Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड की राजनीति के 'मौसम वैज्ञानिक' , थामा हाथ का साथ
Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड की सियासत के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले हरक सिंह रावत ने थामा कांग्रेस का दामन। कुछ दिनों पहले ही बीजेपी ने पार्टी से कर निष्कासित कर दिया था।
Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022. देश के पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही इन राज्यों के दल बदलू नेता पाला बदलने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में चुनावी राज्य उत्तराखंड में भी सियासी हलचल तेज है। नेता अपने सुरक्षित सियासी भविष्य को लेकर नई जगहों पर प्रवेश ले रहे हैं। इन्हीं सबमे से एक सबसे चर्चित चेहरा हैं हरक सिंह रावत। उत्तराखंड की राजनीति के धूरी कहे जाने वाले दिग्गज नेता हरक सिंह रावत तीन दशक से भी लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं। हालांकि इन्हें राज्य का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता है। चुनाव से ऐन पहले बीजेपी से निष्कासित किए गए हरक सिंह अब पूनः अपने पूराने घर लौट आए हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत शुक्रवार को काफी जद्दोजहद के बाद अपनी बहू अनुकृति के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए।
हरीश रावत से अनबन
दरअसल हरक सिंह 2017 से पूर्व में राज्य की हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में भी कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। लेकिन सियासी महत्वकांक्षाओं के कारण पूर्व मुख्यमंत्री से उनकी बनी नहीं और उन्होंने हरीश रावत सरकार को गिराने की भी कोशिश की। अंत में 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी में शामिल होकर राज्य में कमल खिलाने में अहम भूमिका निभाई। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दोबारा उनके पार्टी में शामिल करने के फैसले के खिलाफ थे। दरअसल हरक सिंह रावत के तीन दशक से अधिक लंबे सियासी सफर को देखें, तो यह समझना काफी सहज है कि आखिर क्यों उन्हें उत्तराखंड की सिय़ासत का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है।
हरक सिंह रावत का सियासी सफर
80 के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान छात्र राजनीति में कदम रखने वाले हरक सिंह रावत ने अपनी शुरूआत एबीवीपी से शुरू की। 1984 के में वो पहली बार पौड़ी सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, मगर हार गए। फिर 1991 में पौड़ी सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे और पहली बार में ही तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार में मंत्री बनाए गए। वो उस समय सबसे युवा मंत्री हुआ करते थे। 1993 में पुनः इसी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे। फिर 1996 में अलग राज्य की मांग को लेकर भाजपा छोड़ अपनी अलग पार्टी बनाई। रावत फिर बसपा में शामिल हुए, हालांकि ज्यादा दिन वो यहां टिक नहीं सके औऱ कांग्रेस में शामिल हो गए। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद रावत की राजनीति औऱ तेज रफ्तार पकड़ी। रावत जल्द ही कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाने लगे। रावत कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नेता विरोधी दल तक रहे। 2012 में रूद्रप्रयाग से कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले रावत 2017 में कोटद्वार से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते। हरक सिंह रावत ने कभी भी एक सीट से लगातार नहीं जीते। हर चुनाव में वो नई सीट से अपनी किस्मत आजमाते थे। हरक सिंह जहां इसे अपने मजबूत जनाधार की तरह प्रस्तुत करते थे, वहीं सियासी टिप्पणीकार इसे उनके हार की असुरक्षा से जोड़कर देखती है।
बीजेपी से अनबन
भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद उनकी भाजपा के मुख्यमंत्रीयों से कभी नहीं बनी। वे त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी तक से उलझते नजर आए। सीएम पद की लालसा में बीजेपी आए रावत ने किसी भाजपाई मुख्यमंत्री को चैन से नहीं बैठने दिया। फिर चुनाव से ऐन पहले अपने रिश्तेदारों के टिकट की खातिर प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी। कैबिनेट मंत्री से इस्तीफा देना उसी राजनीति का हिस्सा था। हालांकि भाजपा आलाकमान ने सख्त रूख अपनाते हुए उनकी पार्टी से ही छुट्टी कर दी। ऐसे में उत्तराखंड की राजनीति में साधन संपन्न नेता के तौर पर देखे जाने वाले हरक सिंह रावत विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचाते हैं, ये चुनाव परिणाम बताएंगे।