Corona Cases Country Wise: लोकतंत्र देशों में कोरोना केसों की बढ़ती जा रही तादाद, मनमानी का मिला लाइसेंस
Corona Cases Country Wise: IIDEA की रिपोर्ट में कहा कि तानाशाही शासकों ने महामारी (Corona Virus) से निपटने में दूसरी सरकारों से बेहतर काम किया हो। लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था ‘IIDEA’ के मुताबिक ऐसे देशों की संख्या जिनमें लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं इस वक्त जितनी अधिक है उतनी कभी नहीं रही।
Corona Cases Country Wise: दुनिया में ऐसे देशों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही हैं। इनमें भारत भी शामिल है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (IIDEA) की एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है। रिपोर्ट में कोरोना महामारी (Corona Virus) का खास तौर पर जिक्र है और कहा गया है कि महामारी (Coronavirus) के दौरान शासकों और सरकारों का रवैया ज्यादा तानाशाहीपूर्ण हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि तानाशाही शासकों ने महामारी (Corona Virus) से निपटने में दूसरी सरकारों से बेहतर काम किया हो। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी ने तो बेलारूस, क्यूबा, म्यांमार, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में जनता के दमन को सही ठहराने के लिए और असहमति को चुप करवाने के लिए अतिरिक्त तौर-तरीके उपलब्ध करवा दिए, सरकारों को मनमानी का लाइसेंस मिल गया।
लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था 'IIDEA' के मुताबिक ऐसे देशों की संख्या जिनमें लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं इस वक्त जितनी अधिक है उतनी कभी नहीं रही। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक लोक-लुभावन राजनीति, आलोचकों को चुप करवाने के लिए कोरोना महामारी का इस्तेमाल, अन्य देशों के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने का चलन और समाज को बांटने के लिए फर्जी सूचनाओं का प्रयोग जैसे कारकों के चलते लोकतंत्र खतरे में है।
आईडिया (IIDEA) ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है जिसमें कहा गया है कि पहले से कहीं ज्यादा देशों में अब लोकतंत्र अवसान पर है। ऐसे देशों की संख्या इतनी अधिक पहले कभी नहीं रही, जिनमें लोकतंत्र में गिरावट हो रही हो। रिपोर्ट में ब्राजील (Brazil), भारत (India) और अमेरिका (America) जैसे बड़े और स्थापित लोकतंत्रों को लेकर भी चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्राजील (Brazil) और अमेरिका (America) में राष्ट्रपतियों ने ही देश के चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए जबकि भारत में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है।
'आईडिया' ने अपनी रिपोर्ट में आंकलन का आधार सरकार और न्यायपालिका की आजादी, मानवाधिकार व मीडिया की आजादी जैसे मूल्यों को भी रखा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में सबसे ज्यादा नाटकीय बदलाव अफगानिस्तान में देखा गया जहां पश्चिमी सेनाओं के विदा होने से पहले ही तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। म्यांमार में 1 फरवरी 2020 को हुए तख्तापलट ने भी लोकतंत्र को ढहते देखा।
अफ्रीका का बुरा हाल
लोकतंत्र के मामले में अफ्रीका (Africa) का हाल सबसे बुरा रहा। यहां सूडान में इस साल ऐसी दो ऐसी घटनाएं हुईं। एक घटना सितंबर में हुई जिसमें सरकार के तख्ता पलट की विफल कोशिश हुई। लेकिन अक्टूबर में फिर प्रयास किया गया जिसमें जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया और 25 अक्टूबर 2021 को सूडान में सेना में आपातकाल लागू कर दिया।
माली में तो दो बार सरकार का तख्ता पलटा गया जबकि ट्यूनिशिया में राष्ट्रपति ने संसद भंग कर आपताकालीन शक्तियां हासिल कर लीं। 5 सितंबर 2021 को पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को हिरासत में ले लिया और संविधान को अवैध घोषित कर दिया। जिम्बाब्वे में 2017 में सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और रॉबर्ट मुगाबे को गिरफ्तार कर लिया था। पश्चिमी अफ्रीका में बुरकीना फासो ने सबसे सफल तख्तापलट का झेला जिसमें सात सफल अधिग्रहण और केवल एक असफल तख्तापलट हुआ। खनिज संपन्न मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 2013 में तख्तापलट हुआ था। अफ्रीका की हालत पर सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि सैन्य तख्तापलट वापस आ गए हैं।
महामारी की भूमिका
आईडिया की रिपोर्ट में हंगरी (Hungary), पोलैंड (Poland), स्लोवेनिया (Slovenia) और सर्बिया (Serbia) जैसे यूरोपीय देशों का नाम गिनाया गया है जिनमें लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। तुर्की ने 2010 से 2020 के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी है। रिपोर्ट के अनुसार, 70 प्रतिशत आबादी ऐसे मुल्कों में रहती है जहां या तो लोकतंत्र है ही नहीं, या फिर नाटकीय रूप से घटता जा रहा है। रिपोर्ट में कोरोना महामारी का खास तौर पर जिक्र है और कहा गया है कि महामारी के दौरान शासकों और सरकारों का रवैया ज्यादा तानाशाहीपूर्ण हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि तानाशाही शासकों ने महामारी से निपटने में दूसरी सरकारों से बेहतर काम किया हो। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी ने तो बेलारूस, क्यूबा, म्यांमार, निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे देशों में जनता के दमन को सही ठहराने के लिए और असहमति को चुप करवाने के लिए अतिरिक्त तौर-तरीके उपलब्ध करवा दिए, सरकारों को मनमानी का लाइसेंस मिल गया।
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