चीन व यूरोपीय देशों में छाया बड़ा ऊर्जा संकट, भारत पर भी असर पड़ने की आशंका

चीन और यूरोप इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जबकि भारत भी अछूता नहीं है।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-09-30 11:01 IST

चीन व यूरोपीय देशों में छाया बड़ा ऊर्जा संकट (social media)

दुनिया पर इन दिनों भारी ऊर्जा संकट ( Industrial Production) छाया हुआ है। चीन और यूरोप (China andEurope) बिजली (Electricity less) की कमी से बुरी तरह प्रभावित हैं। औद्योगिक उत्पादन घट गया है, लम्बे पवार कट किये जा रहे हैं। फॉसिल फ्यूल यानी कोयले, गैस, तेल की तेजी से बढ़ती कीमतों का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। कोयले के दाम इन दिनों 13 साल के उच्चतम स्तर पर हैं। कच्चा तेल भी 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है।इस संकट की वजह कई हैं। जल और पवन टरबाइन से बिजली उत्पादन में गिरावट, कोयले और प्राकृतिक गैस की सप्लाई में कमी और इनकी आसमान छूती कीमतें ऊर्जा संकट को ऊंचे स्तर पर पहुंचा चुकी हैं। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भी इस संकट में योगदान है।

चीन और यूरोप इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जबकि भारत भी अछूता नहीं है। अनुमान है कि प्राकृतिक गैस की डिमांड आगे बहुत ही ज्यादा बढ़ेगी, जिसका सीधा असर ग्लोबल महंगाई के रूप में सामने आएगा। प्राकृतिक गैस की डिमांड इसलिए बढ़नी है क्योंकि सभी देश कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए पेरिस समझौते से बंधे हुए हैं। चीन का हाल यह है कि जून से ही वहां बिजली की राशनिंग जारी है। चीन के औद्योगिक हब गुआंगडोंग में कई कारखानों ने उत्पादन घटा दिया है । जबकि कई कारखाने बन्द हो गए हैं। कुछ प्रान्तों में घरेलू बिजली सप्लाई भी प्रभावित हुई है, बिजली कटौती की जा रही हैं। कई शहरों में एयरकंडीशनिंग और लिफ्ट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई है। चीन में गैस और पेट्रोलियम पदार्थों की अत्यधिक मांग ने इनकी कीमतों को और ऊंचा खिसका दिया है।

चीन ने ऊर्जा संकट से निपटने के लिए लम्बी प्लानिंग भी कर ली है । इसके तहत कतर से 52.5 मिलियन मेगाटन एलएनजी (तरल नेचुरल गैस) खरीदने का करार किया है। कतर जनवरी, 2022 से चीन को एलएनजी की सप्लाई शुरू कर देगा। यह सिलसिला 15 साल तक चलेगा।चीन की तरह यूरोप का संकट भी प्राकृतिक गैस की बेतहाशा बढ़ती कीमतों और कोयले की घटी सप्लाई की वजह से उत्पन्न हुआ है। यूरोप में पवन ऊर्जा का उत्पादन भी हाल के महीनों में घटा है, जिसके चलते कोयले और पेट्रोल डीजल पर निर्भरता बढ़ी है। यूरोप में नेचुरल गैस की कमी से औद्योगिक उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। उर्वरक कारखानों ने तो अपना उत्पादन घटा दिया है। यूरोप में सर्दियां आने के साथ प्राकृतिक गैस की मांग बढ़ेगी सो उस समय हालात और बिगड़ने की आशंका है। यूरोप में ठंड के महीनों में पानी व घर गर्म करने के लिए नेचुरल गैस का इस्तेमाल किया जाता है।

कार्बन उत्सर्जन घटाना है

दुनिया भर के देश कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। चीन 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने यानी जीरो कार्बन उत्सर्जन वाला देश बनने के लिए कृत संकल्प है। इसके लिए चीन को कोयले का इस्तेमाल खत्म करना होगा, पेट्रोल डीजल और लकड़ी जैसे अन्य फॉसिल फ्यूल का उपभोग घटाना होगा। नेचुरल गैस तथा अन्य वैकल्पिक ऊर्जा साधनों को अपनाना होगा। चीन फरवरी, 2022 में होने वाले शीतकालीन ओलम्पिक खेलों से पहले बीजिंग में प्रदूषण का स्तर घटा कर कार्बन कंट्रोल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करना चाहता है। चीन ने अपने लिए जो टारगेट तय किया है उसका परिणाम सामने है। चीन में दो तिहाई बिजली उत्पादन कोयले से चलने वाले बिजली संयत्रों से होता है। अब कोयले के उपभोग पर कंट्रोल से बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है।

यूरोपियन यूनियन का टारगेट

यूरोपियन यूनियन ने भी 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने और 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 55 फीसदी तक घटाने का लक्ष्य रखा है। इस क्रम में आगे बढ़ते हुए यूरोप के देश कोयले पर अपनी निर्भरता घटाने और पवन टरबाइन तथा सोलर ऊर्जा अपनाने में लगे हुए हैं। कोयला त्यागने और ग्रीन ऊर्जा अपनाने के बीच के गैप को प्राकृतिक गैस के जरिये भरा जाना है।

भारत पर असर

दुनिया में कोयले के दाम बढ़ने से कोल इंडिया लिमिटेड जैसे घरेलू सप्लायर्स ने अपना आउटपुट बढ़ा कर स्थिति कुछ हद तक संभाली है । लेकिन सप्लाई तब भी पूरी नहीं हो पा रही है। इस वजह से कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ा है। राशनिंग भी की गई है । जिसके तहत अलमुनियम और अन्य उत्पादकों को कोयले की सप्लाई बंद कर दी गई है। भारत का एलएनजी इम्पोर्ट अब बहुत महंगा हो गया है। दाम थमने के आसार नहीं हैं। अच्छी बात यह है कि भारत में बिजली उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा कोयला आधारित संयंत्रों से होता है । जबकि बिजली उत्पादन में प्राकृतिक गैस का हिस्सा सिर्फ 5 फीसदी है। सो गैस के दाम बढ़ने का इम्पैक्ट बिजली उत्पादन पर नहीं होने वाला है। लेकिन कोयले के फ्रंट पर स्थिति ठीक नहीं है। अगस्त में बिजली संयत्रों में कोयले का स्टॉक बहुत नीचे चला गया था। ऐसे में अन्य उद्योगों को मिलने वाला कोयला बिजली संयत्रों में डाइवर्ट करना पड़ा था।

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