आतंकी ठिकानों पर ड्रोन हमलों के लिए भारत में बेस बनाना चाहता है अमेरिका
अमेरिकी विदेश मंत्री अन्थोनी ब्लिंकेन ने हाल ही में अमेरिकी संसद को सूचित किया कि आतंकवाद पर नजर रखने के मसले पर अमेरिका, भारत के साथ सघन बातचीत कर रहा है। ब्लिंकेन ने संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव की विदेश मामलों की समिति के सामने कहा कि नई दिल्ली से बातचीत चल रही है।
नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान के कंट्रोल के बाद मध्य एशिया और आसपास के क्षेत्र में आतंकवाद की नई फसल तैयार होने का ख़तरा बढ़ गया है। ऐसे में अफगानिस्तान के भीतर आतंकी इंफ्रास्ट्रक्चर पर ड्रोन के जरिये सर्विलांस और हमलों के लिए अमेरिका को आसपास एक बेस चाहिए जिसके लिए भारत से बातचीत की जा रही है अफगानिस्तान में जो कुछ चल रहा है उसमें अमेरिका और भारत के बीच नई साझेदारी और सहयोग की इबारत लिखी जा रही है।
चूँकि अब अफगानिस्तान में अमेरिका का कोई ठिकाना नहीं रह गया है सो उसे अफगानिस्तान पर नजर रखने के लिए एक मुफीद जगह चाहिए। पाकिस्तान पर अमेरिका को अब भरोसा नहीं है क्योंकि पाकिस्तान खुद तालिबान का पोषक है और चीन का गहरा दोस्त बन चुका है। ऐसे में अमेरिका को भारत के सहयोग की जरूरत आन पड़ी है। भारत और अमेरिका के बीच पहले से रक्षा संबंधी कई समझौते किये जा चुके हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्री का बयान
अमेरिकी विदेश मंत्री अन्थोनी ब्लिंकेन ने हाल ही में अमेरिकी संसद को सूचित किया कि आतंकवाद पर नजर रखने के मसले पर अमेरिका, भारत के साथ सघन बातचीत कर रहा है। ब्लिंकेन ने संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव की विदेश मामलों की समिति के समक्ष कहा कि नई दिल्ली से बातचीत चल रही है। हुआ यह कि ब्लिंकेन से रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि मार्क ग्रीन ने सवाल पूछा था कि - क्या अमेरिका, भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित 'ठिकानों' का इस्तेमाल करने के लिए बातचीत कर रहा है ताकि तालिबान और पाकिस्तानी आईएसआई के बीच गठजोड़ के चलते अफगानिस्तान के भीतर और आसपास अमेरिका के लिए जो संभावित खतरे बन रहे हैं उनसे निपटा जा सके?
ग्रीन ने इस बारे में अमेरिका की 'ओवर द होराइज़न' क्षमताओं के इस्तेमाल की बात सीधे तौर पर पूछी। 'ओवर द होराइजन' क्षमता का मतलब 'ड्रोन' का इस्तेमाल करना होता है। सो, सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिकी विदेश मंत्री से पूछा गया था कि क्या अमेरिका अपने ड्रोन लांच करने के लिए भारत के ठिकानों का इस्तेमाल करना चाहता है? इस सवाल पर ब्लिंकेन ने सिर्फ इतना कहा कि नई दिल्ली से गहरी बातचीत चल रही है। ब्लिंकेन ने कहा कि जहाँ तह ओवर द होराइजन क्षमताओं और हमारी योजनाओं की बात है तो उसके बारे में किसी और सन्दर्भ में जानकारी दी जायेगी।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के चलते बिडेन प्रशासन की काफी आलोचना की जा रही है कि उसने अफगानिस्तान के लोगों को मुसीबत में डाल दिया है। इस पर प्रेसिडेंट बिडेन और सरकार के सीनियर अधिकारियों का कहना रहा है कि अमेरिका ने 9/11 हमले के साजिशकर्ताओं को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान में अभियान शुरू किया था।चूँकि अभियान के उद्देश्य हासिल कर लिए गए इसीलिए सेना को वापस बुला लिया गया।
अब सेना भेजने की जरूरत नहीं
सच्चाई यही है कि आतंकवाद का ख़तरा न सिर्फ मौजूद है बल्कि पूरी दुनिया में यह फैलता जा रहा है। लेकिन अमेरिकी अधिकारीयों का तर्क है कि अब किसी खतरे से निपटने के लिए अमेरिका को जमीनी सेना कहीं भेजने की जरूरत नहीं है। ऐसा मुमकिन हुआ है 'ओवर द होराइजन' क्षमता के विकास के चलते। अमेरिका का तर्क है कि चूँकि सर्विलांस और हमलों के लिए उच्च क्षमता की ड्रोन तकनीक डेवलप कर ली गयी है सो अब अफगानिस्तान में सैनिकों को रखने का कोई औचित्य नहीं था। अमेरिका का यह कहना सही है लेकिन इसमें एक रुकावट ड्रोन लांच करने के लिए जरूरी ठिकानों की है। ड्रोन लांच करने के लिए अफगानिस्तान में जिन ठिकानों का इस्तेमाल किया जाता था वो अब अमेरिका के हाथ से निकल चुके हैं। अफगानिस्तान से करीबी एयरबेस क़तर और कुवैत में हैं, खाड़ी के देशों में भी अमेरिका के मतलब के ठिकाने हैं। लेकिन ये सभी एयरबेस अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से दूर पड़ते हैं जहाँ अमेरिका को खास तौर पर नजर रखनी है। पाकिस्तान के इसी सीमाई इलाके में आतंकी टारगेट मौजूद हैं। रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि मार्क ग्रीन ने ब्लिंकेन से सवाल पूछते वक्त ये बातें भी कहीं थीं। इस सीमाई इलाके पर नजर रखने के लिए सबसे करीबी देश भारत ही है।
अमेरिकी कमांडरों की यात्रा
अमेरिका की स्पेशल ऑपरेशंस कमांड के कमांडर, जनरल रिचर्ड डी क्लार्क ने जुलाई में नई दिल्ली की यात्रा की थी और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाणे से मुलाक़ात की थी। इसके बाद अगस्त में यूनाइटेड स्टेट्स इंडो पैसिफ़िक कमांड के कमांडर एडमिरल जॉन सी एक्वीलिनो ने भी नई दिल्ली का दौरा किया था और चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत से मुलाक़ात की थी।
भारत दरअसल अमेरिका का एक बड़ा रक्षा सहयोगी है।,दोनों देशों ने 2016 में एक समझौता किया था जिसके तहत एक दूसरे के विमान, पोत और कार्मिकों को सहयोग देने का एक तंत्र बनाने बनाने की बात कही गयी है। इसके बाद 2018 में संचार एवं सुरक्षा संबंधी समझौता तथा 2020 में सहयोग एवं आदान-प्रदान का एक समझौता किया गया।
कुल मिला कर अब आतंकवाद, खास कर अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर नजर रखने के लिए कवायद चल रही है जिसमें भारत की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी।