उत्तराखंड प्रदेश में विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली का झटका देने की तैयारी

Update:2018-02-23 14:09 IST

देहरादून: उत्तराखंड प्रदेश में विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली का जोर का झटका लगने की खबर से बवाल खड़ा हो गया है। उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) ने बिजली के दामों में 13.50 प्रतिशत प्रति यूनिट वृद्धि का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) को मंजूरी भेजा है। सूत्रों की मानें तो पहले यूपीसीएल ने चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए 22 प्रतिशत तक दाम बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन बाद में ऑडिट कमेटी ने इस पर आपत्ति जताई। जिसके बाद ऊर्जा निगम की बोर्ड बैठक में बढोत्तरी के दामों में संशोधन किया गया है। यूपीसीएल द्वारा भेजे के बिजली बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव पर यूईआरसी गहन मंथन के बाद जनसुनवाई शुरू करने जा रहा है। कार्रवाई पूरी होने पर मार्च के अंतिम सप्ताह में आयोग नए टैरिफ की घोषणा करेगा। बढ़ी हुई दरें राज्य में 1 अप्रैल से लागू होंगी।

इससे पूर्व में विद्युत दरों में बढ़ोतरी के ऊर्जा के तीनों निगमों के प्रस्ताव पर उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) ने पूर्व के बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव पर भी जन सुनवाई की थी। तब आयोग के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने ऊर्जा निगमों के प्रस्ताव पर विद्युत उपभोक्ताओं के सुझाव और शिकायतों को सुना था। सुनवाई में उपभोक्ताओं ने खुलकर अपनी नाराजगी जताई थी। वे उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) से सबसे ज्यादा नाराज नजर आए थे। साथ ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) और पावर ट्रांसमिशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) के टैरिफ दरों में बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर भी तर्कों के साथ सवाल उठाए थे। उपभोक्ताओं ने कहा था कि ऊर्जा निगम सुविधाएं बढ़ाते नहीं हैं, बस अनापशनाप खर्च बढ़ाकर उसे टैरिफ में जोड़ दिया जाता है।

उत्तराखंड में मांग से ज्यादा बिजली उत्पादन होता है लेकिन यूपीसीएल लगातार विद्युत दरों को बढ़ाने के पीछे घाटे में होने का तर्क दे रहा है। उपभोक्ताओं का तर्क है कि निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अनियमित तरीके से निशुल्क बिजली क्यों दी जा रही है? इसके अलावा मीटर नहीं होने की बात कहकर कनेक्शन नहीं दिये जाते हैं। उपभोक्ताओं को बाजार से मीटर क्यों नहीं खरीदने देते? आम उपभोक्ताओं के लिए सिर्फ बिजली दरें बढ़ाने की बात होती है। वीवीआईपी के यहां बिजली दी जाती है और आम उपभोक्ता बिजली कटौती से परेशान रहते हैं। कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत ऐसे कई वीवीआईपी हैं, जिन पर लाखों का बिजली बिल बकाया है। उनसे वसूली क्यों नहीं होती है। उपभोक्ताओं ने उस समय यूपीसीएल अधिकारियों की तरफ उंगली उठाते हुए कहा था कि आप अगर उन पर कार्रवाई नहीं कर सकते तो मान लीजिए कि आप गुलाम हैं और गुलामी कर रहे हैं। रुलक संस्था के अध्यक्ष ने तो साफ चेतावनी दी थी कि अगर डिफॉल्टर की सूची सार्वजनिक नहीं की तो सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया जाएगा।

बिजली विभाग के खेल पर विधायक उमेश शर्मा काऊ भी कह चुके हैं कि कोई उपभोक्ता अस्थायी संयोजन लेकर निर्माण कार्य करा लेता है और कार्य पूरा हो जाने के बाद आयोग के एक नियम की आड़ में उसे पूर्व में जमा पूरी धनराशि ब्याज के साथ वापस कर दी जाती है। जबकि, वहां स्थायी संयोजन भी किया जाना है। इस खेल में लाखों का गोलमाल किया जा रहा है, जिसका भार उपभोक्ताओं पर डाला जाता है।

उद्योगपति महेश शर्मा का कहना है कि इंडस्ट्री को सुविधाएं नहीं मिल रहीं। टैरिफ बढ़ाओ पर सुविधाएं भी तो दो। रात नौ बजे फाल्ट आ जाए तो शिकायत के बावजूद अगले दिन नौ बजे बाद फाल्ट ठीक किया जाता है। इंडस्ट्री को इससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। घाटे की बात करते हैं तो पिटकुल में बेहतर काम करने के नाम पर इंक्रीमेंट क्यों दिया जाता है? इसका बोझ भी उपभोक्ताओं पर डाल दिया जाता है।

उपभोक्ताओं का कहना है कि हाईटेंशन लाइनें आबादी वाले स्थानों से होकर गुजर रही हैं। कई जगह वह भवनों के बिल्कुल नजदीक हैं, जो लोगों के जीवन-मरण से जुड़ा मुद्दा है। ऊर्जा के संबंधित निगम अधिकारी इसे नजरअंदाज क्यों करते हैं?

सवाल यह भी है कि ऊर्जा निगम शादी समारोह के लिए महज 1600 रुपये में अस्थायी कनेक्शन दे देता है। एक गरीब आदमी जो शादी समारोह के दौरान कुछ ही यूनिट बिजली की खपता करता है और एक अमीर जो सैकड़ों यूनिट बिजली फूंक देता है दोनों से बराबर शुल्क क्यों? बिजली चोरी रोकने में नाकाम रहने पर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती है?

यूईआरसी को यूपीसीएल द्वारा बिजली दरों में वृद्धि के संशोधित प्रस्ताव सौंपे जाने के बाद कार्रवाई तेज कर दी गई है। यूपीसीएल ने दाम बढ़ोत्तरी के लिए महंगाई और निगम के घाटे को आधार बनाया है। सूत्रों के अनुसार निगम ने 191 करोड़ रुपये टैरिफ के प्रस्ताव में जोड़े हैं।

ऊर्जा के तीनों निगमों यूपीसीएल, यूजेवीएनएल और पिटकुल ने स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर के प्रस्ताव के अनुसार बिजली दरों में 22 फीसद की बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव तैयार किया था। इसके पीछे यह भी तर्क दिया जा रहा है कि राज्य में सार्वजनिक उपक्रमों और निजी कपंनियों की परियोजनाओं से सरकार को 12.5 फीसद बिजली रॉयल्टी के रूप में मिलती है। यह बिजली यूपीसीएल खरीदता है और सरकार को इसका पैसा देता है। इसमें आने वाले खर्च में से यूपीसीएल ने 191 करोड़ रुपये टैरिफ में जोड़े हैं। यूपीसीएल अधिकारियों के अनुसार इस धनराशि को बीपीएल और कृषि उपभोक्ताओं की सब्सिडी में समायोजित किया जाना है। हालांकि इसके लिए यूपीसीएल ने सरकार से स्वीकृति नहीं ली है।

गौरतलब यह भी है कि पिछले वर्ष अगस्त माह में बिजली के दाम 3.80 फीसदी तक बढ़ाए गए थे और छह माह बाद फिर से उपभोक्ताओं को एक बार फिर बिजली का झटका देने की तैयारी हो गई है।

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