Slaughterhouse Banned In Haridwar: हरिद्वार में बूचड़खानों पर लगी पाबंदी, 23 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
Slaughterhouse Banned In Haridwar: बकरीद से पहले ही हरिद्वार जिले में बूचड़खानों पर पाबंदी लगा दी गई है।
Slaughterhouse Banned In Haridwar: बकरीद से पहले ही हरिद्वार जिले में बूचड़खानों पर पाबंदी लगा दी गई है। इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए मंगलौर के एक ने निवासी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर शुक्रवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand High Court) में सुनवाई थी।
हरिद्वार में बूचड़खानों पर प्रतिबंध (Slaughterhouse Banned In Haridwar) की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) ने कहा है कि एक सभ्यता का मूल्यांकन उसके अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करने के तरीके से किया जाता है।
बीते शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश आर.एस. चौहान (R.S. Chauhan) और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा (Alok Kumar Verma) की खंडपीठ ने हरिद्वार में बूचड़खानों पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली मंगलौर के निवासियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "लोकतंत्र का मतलब है- अल्पसंख्यकों की सुरक्षा। किसी सभ्यता का मूल्यांकन केवल उसी तरह से किया जाता है जैसे वह अपने अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करती है। हरिद्वार में लगाए गए इस पाबंदी पर सवाल उठना लाजमी है कि राज्य किस हद तक एक नागरिक के विकल्पों को तय कर सकता है।"
'मुसलमानों के साथ भेदभाव'
जानकारी के अनुसार, याचिका में ये भी कहा गया कि, "पाबंदी निजता और जीवन के अधिकार तथा स्वतंत्र रूप से धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने के अधिकार के खिलाफ जाता है। इतना ही नहीं यह हरिद्वार में निवास कर रहे मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है वो भी वहां, जहां मंगलौर जैसे शहरों में मुस्लिमों की पर्याप्त आबादी निवास कर रही हो।" याचिका में आगे कहा गया, "हरिद्वार में निवास कर रहे लोगों को धर्म और जाति की सीमाओं से परे स्वच्छ और ताजा मांसाहारी भोजन से वंचित करना शत्रुतापूर्ण भेदभाव जैसा है।"
आपको बता दें कि इसी साल मार्च में राज्य सरकार ने हरिद्वार के सभी क्षेत्रों को बूचड़खानों से मुक्त घोषित किया था और बूचड़खानों (Slaughterhouse) के लिए जारी एनओसी (NOCs) भी रद्द कर दिया था।
प्रतिबंध 'मनमाना और असंवैधानिक'
याचिका में दावा किया गया कि "प्रतिबंध 'मनमाना और असंवैधानिक' था। याचिका ने इसे दो कारणों से चुनौती दी- किसी भी प्रकार के मांस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना असंवैधानिक है जैसा कि धारा 237 ए है, जिसमें उत्तराखंड सरकार ने उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में अंतर्स्थापित किया था ताकि वह खुद को नगर निगम, परिषद या नगर पंचायत के जरिए बूचड़खाना मुक्त घोषित करने का अधिकार दे सके।" कोर्ट ने कहा है कि इस याचिका में कई गंभीर मौलिक सवाल खड़े किए गए है, जिसमें संवैधानिक व्याख्या भी सम्मिलित है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि, "यह एक संवैधानिक मुद्दा है जो त्योहारों तक सीमित नहीं है और इस मामले में उचित सुनवाई और विचार-विमर्श की जरूरत है।इसलिए 21 जुलाई को पड़ने वाली बकरीद के लिए इसे समय पर समाप्त करना संभव नहीं है।" अदालत ने याचिका की अगली सुनवाई 23 जुलाई को करेंगी।