देहरादून। उत्तराखंड में सालाना दस हजार करोड़ रुपए की सालाना कर चोरी से जुड़ा मामला एक बार फिर उठा है और दोषी अफसरों ने न केवल बेनामी संपत्ति जुटाई है, बल्कि इन पर कर चोरी में मददगार बनने के भी आरोप हैं। जबकि राज्य के वाणिज्य कर, आबकारी व पेयजल मंत्री प्रकाश पंत का दावा है कि राज्य में विभिन्न करों से प्रतिवर्ष 7100 करोड़ रुपये का राजस्व आता है। अब इसे बढ़ाया जाएगा। अपंजीकृत व्यवसायी बिना राजस्व चुकाए व्यापार कर रहे हैं। इन पर सख्ती बरती जाएगी। निर्धारित नियमों के तहत कर नहीं चुकाने पर कार्रवाई भी की जाएगी।
ये भी पढ़ें... उत्तराखंड : लापरवाही की वजह से खतरे में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल
यह मामला फिर से तब गरमाया है जब एडवोकेट नदीमउद्दीन ने उत्तराखंड में कर चोरों के सिंडीकेट को तोडऩे के लिए सूचना के अधिकार के तहत की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी और पूछा कि हाईकोर्ट ने पूरक शपथपत्र के लिए दो सप्ताह का समय सरकार को दिया था उसमें क्या हुआ। एडवोकेट नदीमउद्दीन को दिये जवाब में महाधिवक्ता कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी सीबी सिंह ने जनहित याचिका तथा उस पर कार्यवाही संबंधी कागजों की सत्यापित फोटो प्रतियां उपलब्ध करायी हैं।
उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार गत अक्टूबर 2017 में रुडक़ी (हरिद्वार) निवासी धर्मेन्द्र सिंह द्वारा उत्तराखंड उच्च न्यायालय में 47 पक्षकार बनाते हुए जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें उच्च न्यायालय के सुपरविजन में एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर उत्तराखंड में टैक्स चोरी के लिए तथाकथित उच्च कर अधिकारियों, बड़े व्यापारिक घरानों, उद्योगों, व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों के सिंडिकेट की जांच कराने की मांग को लेकर प्रार्थना की गयी थी।
मुख्य स्थायी अधिवक्ता की ओर से मुख्य सचिव, सचिव वित्त, राजस्व, अपर सचिव, वित्त व चीफ कमिश्नर व्यापार कर को भेजे पत्र में 13 दिसम्बर 2017 को याचिकाकर्ता को सप्लीमेंट्री शपथपत्र दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय देने का आदेश न्यायालय द्वारा देने की सूचना दी गयी लेकिन इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से 29 जनवरी तक कोई शपथपत्र दाखिल नहीं हुआ।
याचिका में उत्तराखंड सरकार, सचिव वित्त, राजस्व, अपर सचिव वित्त, चीफ कमिश्नर ट्रैड टैक्स, डायरेक्टर जनरल आयकर (जांच) लखनऊ, सीबीआई के निदेशक के अतिरिक्त 39 अधिकारियों को उनके नाम से पक्षकार बनाया गया है। इसमें सचिव, अपर सचिव, स्पेशल कमिश्नर के अतिरिक्त व्यापार कर विभाग के एक एडिशनल कमिश्नर, दो ज्वाइंट कमिश्नर, छह डिप्टी कमिश्नर, 15 असिस्टेंट कमिश्नर, 12 व्यापार कर अधिकारियों के नाम हैं।
जनहित साचिका में एक ज्वाइंट कमिश्नर पर याचिका के अन्य पक्षकार 35 अधिकारियों से जुड़े होने व इन अधिकारियों द्वारा कर चोरी करने वाले उद्योगों, औद्योगिक घरानों तथा व्यापारियों से मासिक रूप से टैक्स चोरी के बदले काला धन एकत्र करके देने तथा इस ज्वाइंट कमिश्नर द्वारा बिचौलियों के रूप में राज्य प्राधिकारियों में इस कालेधन काबंटवारा करने का गंभीर आरोप है। याचिका में कर चोरी की शिकायत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री, आयकर विभाग तथा सीबीआई को करने व उनके द्वारा कोई कार्यवाही न करने का भी जिक्र किया गया है।
एडवोकेट नदीम ने राज्य कर अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए उत्तराखंड वाणिज्य कर सेवा संघ के अध्यक्ष व महासचिव से सम्पर्क किया तो महासचिव भुवन चंद्र पांडे द्वारा अपना पक्ष उपलब्ध कराते हुए कहा गया कि इस रिट में जो आरोप लगाये गये हैं, वह तथ्यों पर आधरित नहीं हैं तथा सनसनी फैलाने के उद्देश्य से लगाये गये हैं। उनके अनुसार यह अधिकारियों की छवि धूमिल करने का प्रयास है।
गौरतलब यह है कि यह कोई मामूली मामला नहीं है राज्य को सालाना दस हजार करोड़ के राजस्व की सालाना क्षति का है वह भी उस राज्य का जिसे सालाना 7000 करोड़ से कुछ अधिक ही राजस्व मिल पाता है। रुडक़ी (जिला हरिद्वार) निवासी धमेंद्र सिंह ने तो हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में खुला आरोप लगाया था कि उत्तराखंड में कर विभाग के बड़े अधिकारियों की ओर से बड़े व्यापारियों के साथ मिलीभगत कर उत्तराखंड सरकार को लगभग दस हजार करोड़ रुपये के सालाना टैक्स चोरी कर राजस्व की चपत लगाई जा रही है। इसके बाद भी सरकार की सुस्ती इस सिंडीकेट की ताकत का अहसास कराने के लिए पर्याप्त है।
याचिका में राज्य कर विभाग के 35 अधिकारी सचिव वित्त अमित नेगी, अपर सचिव वित्त बीबी मठपाल, कर आयुक्त पीयूष कुमार, संयुक्त आयुक्त नवीन चंद्र जोशी व राकेश वर्मा, संयुक्त आयुक्त वीएस नगनियाल, उप आयुक्त देहरादून यशपाल सिंह, उपायुक्त किच्छा जिला रुद्रपुर शिवेंद्र प्रताप सिंह, उपायुक्त ऋषिकेश संजीव सिंह सोलंकी, उपायुक्त पीपी शुक्ला, अनुराग मिश्रा, धमेंद्र राज चौहान सहित कई अन्य अधिकारियों पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में मांग की गई है कि उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर इस प्रकरण की जांच सीबीआई या आयकर विभाग से कराई जाए। इन अधिकारियों की बेनामी संपत्तियों की जांच कराने की मांग भी की गई है।