उत्तराखंड : मृतप्राय नदियों के लिए बड़े जनांदोलन की तैयारी

Update:2018-03-09 14:59 IST

देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून की मृतप्राय रिस्पना, कोसी आदि नदियों को पुनर्जीवन देने का बीड़ा उठाया है। नदियों के जीवन पर ध्यान देने की एक वजह राज्य में तेजी से बढ़ता पानी का संकट भी है। इस बार ही अक्टूबर दिसंबर और जनवरी फरवरी में जाड़े के दौरान होने वाली बारिश में 68 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।

ये मामला गंभीर इस लिए भी है क्योंकि यह कमी सभी 13 जिलों में महसूस की गई है। पिछले साल भी जून से सितंबर तक मानसून के मौसम में 76 प्रतिशत पानी कम बरसा था। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में जाड़े के मौसम में होने वाली 106 मिमी बारिश के अनुमान के विपरीत मात्र 34 मिमी बारिश दर्ज की गई है।

इसमें भी जनवरी में 17.5 मिमी व फरवरी में 16 मिमी बारिश दर्ज की गई है। इससे दोनो पहाड़ी मंडलों में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हरिद्वार में 88 फीसद की गिरावट आयी जबकि पौड़ी गढ़वाल में 83 फीसद की गिरावट रही है। देहरादून और चमोली में 61 फीसद व अलमोड़ा में 64 फीसद व नैनीताल में 74 प्रतिशत की गिरावट रही है।

पिछले साल जनवरी फरवरी में भी 51 फीसद की गिरावट आयी थी। मौसम विभाग के बिक्रम सिंह का कहना है कि बारिश का लगातार कम होना पहाड़ी राज्य की कृषि को बुरी तरह से प्रभावित करेगा। मसूरी देहरादून में हिमपात न होने से पर्यटन व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ा है।

अब नदियों को बचाने के लिए जनांदोलन का स्वरूप देने की तैयारी की जा रही है। रिस्पना राज्य की राजधानी देहरादून को कवर करती है जबकि कोसी नदी अल्मोड़ा और उसके गांवों को जीवन देती है। कोसी की दुर्दशा की स्थिति यह है कि 1990 के दशक में गर्मियों में इसके प्रवाह का केवल दसवां अंश रह गया था। इसे 2003 में मौसमी नदी घोषित कर दिया गया।

दूसरी तरफ रिस्पाना में पानी के आठ स्रोत हैं और अभी तक यह लगभग सूख चुके हैं। यह नदी मसूरी के पास कहीं से निकलती है इसका मूल स्रोत कभी खो चुका है। मुख्यमंत्री इस संबंध में कदम उठाने की बात कहते हैं। वह कहते हैं कि कुछ काम मनरेगा के तहत कराया जा रहा है और कुछ सिंचाई विभाग कर रहा है। मुख्यमंत्री को योजना पहाड़ों से रिस्पना तक पानी लाने के लिए खाइयों की खुदाई की जाएगा जिससे नदी को पानी मिलता रहे।

यह खाइयां इतनी गहरी खोदी जाएंगी कि जानवरों से सुरक्षित रह सकें। इनकी हजारों गैलन पानी की क्षमता होगी। इन खाइयों में वर्षा के माध्यम से बारिश का पानी नदियों को देने के लिए रहेगा। ये संग्रहीत पानी को जमीन में घुसने और पानी की नलिकाओं को फिर से जीवंत करने में सक्षम होगा।

इसके अलावा रिस्पना के 23 किमी लंबे रास्ते की भी सफाई की जाएगी। यह सफाई सोन नदी में उसके संगम तक की जाएगी। नदी की सफाई में नदियों के किनारे रहने वाले गांव के लोगों धार्मिक संगठनों गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी करवायी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए नदी पर नींबू घास लगाने की योजना है। अलमोड़ा के जिला मजिस्ट्रेट का कहना है कि सिर्फ रिस्पना ही नहीं कोसी को जीवनदान देने की भी योजना पर काम अंतिम चरण में है। कोसी के लिए विस्तृत और सघन योजना है।

कोसी के पुनर्जीवन में हालांकि समय ज्यादा लगेगा यह बड़ी नदी है और इसकी स्थितियां काफी जटिल हैं। कोसी कुमाऊं के करीब साढ़े तीन सौ गांवों की जीवन रेखा है। वैज्ञानिक कोसी की वर्तमान स्थिति को खतरनाक बता चुके हैं। नदी 225 किमी से सिकुड़ कर अब केवल 41 किमी ही रह गई है। एक समय कोसी को पानी 28 स्रोतों से मिलता था जिसमें अब केवल आठ ही शेष बचे हैं। यह भी केवल मौसमी रह गय़े हैं।

यह नदी अलमोड़ा बागेश्वर सीमा से निकलती है। रावत ने नदी के 14 स्रोतों के पहचान की बात कही है। अप्रैल मई जून में 17 करोड़ के प्रोजेक्ट से इन छिद्रों के रिचार्ज के लिए खाइयां खोदने का काम शुरू होगा। नदी में पानी को रोकने के लिए हस्तनिर्मित बांध व बड़े बांध बनाने की भी योजना है। इसके क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हरित क्षेत्र विकसित करने की भी योजना है।

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