देहरादून का फर्जी मुठभेड़ कांड : पिता ने कहा संघर्ष जारी रहेगा

Update: 2018-02-09 09:45 GMT

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी में यहां तीन जुलाई 2009 को एमबीए छात्र रणवीर सिंह की पुलिस द्वारा की गई हत्या एक बार फिर चर्चा में है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में 18 दोषी पुलिसकर्मियों की अपील पर सबूतों के अभाव में 11 पुलिसकर्मियों को बरी करने का आदेश दिया है जबकि 7 पुलिसकर्मियों को निचली अदालत से मिली सजा को बरकरार रखा है। लेकिन पीडि़त परिवार कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है उनका उच्चतम न्यायालय जाना तय माना जा रहा है। क्योंकि रणवीर के पिता रविंद्र पाल का हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया में कहना है कि रणवीर की हत्या करने में सभी आरोपी शामिल रहे है। तीस हजारी कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर फैसला देते हुए सभी आरोपियों को कसूरवार साबित किया था। वह हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और जल्द सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा।

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गौरतलब है कि तीस हजारी कोर्ट ने 17 पुलिसकर्मियों को हत्या, अपहरण, सुबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने और गलत सरकारी रिकॉर्ड तैयार करने के आरोप में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा कोर्ट ने 18वें पुलिसकर्मी को दोषियों को बचाने के लिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ के आरोप में दो साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद 18 पुलिसकर्मियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

पुलिस ने यह हत्या उस समय की थी जब गाजियाबाद के शालीमार गार्डन निवासी एमबीए छात्र रणवीर सिंह अपने दोस्त के साथ 2 जुलाई 2009 को देहरादून घूमने और नौकरी के लिए साक्षात्कार देने देहरादून गया था। इस फर्जी मुठभेड़ में वह पुलिसकर्मी शामिल थे जो उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड भेजे गए थे। और इन लोगों ने प्रमोशन व तमगे हासिल करने के लालच में एक निर्दोष छात्र की हत्या कर दी थी।

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यह सनसनीखेज घटना जिस समय हुई उस समय राज्य में भारतीय जनता पार्टी के रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बने चंद दिन बीते थे। निशंक ने फर्जी मुठभेड़ की जानकारी मिलते ही सबसे पहले इस मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिये थे। उसके बाद परिजनों की मांग पर सीबीसीआईडी जांच को कहा लेकिन परिजनों के संतुष्ट न होने पर सच्चाई उजागर करने के लिये उन्होंने सीबीआई जांच की सिफारिश की।

एमबीए छात्र रणवीर मुठभेड की कहानी

तीन जुलाई 2009 की दोपहर को एमबीए छात्र रणवीर अपने दो साथियों के साथ देहरादून में मोहिनी रोड पर बाइक लिए खड़ा था। इसी बीच डालनवाला कोतवाली से लौट रहे दारोगा जीडी भट्ट ने उन्हें संदिग्ध मानते हुए पूछताछ की। खुद को संदिग्ध माना जाना रणवीर को बुरा लगा।

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दारोगा और रणवीर के बीच कहा-सुनी शुरू हो गई, इस दौरान धक्का-मुक्की की भी बात कही गई। हंगामे के बीच किसी ने इस की जानकारी कंट्रोल रूम को दे दी। पुलिस रणवीर को पकडक़र चौकी ले गई। रणवीर के परिजनों का आरोप है कि यहां पर उसे थर्ड डिग्री देकर टार्चर किया गया, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। अपना जुर्म छुपाने के लिए पुलिस उसे गाड़ी में डालकर लाडपुर-रायपुर के जंगल में ले गई। यहां पर अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़ते हुए उसकी हत्या कर दी गई है।

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