देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा 151 साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म किये जाने का आदेश राज्य में हर गली नुक्कड़ पर बहस और चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा ये कि कि आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी इस एक मात्र राज्य में पहाड़ के 12 हजार से अधिक गांव में अभी तक अंग्रेजों के जमाने का कानून चल रहा है जिसे अब खत्म किया गया है। इन गांवों में कानून व्यवस्था पटवारी संभालते हैं। इन्हें राजस्व पुलिस कहा जाता है। लेकिन असल समस्या यह है कि उत्तराखंड की 58 फीसदी आबादी जो इस व्यवस्था के हटने से राम भरोसे हो जाएगी उसकी हिफाजत का क्या होगा। मजे की बात ये है कि इस कानून के खत्म होने से राजस्व पुलिस के दायित्व से मुक्त होने की बात से राजस्व कर्मी बहुत खुश हैं।
> क्या है राजस्व पुलिस
1866 में जब देश में राजस्व की जगह सिविल पुलिस ले रही थी, उसी समय कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर सर हेनरी रैमजे ने पहाड़ में सिविल पुलिस के हस्तक्षेप को रोक दिया था। इस पहाड़ी क्षेत्र (जिसे अब उत्तराखंड कहा जाता है) में अंग्रेजों ने राजस्व पुलिस की स्थापना की और इस व्यवस्था का केंद्र पटवारी को बनाया गया। कुमाऊं के तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर ने पटवारियों के 16 पद सृजित किए थे। इन्हें पुलिस, राजस्व संग्रह, भू अभिलेख का काम दिया था। साल 1874 में पटवारी पद का नोटिफिकेशन हुआ। रजवाड़ा होने की वजह से टिहरी, देहरादून, उत्तरकाशी में पटवारी नहीं रखे गए। साल 1916 में पटवारियों की नियमावली में अंतिम संशोधन हुआ। 1956 में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून जिले के गांवों में भी पटवारियों को जिम्मेदारी दी गई। पटवारी के ऊपर कानूनगो आदि अधिकारी और अधीनस्थ पद पर चपरासी को तैनात किया गया।
> इसके अधिकार
पहाड़ में राजस्व पुलिस में पटवारी को वो सभी अधिकार दिये गये हैं जो पुलिस के हैं, इनमें मुकदमा दर्ज करने से लेकर गिरफ्तारी और जांच तक शामिल है। तत्कालीन व्यवस्था ने पूरे क्षेत्र को पट्टियों में बांटा और एक पट्टी में एक पटवारी को रखा। पटवारी और उसके संवर्ग के अन्य कर्मचारियों को कानून व्यवस्था के साथ ही भू राजस्व संबंधी सभी काम देखने की जिम्मेदारी दी। राजस्व संग्रह और कर्ज वसूली का दायित्व भी पटवारियों के ऊपर था।
> सिर्फ 42 फीसदी क्षेत्र में रेगुलर पुलिस
मौजूदा समय में उत्तराखंड के 58 फीसदी क्षेत्र पर राजस्व पुलिस है। जबकि सिर्फ 42 फीसदी क्षेत्रों में ही सुरक्षा की जिम्मेदारी सिविल पुलिस के पास है। हरीश रावत सरकार में त्यूणी में सिविल पुलिस थाना खोलने का जबरदस्त विरोध हुआ था। जिसके चलते थाना खोलने का आदेश रद करना पड़ा था।
> राजस्व पुलिस बनाए रखने की मांग
> हाईकोर्ट के आदेश का स्वागत
पर्वतीय राजस्व निरीक्षक, उप निरीक्षक एवं राजस्व सेवक संघ ने राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह माह के अंदर समाप्त कर अपराध विवेचना का काम सिविल पुलिस को सौंपने को लेकर हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का स्वागत किया है। संघ के जिलाध्यक्ष विक्रम सिंह राणा ने कहा कि लंबे समय से राजस्व निरीक्षक, राजस्व उप निरीक्षक व अनुसेवकों के कई पद खाली चले आ रहे हैं। वर्तमान में एक राजस्व उपनिरीक्षक बिना किसी संसाधनों के 50 किमी से ज्यादा एक से अधिक राजस्व क्षेत्रों का काम देख रहा है।
इसमें उसके वेतन की एक मोटी रकम व्यय हो जाती है। कई बार कानूनों में काफी बदलाव होते हैं, लेकिन राजस्व पुलिस को इसको लेकर कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। किसी मामले में कोई खामियां पाई जाती हैं तो विभागीय अधिकारियों द्वारा प्रतिकूल प्रविष्टि और निलंबन कर उत्पीडऩ किया जाता है। संगठन के आंदोलन को भी दबा दिया जाता है। ऐसे में हाईकोर्ट का यह फैसला पर्वतीय राजस्व निरीक्षक और उप निरीक्षकों को काफी राहत देने वाला है।
> सरकार आदेश का पालन करेगी
कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन करने के बाद सरकार आगे कदम उठाएगी। एडीजी लॉ एंड आर्डर अशोक कुमार का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश को पढने के बाद सरकार के निर्देशों के अनुसार आगे कदम उठाए जाएंगे।