उत्तराखंड चुनाव 2022: क्या फिर बनेगी बीजेपी सरकार? कांग्रेस को जीत की दरकार    

उत्तराखंड चुनाव के लिए भाजपा मिशन दोहराना चाहती है. जिसके लिए बिसात भी बिछने और समीकरण साधते हुए शीर्ष नेतृत्व पर्यवेक्षकों की नियुक्ति से लेकर अन्य मुद्दों पर बारीक नजर रखे है।

Report :  aman
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2021-09-10 07:05 GMT

उत्तराखंड चुनाव 2022। (Social Media) 

लखनऊ। अगले साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें उत्तराखंड भी है। चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक बिसात भी बिछने लगी हैं तो समीकरण भी साधे जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का शीर्ष नेतृत्व पर्यवेक्षकों की नियुक्ति से लेकर अन्य मुद्दों पर बारीक नजर रखे है। बीजेपी केंद्र और राज्य सरकार के काम को आधार बनाते हुए चुनावी मैदान में जाने को तैयार है तो वहीं, कांग्रेस अन्य राज्यों की तरह ही अभी भी ऊहापोह में ही है। चुनावी रणनीति तो छोड़िए कांग्रेस यहां भी आपसी मतभेदों में ही उलझी है।

उत्तराखंड की राजनीतिक पिच पर इस बार आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने उतरेगी। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। लेकिन बीजेपी ने 5 सालों में जिस तरह मुख्यमंत्री के तीन चेहरों को बदल चुकी है उससे तो साफ है कि वो हिंदी भाषी इस राज्य में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। ज्ञात हो कि 70 सीटों वाले उत्तराखंड विधानसभा में बीजेपी वर्तमान में 57 पर आसीन है। उसकी कोशिश रहेगी कि वह अपनी पिछली जीत को दोहराए, जबकि कांग्रेस अपने बुरे दौर को खत्म करना चाहेगी। इस पहाड़ी राज्य में जहां 55 सामान्य सीटें हैं तो अनुसूचित जाति की 13 और अनुसूचित जनजाति की दो सीट आरक्षित है।

साल 2000 में मिली अलग राज्य की मान्यता  

उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग लगातार उठती रही थी। जिसे मानते हुए केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार साल 2000 में एक अलग राज्य की मान्यता दी। हालांकि तब इसे उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। लेकिन जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2007 में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। नित्यानंद स्वामी ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। फिर भगत सिंह कोश्यारी ने पदभार संभाला। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। उत्तराखंड को चिपको आंदोलन के लिए भी जाना जाता है। 

उत्तराखंड का उल्लेख ग्रंथों में भी 

उत्तराखंड का पौराणिक महत्त्व भी है। इसका उल्लेख पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और साहित्यों में भी किया गया है। संस्कृत में उत्तराखंड का अर्थ उत्तरी भाग होता है। यही वजह थी कि उत्तरांचल नाम से अलग राज्य बनने के बाद वहां के लोगों की मांग राज्य के नाम को बदलकर उत्तराखंड करने की थी। उत्तर प्रदेश से अलग हुए इस राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्र नदियों गंगा और यमुना का उदगम स्थल गंगोत्री और यमुनोत्री है। साथ ही इन नदियों के तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी हैं। इसी काऱण उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है। यह राज्य दो क्षेत्र कुमाऊं और गढ़वाल में बंटा है।  

देवभूमि के 79 प्रतिशत लोग साक्षर 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल आबादी एक करोड़ 86 हजार के करीब थी, जो देश की कुल आबादी का 0.83 प्रतिशत है। लिंगानुपात की बात करें तो प्रति 1,000 पुरुष की तुलना में  963 महिलाएं हैं। राज्य में साक्षरता दर 78.82 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता 87.39 फीसदी तो महिला साक्षरता 70.01 प्रतिशत है। 

हिन्दू बहुल राज्य 

उत्तराखंड आबादी के हिसाब से हिन्दू बहुल राज्य है। यहां कुल जनसंख्या का 83 प्रतिशत हिन्दू निवास करता है। मुस्लिम आबादी 13.95 प्रतिशत है, जबकि 0.37 फीसदी ईसाई आबादी है। सिख 2.34 प्रतिशत, बौद्ध 0.15 प्रतिशत जैन 0.09 प्रतिशत तो 0.12 फीसदी अघोषित आबादी है। उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं। 

2002: कांग्रेस को मिली सत्ता

पृथक राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में पहली बार विधानसभा चुनाव 2002 में हुआ। नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बहुमत के साथ सरकार बनाई। 70 सीटों वाले सदन में कांग्रेस ने 36 सीट हासिल की। कांग्रेस पार्टी ने करीब 27 प्रतिशत वोट हासिल किए। जबकि प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में बीजेपी रही। बीजेपी को कुल 19 सीटें हासिल हुई जबकि उसका मत प्रतिशत 25.45 था। गौर करने की बात है कि बीजेपी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में ज्यादा का अंतर नहीं होने के बावजूद सीटों में काफी का फासला था। बहुजन समाज पार्टी ने 10.93 फीसदी मतों के आधार पर 7 सीट प्राप्त करने में सफलता पायी।  इस चुनाव में कुल 28 पार्टियों ने अपना भाग्य आजमाया था।

2007: खंडूरी-निशंक ने बारी-बारी से संभाली कमान

उत्तराखंड में दूसरी बार विधानसभा चुनाव 2007 में हुआ। इस बार बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दो कदम दूर रह गई। हालांकि निर्दलीय के समर्थन से प्रदेश में भुवन चंद खंडूरी की सरकार बन गई। बीच में ही शीर्ष नेतृत्व ने खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल निशंक को राज्य की कमान सौंपी। लेकिन पांचवें साल में कदम रखते-रखते एक बार फिर सत्ता खंडूरी के ही हाथों सौंपी गई। इस चुनाव में बीजेपी को 34 सीटें मिली थी, जबकि वोट प्रतिशत 31.90 रहा था। 29.59 प्रतिशत वोट के साथ कांग्रेस 21 सीटें जीतकर दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तीसरे नंबर पर बहुजन सामाज पार्टी रही थी। बसपा को 11.76 प्रतिशत मत के साथ कुल 8 सीट हासिल हुई थी। इस चुनाव में कुल 37 पार्टियों ने भाग्य आजमाया लेकिन उन्हें जनता का उतना साथ नहीं मिला।

2012: कांग्रेस-बीजेपी में कांटे की टक्कर

पहले दो विधानसभा चुनाव में एक-एक बार जीत हासिल करने के बाद इस चुनाव में दोनों ही बड़ी पार्टियों यानि कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर देखने को मिली। कांग्रेस को नतीजों में जहां 32 सीट हासिल हुई, वही बीजेपी को 31 सीट के साथ विपक्ष में बैठना पड़ा। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो उसमें भी मामूली फर्क था। कांग्रेस को 33.79 फीसदी वोट मिले थे तो बीजेपी को 33.13 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा को 3 सीटें मिली थी तो 4 निर्दलीय विधायक भी जीतकर आए थे। बाद में इन्ही के समर्थन से कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा की सरकार बनी थी। हालांकि,केदारनाथ त्रासदी से निपटने में नाकाम रहने की वजह से पार्टी की हो रही फजीहत के कारण विजय बहुगुणा को हटाकर राज्य की कमान हरीश रावत को सौंप दी गई।

2017: प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी बीजेपी

केंद्र की मोदी सरकार के काम और अमित शाह के कुशल नेतृत्व ने यूपी की ही तरह इस राज्य में भी बड़ी जीत हासिल करने में सफलता पायी। बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ 70 में से 56 सीट जितने में सफल रही। आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक किसी पार्टी ने इस तरह की बड़ी जीत हासिल नहीं की थी। कांग्रेस मात्र 11 सीट ही जीत पायी थी। मोदी लहर में मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री तक चुनाव हार गए। इस बार मतदाताओं ने इस प्रकार का मन बनाया था कि बहुजन समाज पार्टी को भी एक सीट तक जीतने नहीं दिया। ये सभी वोट बीजेपी के खाते में गए। बीजेपी ने रिकॉर्ड 46.51 फीसदी वोट हासिल किया, जबकि कांग्रेस के हिस्से 33.49 प्रतिशत वोट ही आए।

अब एक बार फिर उत्तराखंड चुनावी मुहाने पर खड़ा है। कोई भी दल किसी तरह का जोखिम लेने के मूड में बिलकुल नहीं है। यही वजह है कि बीजेपी ने 5 सालों में तीन बार सीएम का चेहरा बदला। वहीं इस बार इस पहाड़ी राज्य के चुनावी दंगल में आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने उतर रही है। जबकि कांग्रेस अपनी साख बचाने और पिछली हार को भूलते हुए आगे बढ़ना चाहेगी। अब देखना है कि इस बार सियासी मैदान में कौन किसे शिकस्त देता है। राज्य ने अपने गठन से अब तक 10 मुख्यमंत्रियों को देखा है, राजनीतिक पंडितों और देश को इंतजार है कि 11 वां सीएम कौन होगा।

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