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PFI का खौफनाक सच, रूह कांप जाएगी ये सच जानने के बाद
उत्तर प्रदेश सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का फैसला करने के बाद इस आशय की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी है। PFI जिसका पूरा नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (Popular Front of India)। जो कथित रूप से पिछडो और अल्पसंख्यकों के हक़ में आवाज़ उठाने वाला संगठन होने का दम भरता है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का फैसला करने के बाद इस आशय की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी है। PFI जिसका पूरा नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (Popular Front of India)। जो कथित रूप से पिछडो और अल्पसंख्यकों के हक़ में आवाज़ उठाने वाला संगठन होने का दम भरता है लेकिन इसका वास्तविक मकसद भारत में इस्लामिक उग्रवाद को बढ़ावा देना है।
हाल में नागरिकता संशोधन कानून CAA के खिलाफ विरोध व उग्र प्रदर्शन भड़काने में एक बार फिर इस संगठन का नाम प्रमुखता से आया है। लखनऊ में दंगे भड़काने में पीएफआई का हाथ होने की पुष्टि के बाद लखनऊ पुलिस ने पीएफआई के सरगना को गिरफ्तार किया है साथ ही तमाम हिंसक सामग्री बरामद की है।
क्या है पीएफआई का मुखौटा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI ) भारत में एक कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन है।
इसने नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, मनिथा नीती पासराई, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और अन्य संगठनों के साथ विलय करके एक बहु-राज्य का आयाम हासिल किया।
कैडर आधारित संगठन पॉपुलर फ़्रन्ट ऑफ इंडिया की स्थापना 2006 में हुई। नेशनल वूमन फ्रंट महिला संगठन है। कैम्पस फ्रंट आफ इंडिया यूथ संगठन है। राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया है। इसकी शुरुआत देश के केरल राज्य से हुई।
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उद्देश्य देश भर में दलितों, आदिवासियों और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ और उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना
PFI ने 2006 में दिल्ली के रामलीला में नेशनल पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस कर के पूरे देश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई
मुख्यालय - G-66, 2nd Floor, Shaheen Bagh Kalindikunj, Noida Road, New Delhi – 110025, Tel/ Fax – 011 29949902
PFI आज देश के 23 राज्यों में जड़ें जमा चुका है।
रूह कांप जाएगी PFI के कारनामे जानने के बाद
PFI मुख्यतः दक्षिण भारत के राज्यों में सक्रिय इस्लामिक संस्था है। जुलाई 2010 में पीएफआई तब सुर्खियों में आया था जब इस संस्था के 13 कार्यकर्ताओं ने इस्लाम के अनादर का आरोप लगाकार केरल के एक प्रोफेसर का हाथ काट डाला था।
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देश की सर्वोच्च जांच संस्था एनआईए ने 2017 में गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंप कर दावा किया था कि ये संस्था कई आतंकी गतिविधियों में शामिल है। इसमें आतंकी कैंप चलाना, बम बनाना शामिल है। NIA ने गृह मंत्रालय से इस संगठन को अवैध गतिविधि रोकथाम कानून (UAPA) के तहत बैन करने की मांग की थी।
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने भी उस समय कहा था कि पीएफआई के खिलाफ उनके पास पर्याप्त सबूत हैं। इसमें एनआईए की वह जांच रिपोर्ट भी है, जिसमें इस संगठन पर 6 आतंकी घटनाओं में शामिल रहने का आरोप लगाया है।
माना जा रहा है इनमें केरल के इडुक्की में प्रोफेसर का हाथ काटने की घटना, कन्नूर में आतंकी कैंप लगाना जहां से एनआईए ने कथित रूप से तलवार और बम जब्त किया था, बेंगलुरु में आरएसएस नेता रुद्रेश की हत्या और दक्षिण भारत में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े संगठन अल हिन्दी के सहयोग से हमले करने की योजना बनाना शामिल है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) देश में आतंकी संगठनों से संबंध, हेट कैंपेन, हत्याओं, दंगों और लव जिहाद जैसे कार्यों के लिए कुख्यात है। यह बात गौर करने की है कि आखिर क्या वजह है कि इस संगठन पर अब तक प्रतिबंध नहीं लगा।
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वर्ष 2012 में केरल सरकार ने केरल हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई हत्या के 27, हत्या के प्रयास के 86 और साम्प्रदायिक दंगों के 106 मामलों में शामिल है। इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता एन सचिन गोपाल और विशाल की हत्या भी शामिल थी। केरल पुलिस पीएफआई के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके भारी मात्रा में असलहे व गोला-बारूद बरामद कर चुकी है। पीएफआई पर कई राज्यों में प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है।
पीएफआई पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) समेत कई इस्लामिक आतंकी संगठनों से संबंध का आरोप है। पीएफआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल हमीद पहले सिमी का राष्ट्रीय सचिव था। सिमी के कई पूर्व पदाधिकारी वर्तमान में पीएफआई में विभिन्न पदों पर हैं। भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी पीसी कटोच ने पीएफआई के लिंक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों से भी बताए थे।
हेट कैम्पेन चला चुका है पीएफआई
वर्ष 2012 में असम दंगों के बाद दक्षिण भारत के राज्यों में एसएमएस से एक हेट कैंपेन चलाया गया था जिसमें पीएफआई के साथ हरकत उल जिहाद अल इस्लामी (हूजी) के साथ ही मनिथा नीति पसराई और कर्नाटक फोरम फॉर डिगनिटी का नाम आया था। कुछ एसएमएस पाकिस्तान से भी भेजे गए थे। इस कैंपेन से पुणे, चेन्नई, हैदराबाद और दिल्ली से पूर्वोत्तर राज्यों के करीब 30,000 लोग वापस अपने राज्यों में चले गए थे।
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अप्रैल 2013 में केरल पुलिस ने कन्नूर के नारथ में योगा कैंप के नाम पर चल रहे एक ट्रेनिंग कैंप में छापा मारकर पीएफआई के 21 लोगों को गिरफ्तार किया था। कैंप से दो बम, एक तलवार और बम बनाने की सामग्री मिली थी।
इससे पूर्व जून 2011 में मैसूर के महाजन कॉलेज परिसर में दो लड़कों की पांच करोड़ रुपये फिरौती के लिए अपहरण के बाद हत्या में भी पीएफआई में शामिल कर्नाटक फोरम फॉर डिगनिटी संगठन के सदस्यों का नाम आया था। ये हत्याएं संगठन का कोष बढ़ाने के इरादे से की गई थीं।
जनवरी 2011 में केरल पुलिस ने एक निजी क्रिश्चियन कॉलेज के प्रोफेसर टीजे जोजफ पर जानलेवा हमले में पीएफआई के 27 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।
PFI संगठन अपने साम्राज्यवाद-विरोधी और ज़ायोनी-विरोधी रुख के लिए भी जाना जाता है, जैसा कि नवंबर 2012 में देश के विभिन्न हिस्सों में फिलिस्तीन-समर्थक विरोध प्रदर्शनों में देखा गया था और बाद में जुलाई 2014 में राष्ट्रव्यापी एकजुटता अभियानों को नाम दिया गया-मैं गाजा हूं।
2015 में PFI ने लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेता, मोहम्मद मुर्सी और उनके अनुयायियों को दी गई मौत की सजा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। नई दिल्ली में मिस्र के दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ।
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ये हैं पीएफआई के खुफिया कारनामे
खुफिया एजेंसियों की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये संगठन देशविरोधी गतिविधियों में शामिल है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछड़े और अल्पसंख्यकों को सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक मदद पहुंचाने के नाम पर ये संगठन अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने में जुटा है। इस रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि ये संगठन देश की सुरक्षा के लिए खतरा है।
पीएफआई पर युवाओं को बरगलाकर आतंकवाद के लिए उकसाने व लड़कियों का ब्रेन वाश करने के आरोप भी लगे हैं। केरल के लव जिहाद मामले में अखिला उर्फ हदिया के पिता ने आरोप लगाए थे कि जसीना, उसकी बहन फसीना और उनके पिता अबूबकर ने मिलकर अखिला को बहकाया और उसका जबरन धर्मांतरण करवाया है।
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असम में CAA के खिलाफ भड़की हिंसा के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता ने पिछले हफ्ते आरोप लगाया था कि कांग्रेस के एक धड़े, 'शहरी नक्सली' और इस्लामी संगठन पीएफआई के बीच ''खतरनाक गठजोड़'' हो सकता है जिसने 11 दिसम्बर को प्रदर्शन के दौरान राज्य सचिवालय को जलाने का प्रयास किया और एनआईए को मामले की जांच करने के लिए कहा गया है। इस नेता ने दावा किया था कि असम युवा कांग्रेस के अध्यक्ष कमरूल इस्लाम चौधरी के दिसपुर में जी एस रोड पर राज्य सचिवालय पर हमले में शामिल होने के साक्ष्य हैं और आरोप लगाया कि उन्होंने गुवाहाटी में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दौरे के लिए बनाए गए मंच में आग लगाई थी।