Pervez Musharraf: जब दाऊद का नाम सुन मुशर्रफ की हालत हुई खराब, आडवाणी के प्रस्ताव के बाद फेल हुई शिखर बैठक
Pervez Musharraf latest News: परवेज मुशर्रफ के भारत यात्रा के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उनके सामने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया था जिससे उनके चेहरे का रंग उड़ गया था।
Pervez Musharraf: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का आज दुबई में निधन (Pervez Musharraf Passes Away) हो गया। मुशर्रफ को हार्ट और कई अन्य बीमारियों के चलते दुबई के एक अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। वे गुरुवार से ही वेंटिलेटर पर थे और शुक्रवार को उनका निधन हो गया। परवेज मुशर्रफ 2001 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे और इसके अलावा वे पाकिस्तान के आर्मी चीफ भी रहे।
भारत के साथ कारगिल की जंग (Kargil War) में परवेज मुशर्रफ की ही बड़ी भूमिका मानी जाती है। हालांकि इसके बावजूद तत्कालीन प्रधान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 2001 में आगरा में दोनों देशों के बीच शिखर बैठक हुई थी। इस यात्रा के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मुशर्रफ के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया था जिससे उनके चेहरे का रंग उड़ गया था। इसी कारण आगरा में दोनों देशों के बीच हुई शिखर बैठक भी फेल हो गई थी।
इस तरह बनी थी मुशर्रफ की यात्रा की योजना
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की अतीत में कई बार कोशिशें की गईं और इन कोशिशों में आगरा शिखर बैठक का उल्लेख भी जरूर किया जाता है। दोनों देशों के बीच इस शिखर बैठक की योजना भी अनोखी तरह बनी थी। दरअसल, मई 2001 में एक दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लालकृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह के साथ लंच कर रहे थे। देश के इन तीनों बड़े नेताओं पर बीच में पाकिस्तान को लेकर चर्चा हो रही थी। तभी आडवाणी ने ऐसी बात कही जिसकी उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी।
आडवाणी ने कहा कि अटल जी, आप पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) को वार्ता करने के लिए भारत क्यों नहीं आमंत्रित करते? दरअसल आडवाणी ने यह प्रस्ताव काफी सोच समझ कर दिया था। उस समय मुशर्रफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह अकेले पड़ गए थे और वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बदलने को आतुर थे। जसवंत सिंह के समर्थन के बाद अटल जी को आडवाणी का यह प्रस्ताव उचित लगा और उन्होंने इस पर अपनी मंजूरी दे दी। इस तरह 2001 में परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार हुई।
पहले ही पड़े वार्ता फेल होने के बीज
दोनों देशों के बीच वार्ता के लिए ऐतिहासिक शहर आगरा (Agra) को चुना गया। 2001 में 15-16 जुलाई को आगरा के जेपी पैलेस होटल (Jaypee Palace Hotel) में दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता हुई। आगरा पहुंचने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपनी पत्नी सबा मुशर्रफ के साथ मुहब्बत की निशानी माने जाने वाले ताजमहल का दीदार भी किया था। दोनों देशों के बीच आगरा में शिखर बैठक तो जरूर हुई मगर यह बैठक पूरी तरह फेल साबित हुई। दरअसल, इस वार्ता के फेल होने के बीज मुशर्रफ के दिल्ली पहुंचते ही पड़ गए थे।
कारगिल युद्ध के करीब 2 वर्ष बाद 14 जुलाई 2001 को मुशर्रफ दिल्ली पहुंचे थे। दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में मुशर्रफ की तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान आडवाणी ने मुशर्रफ के सामने कुछ ऐसी बातें कहीं जिन्हें सुनकर मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया।
दाऊद इब्राहिम का नाम सुनकर उड़ा चेहरे का रंग
लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा माई कंट्री, माई लाइफ में इस मुलाकात का ब्योरा भी लिखा है। मुशर्रफ से मुलाकात के दौरान आडवाणी ने अपनी तुर्की यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि तुर्की ने भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaties) की है। आडवाणी ने मुशर्रफ से कहा कि क्यों ना भारत और पाकिस्तान भी प्रत्यर्पण संधि कर लें। इस प्रत्यर्पण संधि से दोनों देशों को फायदा होगा और हम एक-दूसरे के देश में छिपे अपराधियों को पकड़कर कानून के कटघरे में लाने में कामयाब होंगे।
आडवाणी के इस प्रस्ताव पर मुशर्रफ ने शुरुआत में तो कहा कि हां क्यों नहीं। हम दोनों देशों को प्रत्यर्पण संधि जरूर करनी चाहिए। मुशर्रफ के इतना कहते ही आडवाणी ने दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) का नाम ले लिया जिसे सुनकर मुशर्रफ के होश फाख्ता हो गए। आडवाणी ने मुशर्रफ के सामने प्रस्ताव रखा कि औपचारिक रूप से इस संधि को लागू करने से पहले पाक 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी दाऊद इब्राहिम को भारत के हवाले कर दे ताकि दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया को मजबूती से पटरी पर लाया जा सके।
मुशर्रफ ने सच्चाई से मोड़ा मुंह
आडवाणी की ओर से दाऊद इब्राहिम का नाम सुनते ही मुशर्रफ के चेहरे का रंग उड़ गया। अब मुशर्रफ को आडवाणी का प्रस्ताव चालबाजी लगने लगा। उन्होंने कहा कि आडवाणी जी, मैं आपकी चालबाजी समझ गया हूं मगर मैं आपको स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में नहीं है।
खुफिया एजेंसियां समय-समय पर इस बात की पुख्ता जानकारी देती रही हैं कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में ही छिपा हुआ है मगर मुशर्रफ इस सच्चाई से साफ मुकर गए। आडवाणी का यह प्रस्ताव मुशर्रफ को काफी नागवार गुजरा और दोनों देशों के बीच शिखर बैठक से पहले ही उसके फेल होने की जमीन तैयार हो गई।
फेल हो गई आगरा शिखर बैठक
इसके बाद दोनों देशों के बीच आगरा में शिखर बैठक हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और परवेज मुशर्रफ के बीच हुई बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। बैठक के आखिरी दिन 16 जुलाई को संयुक्त प्रस्ताव लाया जाना था मगर पाकिस्तान न तो शिमला समझौते का जिक्र करने को तैयार था और न लाहौर समझौते का। कश्मीर में सीमा पार से आतंकवादियों को मिल रही मदद का जिक्र भी करने को पाकिस्तान तैयार नहीं था। पाकिस्तान की ओर से लगातार कश्मीर के मुद्दे पर ही बातचीत पर जोर दिया जा रहा था।
यही कारण था कि दोनों देशों के बीच हुई बातचीत पूरी तरह फेल साबित हुई और मुशर्रफ खाली हाथ पाकिस्तान लौट गए। इस यात्रा के दौरान मुशर्रफ को अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भी जाना था मगर वे दरगाह पर भी नहीं गए।
अपनी आत्मकथा में भी मुशर्रफ ने किया जिक्र
मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा इन द लाइन आफ फायर ने इस वाकए का जिक्र करते हुए लिखा है कि मैंने बाजपेयी से कह दिया था कि लगता है कोई ऐसा शख्स है जो हम दोनों से भी ऊपर है जिसके आगे हम दोनों की नहीं चली। हम दोनों शर्मिंदा हो गए। आडवाणी ने अपनी आत्मकथा माई कंट्री माई लाइफ में इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है कि हालांकि मुशर्रफ ने मेरा नाम तो नहीं लिया मगर साफ तौर पर उनका इशारा मेरी ओर ही था।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में 2001 में अटल और मुशर्रफ की शिखर वार्ता की खूब चर्चा हुई थी मगर पाकिस्तान की जिद के कारण भारत की ओर से की गई एक ठोस पहल बेकार साबित हुई थी। पाकिस्तान का रवैया आज भी नहीं बदला है और वह आज भी कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में जुटा हुआ है।
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