उत्तराखंड में BJP की रणनीति पर उठे सवाल, चुनाव से पहले फेरबदल में दो बार लग चुका है झटका

Uttarakhand BJP Politics : उत्तराखंड में भाजपा की रणनीति को लेकर सियासी हलकों में सवाल भी उठाए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पहले से ही पता था कि तीरथ सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल से सांसद हैं और मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shivani
Update: 2021-07-03 05:34 GMT

Uttarakhand BJP Politics:  उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) के इस्तीफे के बाद आज भाजपा विधानमंडल दल की बैठक में नया नेता चुना जाएगा। नए नेता के चुनाव के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar) को केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया गया है। 2017 में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद भाजपा की ओर से तीसरे मुख्यमंत्री की ताजपोशी की तैयारी है।

उत्तराखंड में भाजपा की रणनीति को लेकर सियासी हलकों में सवाल भी उठाए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पहले से ही पता था कि तीरथ सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल से सांसद हैं और मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा। अब तीरथ सिंह रावत की ओर से संवैधानिक अड़चनों की वजह से इस्तीफा देने की बात कही जा रही है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा को घेरा है। वैसे विधानसभा चुनाव से पहले फेरबदल में भाजपा पहले भी दो बार झटका खा चुकी है।

2017 के बाद बनेगा तीसरा सीएम

हरिद्वार में कुंभ से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) को हटाकर मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी की गई थी। उन्होंने इसी साल 10 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला था मगर वे सिर्फ 115 दिनों तक ही राज्य के मुख्यमंत्री रह सके। अब शनिवार को एक नए चेहरे को उत्तराखंड की कमान सौंपने की तैयारी है।
दरअसल छोटा राज्य होने के बावजूद उत्तराखंड की सियासत अस्थिरता का शिकार रही है। यहां भाजपा विधायक हमेशा मुख्यमंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे हैं। उत्तराखंड में अपने 10 वर्षों के शासनकाल के दौरान भाजपा छह नेताओं को मुख्यमंत्री बना चुकी है। भाजपा का कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल नहीं हो सका।

2017 के विधानसभा चुनाव के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्होंने करीब 4 साल तक प्रदेश की सत्ता संभाली। उनके कार्यकाल पूरा करने की उम्मीद जताई जा रही थी मगर मार्च में अचानक ऐसा सियासी माहौल बना जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी चली गई। उसके बाद तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हुई है। माना जा रहा था कि उनकी अगुवाई में ही भाजपा विधानसभा चुनाव लड़ेगी मगर अब उन्हें भी इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा।

इस कारण इस्तीफे पर मजबूर हुए रावत

हालांकि तीरथ सिंह रावत ने अपने इस्तीफे के पीछे संवैधानिक अड़चनों को कारण बताया है मगर सच्चाई यही है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व में की उनकी अगुवाई में विधानसभा चुनाव में नहीं उतरना चाहता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने कई बयानों के कारण भी तीरथ सिंह रावत विवादों में रहे थे। इसी कारण पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह की रावत के साथ हुई बैठक में उत्तराखंड में बदलाव का फैसला लिया गया।
पार्टी अध्यक्ष को लिखे पत्र में तीरथ सिंह रावत ने कहा कि संवैधानिक नियमों के तहत उन्हें मुख्यमंत्री बनने के बाद छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना था। उन्होंने कहा कि संविधान के आर्टिकल 151 के मुताबिक अगर विधानसभा चुनाव में एक वर्ष से कम का समय बचता है तो आयोग की ओर से वहां पर उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। उत्तराखंड में संवैधानिक संकट की स्थिति से बचने के लिए मैं मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहा हूं।

देहरादून में सियासी हलचल तेज

रावत के इस्तीफा देने के बाद राजधानी देहरादून में सियासी हलचल काफी तेज हो गई हैं। भाजपा से जुड़े जानकार सूत्रों का कहना है कि शनिवार को नए नेता के चुनाव के लिए भाजपा के सभी विधायक देहरादून पहुंच गए हैं। नए नेता के दावेदारों में धन सिंह रावत और सतपाल महाराज का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। हालांकि भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सीएम के रूप में किसी तीसरे ऐसे नेता का नाम तय किया जा सकता है जो हर किसी को चौंकाने वाला होगा।

भाजपा इस दांव में दो बार खा चुकी है झटका

भाजपा ने उत्तराखंड में चुनाव से तुरंत पहले नेतृत्व परिवर्तन का बड़ा सियासी दांव जरूर खेला है मगर इस दांव में पार्टी को इससे पहले दो बार झटका लग चुका है। उत्तराखंड को अलग राज्य बनाए जाने के बाद साल 2000 में भाजपा की ओर से नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन एक साल पूरा होने से पहले ही उनकी जगह भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी गई। उसके बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार झेलनी पड़ी। 2002 के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी की अगुवाई में सरकार बनाई थी।

इसके बाद भाजपा ने 2012 में भी चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया था। उस समय रमेश पोखरियाल निशंक की जगह बीसी खंडूरी की ताजपोशी की गई थी मगर एक बार फिर भाजपा कांग्रेस के हाथों में चुनाव हार गई थी। इसके बावजूद भाजपा की ओर से तीरथ सिंह को हटाकर भाजपा में नए नेता की अगुवाई में चुनाव लड़ने का फैसला किया गया है।

कांग्रेस ने भाजपा को घेरा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि कानून की पूरी जानकारी न होने और मुगालते में रहने के कारण भाजपा की ओर से राज्य के ऊपर एक और मुख्यमंत्री थोपा जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा की ओर से दी जा रही दलील पूरी तरह झूठी है कि कोरोना महामारी की वजह से उत्तराखंड में चुनाव नहीं हो सकते और संवैधानिक अड़चनों के कारण तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दिया है।
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