World Environment Day: चीन नदियों को कर रहा दूषित, तिब्बत में 50 फीसदी जंगल हुए नष्ट

World Environment Day: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर भारत-तिब्बत समन्वय संघ ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।

Newstrack :  Network
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-06-07 07:41 GMT

विश्व पर्यावरण दिवस- मीटिंग (डिजाइन फोटो- सोशल मीटिंग) 

World Environment Day: विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के मौके पर भारत-तिब्बत समन्वय संघ ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती (Swami Chidananda Saraswati) ने हिस्सा लिया था। इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पृथ्वी उपभोग की वस्तु नहीं। आज धरती के शोषण के नहीं, पोषण की जरूरत है। धरती बचेगी, तभी प्रकृति बचेगी और तभी संस्कृति भी बचेगी।

कोरोना महामारी के बारे में स्वामी चिदानन्द ने कहा, "जब तक हम प्रकृति के समक्ष अपने घुटने नहीं टेकेंगे, तब तक ऑक्सीजन के सिलेंडर ही ढूंढते रहेंगे। आज इस कल्चर को बदलने का समय है। हम जिस जीवनशैली को अपना रहे हैं उसी के चलते नदियों का अस्तित्व खत्म हो रहा है। हवा पानी मिट्टी सब कुछ प्रदूषित है। इसे बदलने की आवश्यकता है। हमें स्वस्थ रहना है, तो उसके लिए पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ रखना होगा। पर्यावरण शुद्ध और स्वस्थ होगा तभी आगे आने वाली पीढ़ी भी स्वस्थ रहेगी।"

उन्होंने कहा, "आज यूकेलिप्टिस (Eucalyptus) जैसे पेड़ों का इस्तेमाल कर रहे है, जबकि हमें बजाय पीपल, नीम, वट, जामुन जैसे फलदार और औषधीय पौधों को लगाने चाहिए।" इस दौरान उन्होंने बताया कि वे अपने जन्मदिन पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम रखेगें।

स्वामी चिदानन्द 

वृक्षारोपण के लिए सरकार के भरोसे ना रहे- पतंजलि

इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में महाराष्ट्र के प्रमुख आयकर आयुक्त पतंजलि झान भी मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने वृक्षारोपण के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा, "वृक्षारोपण के लिए सरकार के भरोसे ना रहे, खुद ही आगे आना होगा। जंगल बचाने के लिए अच्छे से योजाना तैयार करना होगा। आज पीपल, नीम, बरगद जैसे पेड़ों के साथ-साथ तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय इनकी भी आवश्यकता बढ़ गई है। इसलिए पौधों का चयन करते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि वे धरती और मानव जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं।"

विक खेती को आगे बढ़ाए- डॉ. रघुवीर

इस कार्यक्रम में उत्तराखंड सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ. रघुवीर सिंह रावत भी जुड़े हुए थे। उन्होंने जैविक खेती के महत्वों के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा, "हमें जैविक खेती को आगे बढ़ाना होगा। जब जैविक खेती आगे बढ़ेगा, तब हमारा पर्यावरण शुद्ध होगा। आयुर्वेद सहित बहुत सारे शास्त्रों में लगभग 10,000 वृक्षों को चिन्हित किया गया है जो प्रकृति के लिए, मानव जीवन के लिए उपयोगी हैं। आज पौधारोपण तो होते हैं लेकिन उनका रक्षण नहीं हो पाता। पौधों को लगाने के बाद उनका संरक्षण करना भी जरूरी है।"

जिग्मे ने की इटको के बारे में चर्चा

वहीं, जिग्मे सुल्ट्रीम ने दिल्ली स्थित भारत-तिब्बत समन्वय केंद्र इटको के बारे में चर्चा करते हुए कहा, "चीन के कब्जे में कैलाश-मानसरोवर से निकली कई नदियों को चीन अप्राकृतिक रूप से बाधित व प्रदूषित कर चुका है, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी को भी उसने बाधित कर रखा है और इस तरह नियंत्रित किया है कि जब चाहे वह नॉर्थ ईस्ट में जनजीवन को दुष्प्रभावित कर सकता है।

जिग्मे सुल्ट्रीम

उन्होंने कहा, "तिब्बत के करीब 8764 पिघल चुके हैं। वहीं 200 से ज्यादा ग्लेशियर फटने के कगार पर है। तिब्बत में 46 हजार ग्लेशियर है। वहीं चीन तिब्बत के 50 फ़ीसदी जंगलों को खत्म कर चुका है। जिसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव यहां देखने को मिल रहा है।

बताते चलें कि इस कार्यक्रम में टेरियर्स फाउंडेशन के संस्थापक व बीटीएसएस के राष्ट्रीय पर्यावरण प्रभारी कर्नल डॉ. एचआरएस राणा भी उपस्थित थे। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, "हम प्रकृति से उतना ही संसाधन प्राप्त करें, जितना हमे आवश्यक हो। सबसे बड़ी बात है कि हम इन मुद्दों पर बस चर्चा करते है, इसे असल जिंदगी में लागू नहीं करते है। इसके लिए जरूरी है कि विद्यार्थी वर्ग इसके लिए आगे आए और इसे सार्थक बनाए। बता दें कि इस कार्यक्रम में करीब 200 लोगों ने हिस्सा लिया है। यह कार्यक्रम वर्चुअली आयोजित किया गया था।

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