Uttarakhand Politics: भाजपा ने इसलिए खेला धामी पर दांव, एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश
Uttarakhand Politics: पुष्कर सिंह धामी को अभी तक मंत्री के रूप में भी काम करने का अनुभव नहीं है मगर उन्हें मुख्यमंत्री चुनकर भाजपा ने बड़ा सियासी दांव खेला है। धामी अभी काफी युवा हैं और उनकी उम्र मात्र 45 वर्ष ही है।
Uttarakhand News: उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री (Uttarakhand New CM) के रूप में पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) के नाम पर मुहर लगाकर भाजपा (BJP) नेतृत्व ने एक तीर से कई समीकरण साधने की कोशिश की है। 2017 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने जिन दो चेहरों त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) और तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) को मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का मौका दिया, वे दोनों गढ़वाल से ताल्लुक रखने वाले थे। अब पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री चुनकर भाजपा ने कुमाऊं को बैलेंस करने की कोशिश की है।
पुष्कर सिंह धामी को अभी तक मंत्री के रूप में भी काम करने का अनुभव नहीं है मगर उन्हें मुख्यमंत्री चुनकर भाजपा ने बड़ा सियासी दांव खेला है। धामी अभी काफी युवा हैं और उनकी उम्र मात्र 45 वर्ष ही है। इस नजरिए से उन्हें अभी सियासी मैदान में लंबी पारी खेलनी है। धामी के नाम पर मुहर लगाकर भाजपा ने उत्तराखंड की सियासत के लिए एक मजबूत नेता तैयार करने के साथ ही गुटबाजी करने वाले वरिष्ठ नेताओं को सख्त संदेश देने की भी कोशिश की है।
अब नहीं लगेगा कुमाऊं की उपेक्षा का आरोप
उत्तराखंड की सियासत में हमेशा गढ़वाल और कुमाऊं का मुद्दा सियासी रूप से गरमाया रहता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी करके भाजपा ने गढ़वाल को ही ज्यादा तवज्जो दी थी। इसे लेकर कुमाऊं के लोगों में नाराजगी भी दिख रही थी। इसके साथ ही भाजपा की कुमाऊं की अपेक्षा गढ़वाल पर ज्यादा मजबूत पकड़ रही है।
हालांकि भाजपा नेतृत्व की ओर से एक ठाकुर को हटाकर दूसरे ठाकुर को ही मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया है मगर बड़ा फर्क यह है कि जहां रावत का ताल्लुक गढ़वाल से था वही पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं से जुड़े हुए हैं। धानी मूल रूप से कुमाऊं के पिथौरागढ़ इलाके के रहने वाले हैं और मौजूदा समय में खटीमा सीट से विधायक हैं।
माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भाजपा के लिए चुनौती बनेंगे। हरीश रावत का ताल्लुक कुमाऊं से है। इसलिए भाजपा ने पहले ही बड़ी सियासी चाल चलते हुए कुमाऊं के धामी के नाम पर मुहर लगाई है। इससे कांग्रेस नेता हरीश रावत को भाजपा पर कुमाऊं की उपेक्षा करने का आरोप लगाने का मौका भी नहीं मिलेगा।
धामी को खेलनी है लंबी सियासी पारी
दो बार विधायक चुने जा चुके धामी को अभी सियासी मैदान में लंबी पारी खेलनी है क्योंकि उनकी उम्र अभी 45 साल ही है। धामी विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहने के साथ ही भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि धामी के रूप में नेतृत्व ने ऐसे मुख्यमंत्री को चुना है जो अभी लंबी पारी खेल सकता है। धामी एक बार भी मंत्री बने बिना मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए हैं और इसे लेकर राज्य के कुछ वरिष्ठ नेता नाराज भी बताए जा रहे हैं।
गुटबाज नेताओं को नेतृत्व का सख्त संदेश
हालांकि माना जा रहा है कि नेतृत्व की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश भी की गई है कि गुटबाजी में लिप्त होने पर उन्हें बड़ा मौका नहीं मिल सकेगा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी और आपसी खींचतान की खबरें दिल्ली पहुंचती रही हैं और इसी कारण भाजपा ने ऐसे नेताओं को मौका देने से परहेज किया है।
युवाओं का समर्थन पाने की कोशिश
वैसे पार्टी में यह बात भी उठाई जा रही है कि धामी को अगले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने के लिए काफी कम दिन मिलेंगे। नेताओं की यह भी शिकायत है कि यदि नेतृत्व को मुख्यमंत्री के रूप में धामी ही मंजूर थे तो यह फैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने के समय लिया जाना चाहिए था। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और सांसद अनिल बलूनी ने धामी का नाम आगे करने की कोशिश की थी मगर उस समय नेतृत्व की ओर से तीरथ सिंह रावत के नाम को मंजूरी दी गई।
तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान उनके कई बयानों और फैसलों को लेकर विवाद भी पैदा हुए। अब भाजपा ने धामी को चुनकर अपना फैसला दुरुस्त करने की कोशिश की है। संघ और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाने वाले धामी युवा मतदाताओं को प्रभावित करने में भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
किसान आंदोलन का भी असर
मोदी सरकार की ओर से बनाए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने पिछले साल से ही आंदोलन छेड़ रखा है। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तो इस आंदोलन का कोई असर नहीं है मगर हरिद्वार और उधम सिंह नगर में इसका असर जरूर दिखा है। नए मुख्यमंत्री चुने गए धामी की खटीमा सीट भी उधम सिंह नगर में ही है। धामी को सीएम बनाने के पीछे इसे भी कारण बताया जा रहा है।
विधानसभा चुनाव में होगी असली परीक्षा
सियासी जानकारों के मुताबिक विधानसभा चुनाव से पूर्व नेतृत्व परिवर्तन करके भाजपा दो बार बड़ा झटका खा चुकी है। फिर भी पार्टी ने इस बार चुनाव से पहले नेतृत्व बदलने का जोखिम उठाया है। उत्तराखंड को अलग राज्य बनाए जाने के बाद साल 2000 में भाजपा की ओर से नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन एक साल पूरा होने से पहले ही उनकी जगह भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी गई। उसके बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार झेलनी पड़ी। 2002 के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी की अगुवाई में सरकार बनाई थी।
इसके बाद भाजपा ने 2012 में भी चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया था। उस समय रमेश पोखरियाल निशंक की जगह बीसी खंडूरी की ताजपोशी की गई थी मगर एक बार फिर भाजपा कांग्रेस के हाथों चुनाव हार गई थी।
इसके बावजूद भाजपा की ओर से तीरथ सिंह को हटाकर भाजपा ने नए नेता की अगुवाई में चुनाव लड़ने का फैसला किया गया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव से पहले इतने कम दिनों में पुष्कर सिंह धामी अपने नेतृत्व कौशल से भाजपा की नैया पार लगा पाते हैं या नहीं। विधानसभा चुनाव में ही उनके नेतृत्व कौशल की असली परीक्षा होगी।