डरावना हरा रंग: अचानक हुआ अजीबो-गरीब बदलाव, वैज्ञानिकों की हालत खराब
दुनिया में कोरोना संकट उफान पर है। ऐसे में अजीबो-गरीब हो रही घटनाओं ने इस साल सबको डरा के रख दिया है। अब अंटार्कटिका में जमी हुई बर्फ का रंग अचानक से बदलना शुरू हो गया।
नई दिल्ली: दुनिया में कोरोना संकट उफान पर है। ऐसे में अजीबो-गरीब हो रही घटनाओं ने इस साल सबको डरा के रख दिया है। अब अंटार्कटिका में जमी हुई बर्फ का रंग अचानक से बदलना शुरू हो गया। यहां सफेद रंग की बर्फ अब हरे रंग में बदल रही है। तो अब इस अजीबो-गरीब प्राकृतिक बदलाव से वैज्ञानिक भी बहुत चिंतित हैं। हालांकि ऐसा क्लाइमेट चेंज के कारण हो रहा है या किसी और कारण से यह पता किया जा रहा है। कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे वहां रहने वाले पेंग्विंस को भी कसूरवार बता रहे हैं।
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हरे रंग की बर्फ
पहले अंटार्कटिका की तस्वीर सफेद आती थी लेकिन अब इसमें बदलाव के बाद हरे रंग का मिश्रण शामिल हो रहा है। ये हरा रंग अधिकतर अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। हो सकता है आने वाले कुछ सालों में आपको पूरे अंटार्कटिका में हरे रंग की बर्फ देखने को मिले।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेंटीनल-2 सैटेलाइट 2 साल से अंटार्कटिका की तस्वीरें ले रहा है। इन्हें जांचने के बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने पहली बार पूरे अंटार्कटिका में फैल रहे इस हरे रंग का नक्शा तैयार किया है।
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हरे रंग में बदलने का कारण एक समुद्री एल्गी
इस पर वैज्ञानिकों को पूरे अंटार्कटिका में 1679 अलग-अलग स्थानों पर हरे रंग के बर्फ के प्रमाण मिले हैं। जिस पर वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका के बर्फ का हरे रंग में बदलने का कारण एक समुद्री एल्गी है। जिसकी वजह से अलग-अलग जगहों पर ऐसे रंग देखने को मिल रहे हैं।
इसी सिलसिले में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी यानी की काई अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रही हैं। इन एल्गी की बदौलत अंटार्कटिका वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर कर रहा है।
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एल्गी सिर्फ हरे रंग में ही नहीं
वहीं मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी सिर्फ हरे रंग में ही नहीं है। हमें अटांर्काटिका के अलग-अलग हिस्सों में नारंगी और लाल रंग की एल्गी भी मिली है। हम उसका भी अध्ययन करने वाले हैं।
हालांकि अभी अंटार्कटिका की बर्फ में जो एल्गी मिली है वह माइक्रोस्कोपिक है। मतलब की बहुत छोटी जो सिर्फ माइक्रोस्कोप से ही देखी जा सकती है। लेकिन कहीं-कहीं पर वह इतनी ज्यादा मात्रा में है कि खुली आंखों से भी दिखाई दे रही है। इनकी मात्रा बढ़ती जा रही है।
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सफेद दुनिया हरे रंग में
मैट डेवी ने बताया कि हमें अंटार्कटिका की एक पेंग्विन कॉलोनी में 5 किलोमीटर की लंबाई वाले इलाके के 60 प्रतिशत हिस्से में ये हरे रंग की एल्गी देखने को मिली है। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पेंग्विंस और अन्य जीव-जंतुओं के मल-मूत्र से भी विकसित हुई होगी।
वहीं मैट ने बताया लेकिन पेंग्विंस अंटार्कटिका पर हर जगह नहीं है। इसलिए सिर्फ उन्हें दोष देना गलत होगा। अगर क्लाइमेट चेंज के कारण धरती का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहेगा तो यह सफेद दुनिया हरे रंग में बदल जाएगी।
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