Finland-Sweden NATO Membership: यूक्रेन की तरह क्या स्वीडन, फिनलैंड के खिलाफ भी रूस छेड़ेगा युद्ध?
फिनलैंड-स्वीडन जैसे रूस के पड़ोसी देशों को लगने लगा कि NATO में शामिल होने से उन्हें वो सुरक्षा मिल जाएगी जो उनके लिए आवश्यक है। तभी दोनों देशों ने NATO मेंबरशिप के लिए आवेदन किया।
Finland-Sweden NATO Membership : रूस (Russia) के दो पड़ोसी राष्ट्र फिनलैंड और स्वीडन (Finland-Sweden NATO Membership) ने 18 मई को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की सदस्यता के लिए आवेदन किया। इन दोनों देशों ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) की धमकियों को दरकिनार करते हुए ये कदम उठाया। स्वीडन और फिनलैंड के इस कदम रूस के लिए झटका माना जा रहा है। अब सवाल उठता है कि क्या रूस यूक्रेन की तरह स्वीडन और फिनलैंड पर भी हमला करेगा।
दरअसल, रूस के अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमले के बाद से ही यूरोपीय देशों (European countries) की चिंताएं बढ़ गई थीं। उन्हें इस बात की चिंता लगातार सता रही है, कि आने वाले समय में कहीं उनकी भी हालत यूक्रेन जैसी न हो जाए। मतलब, उन्हें भी एक भीषण और विनाशकारी युद्ध का सामना न करना पड़े। इसी वजह से समय रहते ये देश अपने लिए 'सुरक्षा की गारंटी' ढूंढ रहे थे। ऐसे में उनके लिए नाटो (NATO) सुरक्षा कवच के रूप में दिखाई दिया।
क्या NATO है सुरक्षा की गारंटी?
फिनलैंड और स्वीडन जैसे रूस के पड़ोसी देशों को लगने लगा कि NATO में शामिल होने से उन्हें वो सुरक्षा मिल जाएगी जो उनके लिए आवश्यक है। इसी के अगले कदम के रूप में आज इन दोनों देशों ने NATO की मेंबरशिप के लिए आवेदन किया। मगर, फिनलैंड और स्वीडन के NATO में शामिल होने की इच्छा जाहिर करने के बाद से ही रूस ने उनके प्रति अपने तेवर सख्त कर लिए थे। रूस ने इन दोनों देशों को चेतावनी भी दी। साथ ही कहा, कि फिनलैंड और स्वीडन के NATO में शामिल होने से यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था में कोई सुधार होने वाला नहीं है। रूस ने नाटो के लिए कहा, 'यह गठबंधन टकराव के लिए बना एक हथियार है।'
यूक्रेन ने बात नहीं मानी, किया हमला
इस मामले को रणनीतिक तौर पर समझने की जरूरत है। दरअसल, रूस कभी नहीं चाहता कि, उसके पड़ोस में अमेरिका की सहयोगी शक्तियों का विस्तार हो। इसी कारण उसने यूक्रेन के नाटो (NATO) में शामिल होने का लगातार विरोध किया। लेकिन, जब यूक्रेन ने उसकी बात नहीं मानी तो आखिरकार रूस ने उस पर हमला बोल दिया।
अभी ही NATO में क्यों शामिल होना चाहते देश?
ये अलग बात है कि, रूस को यूक्रेन युद्ध से अब तक कुछ खास हासिल हुआ हो। मगर, रूस के खिलाफ पड़ोसी यूरोपीय देश लामबंद होने जरूर शुरू हो गए हैं। रूस से अपने ऊपर खतरे को भांपते हुए ये देश जल्द से जल्द नाटो की सदस्यता लेना चाहते हैं। ताकि, उन्हें भी सुरक्षा कवच हासिल हो सके। इन देशों को लगता है कि रूस अभी पूरी तरह यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। इसलिए वह इस समय का फायदा नाटो में शामिल होने के रूप में उठा सकते हैं। क्योंकि, युद्ध में उलझा रूस इस वक्त उनके लिए कोई बड़ा खतरा पैदा नहीं कर सकता।
फिनलैंड की 1340 किमी की सीमा लगती है
जानकारी के लिए आपको बता दें कि, फिनलैंड और रूस के बीच 1340 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है। फिनलैंड चाहता है कि वो अपने इसी बॉर्डर को सुरक्षित रखने के लिए नाटो से जुड़ना चाहता है। कहा जा रहा है कि हाल में फिनलैंड ने बॉर्डर पर दर्जनों लेपर्ड टैंक्स मूव किए हैं। इसके साथ ही आर्मर्ड व्हीकल्स के साथ दूसरे साजो सामान भेजे गए हैं। रूस-फिनलैंड सीमा पर ये हलचल रातों रात नहीं हुआ। इसके पीछे एक प्लानिंग रही है। जिसका नतीजा आज फिनलैंड के नाटो के लिए आवेदन के रूप में सामने आया। कहने का मतलब है कि, फिनलैंड नाटो में जाने के लिए पूरी तरह तैयार था।
स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के बाद जाहिर तौर पर रूस चुप बैठेगा नहीं। अब, विश्व समुदाय को 'दोहरा झटका' झेल रहे रूस के अगले कदम का इंतजार है। देखना होगा कि यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा रूस अब आगे क्या करता है। वैसे कई जानकार ये भी मानते हैं कि शायद युद्ध का नया फ्रंट न खुल जाए।