Climate Change: सावधान अगर नहीं चेते तो भारी मानवीय त्रासदी दे रही है दस्तक

पहाड़ों और समुद्र में जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं बर्फ की चट्टाने सरक रही हैं। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के पारिस्थितिकीय संतुलन मंट जो बदलाव आ रहे हैं वह आने वाले समय में दुनिया के तमाम बड़े शहरों और समुद्र के तटवर्ती इलाकों और द्वीपों के खत्म होने का संकेत दे रहे हैं।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Monika
Update: 2021-08-10 08:55 GMT

जलवायु परिवर्तन (फोटो : सोशल मीडिया ) 

 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सोमवार को मानवता के लिए खतरनाक रेड कोड लेवल में जारी रिपोर्ट में मौजूदा परिदृश्य में वैश्विक तापमान के अगले 20 साल में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने या उससे अधिक होने का अनुमान लगाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया को जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से मानवता को बचाना है, तो दुनिया को अगले 20 वर्षों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारी कटौती करनी होगी, जिससे प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाएंगे। ये एक अलार्मिंग स्थिति है जो आने वाले बड़े खतरे का स्पष्ट संकेत दे रही है। पहाड़ों और समुद्र में जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं बर्फ की चट्टाने सरक रही हैं। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के पारिस्थितिकीय संतुलन में जो बदलाव आ रहे हैं वह आने वाले समय में दुनिया के तमाम बड़े शहरों और समुद्र के तटवर्ती इलाकों और द्वीपों के खत्म होने का संकेत दे रहे हैं। तात्कालिक विभीषिका को अगर उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया जितनी दरकार है तो भविष्य खतरनाक है।

हैरत की बात है कि वर्तमान में, जो वैश्विक औसत तापमान वृद्धि का स्तर है वह पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) के मुकाबले 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक है। तापमान वृद्धि का नतीजा यह हुआ है कि तमाम स्पीसीज इस दुनिया से विलुप्त हो गई हैं। अगर आंकड़ों को मानें तो इनकी संख्या लाखों में हैं। इसके अलावा जैसा कि रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है, 0.4 डिग्री सेल्सियस की और वृद्धि से गर्मी की लहरों की घटनाओं की संख्या बढ़ सकती है, लंबे समय तक गर्म और कम ठंड के मौसम आ सकते हैं जिसके चलते वैश्विक स्तर पर तेजी से समुद्र के स्तर में वृद्धि हो सकती है।

वर्तमान समय में गर्मी की स्थिति में अधिकतम तापमान 47-48 डिग्री तक जाता है जिसके चलते लू लगने से तमाम लोगों की मौत हो जाती है। लेकिन यदि इतना तापमान स्थाई रूप से बना रहे तो संकट खड़ा हो जाएगा। तापमान गर्म होने से तमाम बीमारियों की आमद हो सकती है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (फोटो : सोशल मीडिया ) 

सरकारों से तत्काल कार्रवाई का आग्रह

यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने संकट से निपटने के लिए सरकारों से तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि सभी देशों, विशेष रूप से जी-20 और अन्य प्रमुख कार्बन उत्सर्जक देशों से शुद्ध शून्य उत्सर्जन गठबंधन में शामिल होने की जरूरत पर जोर दिया है। गौरतलब है कि दुनिया के 120 से अधिक देशों ने कार्बन न्यूट्रल होने के अपने मक़सदों का एलान कर दिया है। इनमें सबसे हालिया देश चीन है, जो विश्व में कार्बन डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका में नए राष्ट्रपति के आगमन के साथ ही अमेरिका, दोबारा पेरिस जलवायु समझौते में शामिल हो गया है।

गुटेरेस ने कहा कि ग्लासगो में COP26 से पहले सभी देशों को विश्वसनीय, ठोस और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) और नीतियों के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करने की जरूरत है।

आईपीसीसी ने 14,000 रिपोर्टों का अध्ययन किया और इसके अनुमान ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य और तर्क पर आधारित प्रतीत होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सरकारें "कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में मजबूत और निरंतर कमी" पर विश्वास करती हैं और कार्य करती हैं, तो यह संभावित खतरे से बचने का एक मौका है।

झील (फोटो : सोशल मीडिया )

भारत को भी कई प्रभावों का सामना करना पड़ेगा

हिमालयी क्षेत्र में हिमनदों की झीलों के बार-बार फटने और निचले तटीय क्षेत्रों में बाढ़ के अलावा भारत को भी इसी तरह के प्रभावों का सामना करना पड़ेगा। भारत के लिए, वार्षिक औसत वर्षा में संभावित वृद्धि अगले कुछ दशकों में देश के दक्षिणी भागों में अधिक गंभीर वर्षा की घटनाओं के रूप में हो सकती है।

कुल मिलाकर, उच्च उत्तरी अक्षांश समुद्री बर्फ और ग्लेशियरों पर स्पष्ट प्रभाव के साथ सबसे बड़ी तापमान वृद्धि दिखाते हैं। यह ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के फैलने और सिकुड़ने को दिखाते हैं।

चक्रवाती तूफान (फोटो : सोशल मीडिया )

चक्रवाती तूफान की घटनाएं सदी के अंत तक हर साल

विशेषज्ञों के साथ रिपोर्ट में कहा गया है, समुद्र स्तर के बढ़ने या चक्रवाती तूफानों की घटनाएं जो पहले 100 साल में एक बार होती थीं, इस सदी के अंत तक हर साल हो सकती हैं।" जलवायु परिवर्तन के पीछे, ने पहली बार अधिक विस्तृत "जलवायु परिवर्तन का क्षेत्रीय मूल्यांकन" (विश्व स्तर पर 11 क्षेत्रों में) प्रदान किया है जो जोखिम मूल्यांकन और आवश्यक अनुकूलन उपायों को करने में मदद करेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में समुद्र के स्तर में वृद्धि (हिंद महासागर में सालाना 3.7 मिमी) की भविष्यवाणी में भारत के 7,517 किलोमीटर के विशाल समुद्र तट के निचले इलाकों में बाढ़ के रूप में देखी जा सकती है, खासकर बंदरगाह वाले शहरों जैसे मुंबई, चेन्नई, कोच्चि, कोलकाता, सूरत और विशाखापत्तनम आदि में देखा जा सकता है।

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