रामकृष्ण बाजपेयी
देहरादून: उत्तराखंड के कार्बेट टाइगर रिजर्व (राजाजी पार्क) में जिस तरह बाघों की गिनती की जाती है वही तरीका अन्य अभयारण्यों में अपनाया जायेगा। कार्बेट टाइगर रिजर्व में अधिकारियों ने चार वर्ग किलोमीटर की जगह दो वर्ग किलोमीटर का ग्रिड बनाया था लेकिन उनकी गणना के लिए कैमरों की संख्या उतनी ही रखी थी। इस प्रयोग के सकारात्मक नतीजे निकले थे।
अधिकारियों के अनुसार छोटे ग्रिड बनाकर बाघों की गणना ज्यादा पुख्ता तरीके से हो सकी। निदेशक सुरेन्द्र मेहरा बताते हैं कि 2016-17 में दो वर्ग किलोमीटर के ग्रिड बनाकर बेहतर रिजल्ट लेने की जानकारी हमने अन्य रिजर्व के निदेशकों से साझा की और वे अपने क्षेत्र में बाघों की गणना के लिए इस पद्धति को अपनाने पर सहमत हुए। कार्बेट में 535 कैमरे लगाए गए थे। देश में बाघों की गणना हर चार वर्ष में की जाती है जो कि अब शुरू हो चुकी है। बाघों की गणना कैमरों के अलावा मल एकत्रीकरण के आधार पर होती है जिसे बाद में डीएनए आधारित आकलन में प्रयुक्त किया जाता है। 2014 में न्यूनतम आकलन 1945 और अधिकतम आकलन 2491 रहा था। जिसके आधार पर 2226 बाघों की अनुमानित संख्या मानी गई थी। देहरादून के वन्य जीव संस्थान के बाघ विशेषज्ञ का कहना है कि बाघों की गणना के लिए छोटे ग्रिड का तरीका केवल उसी स्थिति में कारगर है जबकि पार्क में बाघों की सघन आबादी हो। उन्होंने कहा कि कार्बेट में यह तरीका कारगर हो सकता है लेकिन झारखंड में नहीं क्योंकि वहां बाघों की संख्या सीमित है।
विश्व की बाघों की कुल आबादी का 70 फीसदी भारत में हैं। 2014 की गणना के अनुसार कार्बेट में 215, कर्नाटक के बांदीपुर में 120, असम के काजीरंगा में 103 बाघ थे। जब हम बाघों की कुल गणना को देखते हैं तो कर्नाटक के 406 बाघों के मुकाबले उत्तराखंड दूसरे नंबर पर आता है जहां 340 बाघ हैं। 2016-17 में कार्बेट में चौथे चरण की मानीटरिंग के बाद बाघों की संख्या में 45 की वृद्धि हुई थी जो कि 2015 में 163 थी। 2014 में 44 टाइगर रिजर्व को इसमें शामिल किया गया था जबकि वर्तमान में चल रही गणना में 50 टाइगर रिजर्व शामिल हैं। इसमें उत्तराखंड के केदारनाथ (चमोली व रुद्रप्रयाग) क्षेत्र व पिथौरागढ़ जिले का असकोट वन्यजीव अभयारण्य शामिल किया गया है।
एक बाघ मृत मिला : नैनीताल से मिली खबर के मुताबिक रामनगर वन प्रभाग के फतेहपुर क्षेत्र में एक बाघ का शव मिला है। यह साल की पहली मौत है। बाघ का शव पेड़ों की शाखाओं पर झूलता मिलता। एक लकड़ी का एक कोना उसके घुसा हुआ था। हालांकि मौत का कारण पोस्टमार्टम के बाद पता चलेगा लेकिन अधिकारियों का मानना है कि चूंकि बाघ के अंग सुरक्षित हैं इसलिए संतुलन बिगडऩे के कारण वह पेड़ की शाखाओं पर गिरा होगा और एक नुकीली शाखा ने उसके प्राण लिये। गत वर्ष उत्तराखंड में 15 बाघों की मौत हुई थी।