उत्तराखंड में सीएम को लेकर फंसा पेंच,धामी की हार ने बढ़ाया संकट,अब पीएम मोदी से चर्चा के बाद होगा फैसला
उत्तराखंड में धामी को भाजपा का युवा चेहरा माना जाता है मगर उनकी हार ने मुख्यमंत्री पद के फैसले को लेकर बड़ा संकट पैदा कर दिया है।
नई दिल्ली: उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद अब भाजपा राज्य के मुख्यमंत्री पद को भाजपा गहरी उलझन में फंसी हुई है। दरअसल राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में पार्टी को जीत दिलाने में तो बड़ी भूमिका निभाई मगर वे खुद की विधानसभा सीट पर चुनाव हार गए हैं। उत्तराखंड में धामी को भाजपा का युवा चेहरा माना जाता है और पार्टी हाल के दिनों में उन्हें प्रमोट करने की कोशिश में जुटी हुई थी मगर उनकी हार ने मुख्यमंत्री पद के फैसले को लेकर भाजपा नेतृत्व के सामने बड़ा संकट पैदा कर दिया है।
उत्तराखंड में धामी का विरोधी खेमा उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं है। दूसरी ओर धामी को मुख्यमंत्री बनाने पर गलत संदेश जाने का खतरा भी है। ऐसे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ऊहापोह की स्थिति में फंसा हुआ है। धामी भी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं मगर माना जा रहा है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा के बाद ही होली के बाद सीएम के चेहरे पर फैसला हो सकेगा।
भाजपा को मिली है प्रचंड जीत
उत्तराखंड में इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा था मगर चुनावी नतीजों ने हर किसी को चौंका दिया। भाजपा ने राज्य में प्रचंड जीत हासिल करते हुए 47 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीतने में ही कामयाब हो सकी है। भाजपा ने इस बार राज्य में हर पांच साल बाद होने वाले सत्ता परिवर्तन के मिथक को भी तोड़ दिया है।
भाजपा ने प्रचंड जीत तो हासिल कर ली है मगर निवर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खटीमा विधानसभा क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी ने शिकस्त दी है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व राज्य में नए मुख्यमंत्री को लेकर ऊहापोह की स्थिति में फंस गया है।
धामी समर्थक और विरोधी खेमा सक्रिय
राज्य में भाजपा नेताओं का एक वर्ग पुष्कर सिंह धामी की वकालत करने में जुटा हुआ है तो दूसरे वर्ग का कहना है कि चुनावी हार के बाद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए। ऐसा कदम उठाने से जनता के बीच गलत संदेश जाएगा। धामी समर्थकों की ओर से दलील दी जा रही है कि उन्होंने राज्य में पार्टी को प्रचंड जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
राज्य में नए मुख्यमंत्री को लेकर चल रहे विचार विमर्श के बीच धामी भी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। उन्होंने मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। बाद में उन्होंने राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी से भी भेंट की थी। हालांकि अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि इन दोनों नेताओं से धामी की क्या चर्चा हुई है। ऐसे में हर किसी की नजर और शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर टिकी हुई है। सियासी जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे पर अब प्रधानमंत्री मोदी से चर्चा के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा।
धामी विरोधी दे रहे हिमाचल की नजीर
दूसरी ओर धाम में विरोधी खेमे की ओर से हिमाचल प्रदेश की नजीर दी जा रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में जीत हासिल की थी मगर पार्टी की ओर से सीएम चेहरा प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे। धूमल के चुनाव हार जाने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया था बल्कि उनकी जगह जयराम ठाकुर को मौका दिया गया था।
धामी विरोधी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इसी तरह के हालात इस बार उत्तराखंड में देखने को मिले हैं। इस कारण धामी की दोबारा ताजपोशी नहीं की जानी चाहिए। हारे हुए प्रत्याशी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने से जनता के बीच भी गलत संदेश जाएगा।
भट्ट और बलूनी के नामों पर भी पेंच
भाजपाई हलके में नए मुख्यमंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट और सांसद अनिल बलूनी का नाम भी चर्चाओं में है। भाजपा नेतृत्व का सबसे बड़ा संकट यह है कि इन दोनों में से किसी चेहरे को भी मुख्यमंत्री बनाने पर दो उपचुनाव कराने होंगे। दोनों के लिए पहले किसी विधायक को अपनी सीट से इस्तीफा देना होगा तो दूसरी ओर भट्ट के मुख्यमंत्री बनने पर लोकसभा और बलूनी के सीएम बनने पर राज्यसभा का भी उपचुनाव कराना होगा। इन दोनों चेहरों को लेकर यही पेंच फंसा हुआ है क्योंकि भाजपा नेतृत्व दो-दो उपचुनाव के पक्ष में नहीं बताया जा रहा है।
नए मुख्यमंत्री को लेकर पार्टी के शीर्ष स्तर पर गहराई से मंथन चल रहा है मगर अभी तक पार्टी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। धामी समर्थक और विरोधी खेमे की ओर से जबर्दस्त लॉबिंग की जा रही है और इस कारण माना जा रहा है कि अब फैसला होली के बाद ही हो सकेगा।