Kedarnath Dham: अलौकिक आनंद और भक्ति का प्रमुख केंद्र है केदारनाथ धाम

Kedarnath Dham: केदारनाथ मंदिर दुर्गम स्थल पर 3,593 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है। इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पक्का पता नहीं है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2022-10-21 12:00 IST

केदारनाथ धाम (photo: social  media )

Kedarnath Dham Importance: हिन्दू मान्यताओं में केदारनाथ की बड़ी महिमा है। केदारनाथ के संबंध में कहा जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।

केदारनाथ का मंदिर दुर्गम स्थल पर 3,593 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है। इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पक्का पता नहीं है।

मान्यताएं

केदारनाथ मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है।

- महाकवि राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12-13 वीं शताब्दी का मंदिर है।

- ग्वालियर से मिली राजा भोज स्तुति के अनुसार केदारनाथ मंदिर उनका बनवाया हुआ है। राजा भोज 1076-99 कालखण्ड के थे।

- एक अन्य मान्यता के अनुसार केदारनाथ का वर्तमान मंदिर 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है।

- एक मान्यता ये भी है कि सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा। राजा केदार का सात महाद्वीपों पर शासन था।और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे। उनकी एक पुत्री दो पुत्र थे। पुत्र का नाम कार्तिकेय (मोहन्याल) व गणेश था । गणेश बुद्दि व कार्तिकेय (मोहन्याल) शक्ति के राजा देवता के रूप में पूज्य हैं।उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थीं। वृंदा ने 60,000 वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है।

तीर्थ पुरोहित

केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं। मान्यता है किउनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण के समय से इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं, जिनकी संख्या उस समय 360 थी। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों के पोते राजा जनमेजय ने उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया था, और वे तब से तीर्थयात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं।

आदि गुरु शंकराचार्य जी के समय से यहां पर दक्षिण भारत से जंगम समुदाय के रावल व पुजारी मंदिर में शिव लिंग की पूजा करते हैं, जबकि यात्रियों की ओर से पूजा इन तीर्थ पुरोहित ब्राह्मणों द्वारा की जाती है। मंदिर के सामने पुरोहितों की अपने यजमानों एवं अन्य यात्रियों के लिये पक्की धर्मशालाएं हैं, जबकि मंदिर के पुजारी एवं अन्य कर्मचारियों के भवन मंदिर के दक्षिण की ओर हैं।

मंदिर की बनावट

केदारनाथ मन्दिर छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है : .गर्भ गृह, मध्यभाग और सभा मण्डप। गर्भ गृह के मध्य में भगवान श्री केदारेश्वर जी का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसके अग्र भाग पर गणेश जी की आकृति और साथ ही माँ पार्वती का श्री यंत्र विद्यमान है । ज्योतिर्लिंग पर प्राकृतिक यग्योपवीत और ज्योतिर्लिंग के पृष्ठ भाग पर प्राकृतिक स्फटिक माला को देखा जा सकता है।

- केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग में नव लिंगाकार विग्रह विद्यमान है। इस कारण इस ज्योतिर्लिंग को नव लिंग केदार भी कहा जाता है।

- श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर विशालकाय चार स्तंभ हैं जिनको चारों वेदों का द्योतक माना जाता है। इन स्तंभों पर विशालकाय कमलनुमा मन्दिर की छत टिकी हुई है।

- ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी ओर एक अखंड दीपक है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह कई हजारों सालों से निरंतर जल रहा है। उसकी देखभाल और निरन्तर जलते रहने की जिम्मेदारी तीर्थ पुरोहितों की है।

- गर्भ गृह की दीवारों पर सुन्दर आकर्षक फूलों और कलाकृतियों को उकेरा गया है। गर्भ गृह में स्थित चार विशालकाय खंभों के पीछे से स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान श्री केदारेश्वर जी की परिक्रमा की जाती है। गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है।

मन्दिर की पूजा

केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं। संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से इसका दर्शन ही कर सकते हैं।

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