Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड क्रांति दल का बुरा हाल, नहीं मिले विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी

Uttarakhand Election 2022: 68 वर्षीय काशी सिंह एरी में अब जुझारूपन नहीं रहा है, उनका कहना है - मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूं क्योंकि उक्रांद के पास न तो पैसा है और न ही शक्ति। मेरी एकमात्र जिम्मेदारी पार्टी उम्मीदवारों की सहायता करना है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update:2022-01-30 13:13 IST

काशी सिंह ऐरी (फाइल फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड को अलग राज्य बनवाने के लिए जिस उत्तराखंड क्रांति दल (Uttarakhand Kranti Dal) ने लम्बी लड़ाई लड़ी, आज उसका बुरा हाल है। इसके संस्थापक काशी सिंह एरी (Kashi Singh Airy) इस बार विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Vidhan Sabha Chunav) नहीं लड़ रहे हैं क्योंकि उनके पास पैसा ही नहीं है। यही नहीं, पार्टी को सभी विधानसभा सीटों पर लड़ाने के प्रत्याशी तक नहीं मिले हैं। 

68 वर्षीय काशी सिंह एरी में अब जुझारूपन नहीं रहा है, उनका कहना है - मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूं क्योंकि उक्रांद के पास न तो पैसा है और न ही शक्ति। मेरी एकमात्र जिम्मेदारी पार्टी उम्मीदवारों की सहायता करना है। एरी का ये कथन बताता है कि उत्तराखंड में इस दल का अस्तित्व अब लगभग खत्म ही हो चुका है।

1984 के बाद यह पहला चुनाव, जिसमें बाहर बैठे हैं एरी

एरी कभी अविभाजित उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में उत्तराखंड की राजनीति (Uttarakhand Politics) का चेहरा हुआ करते थे। वे यूपी विधानसभा में तीन बार (1984, 89 और 93 में) और 2002 में उत्तराखंड में एक बार विधायक रहे। 1989 में, वह कांग्रेस के हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ अल्मोड़ा निर्वाचन क्षेत्र (Almora) से लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बाद वह अगले तीन विधानसभा चुनाव भी हार गए। 2007 में कनालीछीना से, 2012 में धारचूला से और 2017 में डीडीहाट से। 1984 के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें एरी बाहर बैठे हैं।

इस बार उक्रांद राज्य की 70 में से 49 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। इसके अलावा वह लालकुआं से बहादुर सिंह जंगी (सीपीआई-एमएल) और प्रतापनगर से पंकज व्यास (निर्दलीय) का समर्थन कर रहा है। बताया जाता है कि उक्रांद को बाकी सीटों पर प्रत्याशी ही नहीं मिले थे। बागेश्वर सीट पर चंद दिन पहले दूसरे दल से आए व्यक्ति को उक्रांद ने टिकट दिया था लेकिन जांच में उसका नामांकन भी निरस्त हो गया। अल्मोड़ा और चम्पावत जिले की किसी भी सीट पर अब उक्रांद का प्रत्याशी नहीं है। वैसे, काशी सिंह ऐरी ने कहा है जिन सीटों पर उनके दल के प्रत्याशी नहीं हैं वहां पर सहयोगी दलों को समर्थन दिया जाएगा तथा क्षेत्रीय ताकतों के समर्थन में उक्रांद साथ खड़ी रहेगी। 

उक्रांद (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

सरकार बनाने में मददगार

उत्तराखंड क्रांति दल राज्य में एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी होने का दावा करता है, लेकिन उत्तराखंड के 22 साल पुराने इतिहास में ये कभी भी बहुमत हासिल करने या सरकार बनाने के करीब नहीं पहुंच पाया। हालांकि, इसने अन्य दलों को सरकार बनाने में खूब मदद की।2007 में जब भाजपा ने 34 सीटें जीतीं तब उक्रांद के 2 विधायक और एक निर्दलीय विधायक ने पार्टी का समर्थन किया, तब भाजपा सरकार बना पाई। 2012 मेंउक्रांद के विधायकों ने कांग्रेस को सरकार बनाने में मदद की थी।

एरी ने लखनऊ में एलएलबी की पढ़ाई की थी और 25 जुलाई 1979 को मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की, जिसके पहले अध्यक्ष थे कुमाऊं विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डीडी पंत। उत्तराखंड क्रांति दाल का मिशन था एक अलग पहाड़ी राज्य के लिए आंदोलन शुरू करना। यह दल अलग राज्य गठन से पहले भी डीडीहाट और रानीखेत से चुनाव जीतता रहा था। दल के गठन के मात्र एक साल के भीतर हुए चुनाव में जसवंत सिंह बिष्ट रानीखेत से चुनाव जीतकर यूपी विधानसभा पहुंचे। काशी सिंह ऐरी 1985, 1989 और 1993 में लगातार तीन बार डीडीहाट से विधायक चुने गए।

राज्य गठन के बाद उक्रांद की स्थिति

2002 के राज्य विधानसभा के पहले चुनाव में यूकेडी के चार विधायक सदन में पहुंचे। कनालीछीना से काशी सिंह ऐरी, द्वाराहाट से विपिन त्रिपाठी, नैनीताल से डॉ. नारायण सिंह जंतवाल और यमुनोत्री से प्रीतम पंवार विधायक बने थे।

- 2007 के चुनाव में दल की एक सीट घट गई। जबकि द्वाराहाट से पुष्पेश त्रिपाठी, देवप्रयाग से दिवाकर भट्ट, नरेंद्र नगर से ओम गोपाल रावत विधायक चुने गए। काशी सिंह ऐरी खुद कनालीछीना सीट से हार गए।

- 2012 में उक्रांद एक सीट पर सिमट गया। यमुनोत्री से प्रीतम पंवार ही विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे।

- 2017 में उक्रांद एक भी सीट नहीं जीत पाया।

वोट प्रतिशत भी घटता गया

- 2002 में राज्य विधानसभा के पहले चुनाव में उक्रांद को 5.49 फीसदी वोट मिले। वर्ष 2007 मत प्रतिशत घटकर 3.7 फीसदी रह गया।

- 2012 के चुनाव में मात्र 1.93 फीसदी वोट मिले।

- 2017 में वोट प्रतिशत घटकर 0.7 पर पहुंच गया।

कहा जाता है कि उक्रांद की ये हालात कुछ नेताओं की अति महत्वाकांक्षा, आपसी गुटबाजी और जनांदोलनों से दूरी की वजह से है। 

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