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सड़क पर 15 लाख लोग: नम-नम आंखों से झलकते रहे आंसू, कभी ना देखी ऐसी भीड़

सड़कों पर एक साथ 15 लाख लोगों का हुजूम, ये सड़क है नई दिल्ली की। सड़को पर इकठ्ठा हुआ ये भारी-भरकम हुजूम जवाहरलाल नेहरू को आखिरी दर्शन और नमन करने आया था।

Vidushi Mishra
Published on: 29 May 2020 10:09 AM GMT
सड़क पर 15 लाख लोग: नम-नम आंखों से झलकते रहे आंसू, कभी ना देखी ऐसी भीड़
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नई दिल्ली। सड़कों पर एक साथ 15 लाख लोगों का हुजूम, ये सड़क है नई दिल्ली की। सड़को पर इकठ्ठा हुआ ये भारी-भरकम हुजूम जवाहरलाल नेहरू को आखिरी दर्शन और नमन करने आया था। बच्चों के चाचा जवाहर नेहरू 17 साल पहले आजाद हुए इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे। इनकी अंतिम यात्रा के दौरान एक खुले वाहन पर नेहरू का पार्थिव शरीर रखा था, जिसे 6 मील की अंतिम यात्रा के रास्ते में लोग अपने प्रिय नेता के दर्शन कर सकें।

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निधन से दो दिन पहले हार्ट अटैक

दिल्ली की सड़कों पर इस पूरे रास्ते की सुरक्षा का भार भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना पर था, जिन्होंने यमुना नदी के किनारे के राजघाट में उस स्थल तक सुरक्षा की बागडोर संभाली हुई थी, जहां नेहरू का अंतिम संस्कार होना था।

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर नेहरू को 74 वर्ष की आयु में उनके निधन से दो दिन पहले हार्ट अटैक आया था। हालांकि जनवरी में उन्हें स्ट्रोक पड़ा था, जिससे वो ठीक नहीं हो पाए। डॉक्टरों की हिदायत के बावजूद उन्होंने खुद को बिजी शेड्यूल में लगा दिया था।

सड़कों पर भीड़ पूरे रास्ते भर में इकट्ठा थी। कई बार उन्हें वाहन के करीब आने से रोकना पड़ रहा था। गन कैरेज वाहन पर रखा नेहरू का खुला चेहरा नजर आ रहा था। नेहरू का पूरा शरीर फूलों से ढंका हुआ था।

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जवाहर की अंतिम यात्रा जिस रास्ते से गुजर रही है, वहां हर ओर ब्रितानी राज में बने भवन नजर आ रहे थे। गन कैरेज राजपथ की ओर बढ़ा, जिसे नई दिल्ली में भारत सरकार की धुरी माना जाता है।

दिल्ली के इस इंडिया गेट की ओर पहुंची, जिसे जार्ज पंचम के सम्मान में बनवाया गया था। इसी के बगल में किंग की मूर्ति भी खड़ी है, जिसे नेहरू ने बरकरार रखा। वो मानते थे कि ये भी भारतीय इतिहास का बड़ा हिस्सा है।

आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल

अंंतिम संस्कार के समय अमेरिका के विदेश मंत्री डीन रस्क दोपहर दो बजे स्पेशल विमान से इस अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने पहुंचे, उनके साथ भारतीय रक्षा मंत्री वाई बी चव्हाण भी लौटे। रक्षा मंत्री चव्हाण अमेरिका से हथियारों की मदद की बातचीत के लिए वाशिंगटन गए थे।

इस गमगीन मौके पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर एलेक डगलस और पूर्व वायसराय अर्ल माउंटबेटन खासतौर पर मौजूद थे। लार्ड माउंटबेटन भारत में ब्रिटेन के आखिरी वायसराय और आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल थे।

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ये दोनों ही नेहरू के करीबी मित्र भी थे। उन्होंने कहा, "मैं अपने जीवन के सबसे शानदार महान दोस्त के अंतिम संस्कार में शामिल होने आया हूं।"

चिता पर लकड़ियां सजाईं

इसके बाद अंतिम यात्रा नेहरू के आवास से दोपहर एक बजे शुरू हुई। इसने अंतिम संस्कार स्थल तक छह मील की दूरी तीन घंटे में तय की। जब शवयात्रा राजघाट पर पहुंची तो वहां एक लाख भारतीय मौजूद थे। हालांकि पुलिस को उन्हें पीछे करने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी।

भारतीय सेना ने उनके पार्थिव शरीर से तिरंगे को उतारा और पार्थिव शरीर को दाहसंस्कार के लिए बनाई चिता पर रख दिया। जवाहर नेहरू के परिवारजनों, राजनीतिज्ञों और सरकार के करीबी सहयोगियों ने चिता पर लकड़ियां सजाईं। चिता चंदन की लकड़ियों से बनाई गई।

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अग्नि प्रज्जवलित होने के साथ फफक उठीं

वहीं कुछ दूर नेहरू की इकलौती पुत्री इंदिरा नीली बॉर्डर वाली सफेद साड़ी में उदास खड़ी थीं, जिसे उनकी बुआ कृष्णा हठीसिंह सहारा दे रही थीं। वो चिता में अग्नि प्रज्जवलित होने के साथ फफक उठीं। नेहरू की दूसरी बहन विजयलक्ष्मी पंड़ित भी आई थीं।

नेहरू के आखिरी दर्शन पर शेख अब्दुल्ला भी अपने दोस्त को आखिरी विदा देने आए थे, हालांकि वो दस साल जेल में रहे।

नेहरु के निधन से बीते महीने ही उन्हें रिहा किया गया था। नेहरू को मुखाग्नि 17 साल के उनके नाती संजय गांधी ने दी। इस मौके पर उन्हें राइफल्स से सलामी दी गई थी। सारा राजघाट इलाका 'नेहरू अमर रहे' नारों से गूंज रहा था। सबकी आंखे नम थी, लेकिन नेहरू अमर रहे जिंदा था।

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Vidushi Mishra

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