Uttarakhand Election 2022: इस बार चुनावी परिदृश्य से एक चर्चित चेहरा गायब, 1985 के बाद पहली बार नहीं लड़ रहे काशी सिंह ऐरी

Uttarakhand Election 2022 : 1985 के बाद यह पहला मौका है जब उत्तराखंड क्रांति दल के नेता काशी सिंह ऐरी चुनावी अखाड़े में नहीं कूदे हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-02-04 13:46 IST

Uttarakhand Election 2022 (Social Media)

Uttarakhand Election 2022 : उत्तराखंड में 14 फरवरी (uttarakhand election 2022) को एक चरण में होने वाले मतदान के लिए भारतीय जनता पार्टी (Bjp), कांग्रेस (Congress), आम आदमी पार्टी (aam Aadmi party) और अन्य सियासी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है। चुनावी बाजी जीतने के लिए सभी सियासी दलों की ओर से एक-दूसरे पर हमले किए जा रहे हैं, मगर चुनावी परिदृश्य से उत्तराखंड का एक चर्चित चेहरा गायब है।

1985 के बाद यह पहला मौका है जब उत्तराखंड क्रांति दल के नेता काशी सिंह ऐरी चुनावी अखाड़े (Uttarakhand Kranti Dal leader Kashi Singh Airy) में नहीं कूदे हैं। काशी सिंह ऐरी काफी पुराने नेता हैं और जब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और व उत्तराखंड (Uttarakhand) का विभाजन नहीं हुआ था तबसे सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। 37 साल बाद यह पहला मौका है जब उन्होंने चुनावी राजनीति से दूरी बना ली है। 

1985 में जीता था पहला चुनाव 

काशी सिंह ऐरी उत्तराखंड के चर्चित नेता रहे हैं और पहाड़ के गिने चुने नेताओं में हमेशा उनकी पहचान रही है। वे उत्तराखंड के मजबूत माने जाने वाले एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल के शीर्ष नेता रहे हैं और उनकी पहचान उत्तराखंड राज्य का गठन होने से पहले भी रही है। उन्होंने अपने जीवन का पहला चुनाव उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी के रूप में 1985 में जीता था। डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने उन्हें विधायक बनाकर लखनऊ भेजा था। 

ऐरी की अपने चुनाव क्षेत्र पर मजबूत पकड़ मानी जाती थी और इसी कारण वे 1989 और 1993 का विधानसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे थे। उन्होंने अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव भी लड़ा था। इस चुनाव में भी उन्होंने अपनी ताकत दिखाई थी। हालांकि उन्हें 9000 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। वैसे इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी को भी पीछे छोड़ दिया था जो सिर्फ 36,000 वोट पाने में कामयाब हुए थे। 

2007 में शुरू हुआ हार का सिलसिला 

उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए भी ऐरी ने काफी संघर्ष किया था मगर यह भी अजीब विडंबना है कि उत्तराखंड राज्य का गठन होने के बाद ऐरी सिर्फ एक बार विधानसभा का चुनाव जीत सके। वे यूपी में तीन बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं मगर उत्तराखंड बनने के बाद सिर्फ एक बार ही विधायक चुने गए।

2007 के विधानसभा चुनाव से ऐरी की हार का सिलसिला शुरू हो गया और उसके बाद वे कोई भी चुनाव नहीं जीत सके। 2007 के चुनाव में ऐरी 8438 मत हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे थे मगर 2012 के विधानसभा चुनाव में वे तीसरे स्थान पर खिसक गए। ऐरी ने 2012 का विधानसभा चुनाव धारचूला सीट से लड़ा था और इस चुनाव में वे 6685 मत हासिल करके तीसरे स्थान पर रहे थे। 

2017 के विधानसभा चुनाव में ऐरी को और बुरी हार का सामना करना पड़ा। जिस डीडीहाट इलाके पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती थी, उस सीट पर ऐरी सिर्फ 2896 वोट पाकर चौथे स्थान पर पहुंच गए। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में ऐरी किसी भी सीट से चुनाव मैदान में नहीं उतरे हैं।

मौजूदा माहौल में खुद को फिट नहीं पाते ऐरी 

चुनावी राजनीति से दूर होने के लिए ऐरी मजबूत कारण भी बताते हैं। उनका कहना है कि मौजूदा सियासी हालात उनके जैसे नेताओं के चुनाव लड़ने के लिए उपयुक्त नहीं है। उनका कहना है कि अब चुनाव में सिर्फ पैसे का ही रंग दिखाई देता है। जनता से जुड़े मुद्दों को उठाने की जहमत कोई नहीं उठाता।

उनका यह भी कहना है कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने कभी पैसों के लिए राजनीति नहीं की। उनका कहना है कि मैंने अपने राजनीतिक जीवन में काफी संघर्ष किया है मगर मौजूदा राजनीतिक हालात में हम जैसे नेता फिट नहीं हैं। ऐसे में अब चुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं है। उत्तराखंड के सियासी जानकारों का कहना है कि 1985 के बाद हर चुनाव में ऐरी का चेहरा जरूर दिखता था मगर 37 साल बाद यह पहला मौका है जब ऐरी चुनावी राजनीति से पूरी तरह दूर हैं।

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