त्रिवेंद्र रावत: संघ प्रचारक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सफर

त्रिवेंद्र रावत का जन्म 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के खैरासैँण(जहरीखाल) में फौजी परिवार में हुआ था। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है। पीजी की पढ़ाई जर्नलिज्म से की है।

Update: 2021-03-09 09:25 GMT
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देहरादून: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर संकट मंडराता नजर आ रहा है। बताया जा रहा है कि बीजेपी के कई विधायक उनसे नाराज चल रहे हैं।

नाराजगी के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में है। हालांकि, त्रिवेंद्र अपने हाथों से सत्ता की कमान छोड़ेंगे कि नहीं यह तस्वीर अभी तक साफ नहीं हो पाई है।

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब कर प्रदेश की सियासी धड़कन बढ़ा दी है।

माना जाना रहा है कि जल्द ही उत्तराखंड की सियासी तस्वीर साफ हो जाएगी। तो आइए आज हम आपको त्रिवेंद्र सिंह रावत के सियासी सफरनामा के बारें में बताते हैं।

त्रिवेंद्र रावत: संघ प्रचारक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सफर(फोटो:सोशल मीडिया)

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त्रिवेंद्र सिंह रावत का राजनीतिक सफर

त्रिवेंद्र रावत का जन्म 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के खैरासैँण(जहरीखाल) में फौजी परिवार में हुआ था।

उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है। पीजी की पढ़ाई जर्नलिज्म से की है।

उन्होंने 19 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस) ज्वाइन किया।

वे संघ के विचारों से प्रेरित होकर उससे जुड़े थे।

उन्होंने दो साल बतौर स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में नियमित रूप से भाग लिया।

वर्ष 1981 आते-आते वे संघ की नीतियों से से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने बतौर प्रचारक काम करने का संकल्प लिया।

यही वो समय था जहां से वे राजनीति की तरफ कदम बढ़ाते चलें गये।

त्रिवेंद्र रावत: संघ प्रचारक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सफर(फोटो:सोशल मीडिया)

राज्य आंदोलन में निभाई थी बड़ी भूमिका, कई बार जा चुके हैं जेल

ये बात बेहद कम लोग ही जानते होंगे कि त्रिवेंद्र कई बार गिरफ्तार हुए और जेल भी गए।

वे साल 1983 से 2002 तक आरएसएस के प्रचारक रहे हैं और वर्ष 1993 में संघ की ओर से उन्हें बीजेपी में संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।

जिस वक्त राज्य आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उसमें में भी त्रिवेंद्र ने बड़ी भूमिका अदा की थी।

वह कई बार अरेस्ट हुए और जेल भेजे गए। 1985 में उन्हें देहरादून महानगर का प्रचारक बनाया गया।

वर्ष 1997 व 2002 में शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर उन्हें बीजेपी में संगठन महामंत्री के पद पर नियुक्त किया गया।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद पहली बार 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में डोईवाला से विजय प्राप्त की थी।

उसके बाद से उन्होंने अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा।

जब साल 2007 में विधानसभा चुनाव हुए तो उसमें भी डोईवाला से एक बार फिर से जीत दर्ज की। त्रिवेंद्र वर्ष 2007 से 2012 तक बीजेपी सरकार में कृषि मंत्री रहे।

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त्रिवेंद्र रावत: संघ प्रचारक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सफर(फोटो:सोशल मीडिया)

ऐसा नहीं है कि त्रिवेंद्र सिंह ने केवल जीत का ही स्वाद चखा है। बल्कि कई बार हार का भी मुंह देखना पड़ा है। बात वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव की है। जिसमें वह रायपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और हार गए।

इसके बाद फिर 2014 में डोईवाला सीट पर हुए उपचुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद उन्हें इसी साल झारखंड का प्रदेश प्रभारी बनाया गया।

त्रिवेंद्र रावत: संघ प्रचारक से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सफर(फोटो:सोशल मीडिया)

साल 2017 में ऐसे बने थे सीएम, सबसे ज्यादा समय तक किया राज

वर्ष 2017 की बात है। उस समय के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी जनादेश मिला था।

रावत ने डोइवाला विधानसभा सीट से कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को 24,869 वोटों से हराया था।

जिसके बाद सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिली।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को सीएम पद की शपथ ली थीं, जिसके बाद से वह अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं।

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र बीजेपी में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी पर रहने वाले नेताओं में शामिल हैं।

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