के लिए एक सलाहकार के रूप में जिओकंसल्ट (ऑस्ट्रिया) को कमीशन किया।

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