दुश्मनों का खात्मा करने वाली शक्तिशाली फोर्स, खतरनाक ऑपरेशंस में भी जीत हासिल

इजरायल की इस महाशक्तिशाली स्पेशल फोर्स का गठन 1957 के दशक में हुआ था। उस समय ये उद्देश्य लेकर स्पेशल फोर्स बनाई गई थी, कि इजरायल के पास एक ऐसी स्पेशल फोर्स होनी चाहिए, जोकि देश की रक्षा के लिए बाहर खुफिया और काउंटर टेरेरिज्म या फिर वारफेयर मिशन के तहत मौर्चा संभाल सके।

Update: 2021-02-26 12:29 GMT
इजरायल की इस महाशक्तिशाली स्पेशल फोर्स का गठन 1957 के दशक में हुआ था। उस समय ये उद्देश्य लेकर स्पेशल फोर्स बनाई गई थी।

नई दिल्ली। इजरायल की इस महाशक्तिशाली स्पेशल फोर्स का गठन 1957 के दशक में हुआ था। उस समय ये उद्देश्य लेकर स्पेशल फोर्स बनाई गई थी, कि इजरायल के पास एक ऐसी स्पेशल फोर्स होनी चाहिए, जोकि देश की रक्षा के लिए बाहर खुफिया और काउंटर टेरेरिज्म या फिर वारफेयर मिशन के तहत मौर्चा संभाल सके। बस इसी उद्देश्य के साथ ब्रिटेन स्पेशल एयर सर्विस की तर्ज पर सायरेत मेतकल स्पेशल फोर्स का गठन हो गया। बता दें, इस समय ये कमांडोज दुनिया के सबसे बेधड़क और जबरदस्त फोर्स माने जाते हैं।

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आतंकवाद से मुकाबला

इजरायल में इसके बाद 1960 के दशक में सायरेत मेतकल ने अपने आपरेशन का दायरा बढ़ाते हुए इसमें आतंकवाद से मुकाबला और बंधकों को छुड़ाने जैसा कामों को भी शामिल कर दिया। बेधड़क इस फोर्स ने तब इजरायल के अंदर और बाहर दोनों जगह कई अहम अभियानों को सफलता से अंजाम दिया।

लेकिन सन् 1974 में उन्हें बंधकों को छुड़ाने में नाकामयाबी ही हाथ लगी। फिर इसके बाद उनकी भूमिका को कुछ कम कर दिया गया। और इसके बाद अब वो विदेश में सीमित तौर पर ही आतंकवाद विरोधी और बंधकों को छुड़ाने संबंधी अभियानों में शिरकत करते हैं।

फोटो-सोशल मीडिया

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कैंप को गिबुस के नाम से जाना जाता

वैसे शुरू में इस फोर्स में नियुक्ति के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं था। पर इस फोर्स के लिए सैनिक गुप्त तरीके से चयनित किये जाते थे। उनकी योग्यता के तौर पर उनकी क्षमताओं और पुराने अनुभवों को देखा जाता था। 70 के दशक से इसका रिक्रूटमेंट प्रोग्राम सार्वजनिक कर दिया गया। वहीं इसके सेलेक्शन को कैंप को गिबुस के नाम से जाना जाता है। बता दें, ये साल में दो बार होता है।

इजरायल की इस फोर्स में शामिल होने के लिए कई दिनों की कड़ी ट्रेनिंग और फिजिकल टेस्ट से गुजरना होता है। इस टेस्ट की एक खास बात ये होती है कि उसमें आपको टेस्ट के दौरान सोने की अनुमति नहीं होती। जिससे सेलेक्ट करने वालों की सीमाओं का पता चल सके। साथ ही टेस्ट पर डॉक्टर्स और मनोवैज्ञानिक लगातार खास नजर रखते हैं जिससे सेलेक्शन के दौरान कोई हादसा नहीं हो।

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