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कैफीः इंकलाब के साथ इश्क पर भी लिखा

पैतृक जिले आजमगढ़ में कैफी साहब के जन्म शताब्दी वर्ष पर जगह-जगह विविध आयोजन किया जा रहा है और हर तरफ उनके गीत गुनगुनाये जा रहे हैं। अपने पैतृक जिले में कैफी साहब को यूं ही नहीं याद किया जा रहा है। सच तो यह है कि कैफी साहब को अपनी माटी से गहरा लगाव था।

SK Gautam
Published on: 14 Jan 2020 5:40 PM IST
कैफीः इंकलाब के साथ इश्क पर भी लिखा
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संदीप अस्थाना

आजमगढ़: आजमगढ़ जिले के मेजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को पैदा हुए मशहूर इन्कलाबी शायर कैफी आजमी ने इश्क व इंकलाब दोनों विषयों पर अपने गीत लिखे। यही वजह रही कि वह जन-जन के चहेते बने। आज वह इस दुनियां में नहीं हैं मगर अपनी रचनाओं के माध्यम से वह आज भी जीवित हैं। पैतृक जिले आजमगढ़ में कैफी साहब के जन्म शताब्दी वर्ष पर जगह-जगह विविध आयोजन किया जा रहा है और हर तरफ उनके गीत गुनगुनाये जा रहे हैं। अपने पैतृक जिले में कैफी साहब को यूं ही नहीं याद किया जा रहा है। सच तो यह है कि कैफी साहब को अपनी माटी से गहरा लगाव था।

यही वजह रही कि जीवन के आखिरी वर्षों में वह मुम्बई की चकाचैंध भरी जिन्दगी छोड़कर अपने पैतृक गांव आजमगढ़ के मेजवां चले आये। यहां आने के बाद गांव की गरीबी ने उनको अंदर तक झकझोड़ कर रख दिया और वह तय कर लिये कि वह अपने गांव से गरीबी भगाकर ही रहेंगे। इसके लिए वह लोगों को जागरूक किये। लोगों को रोजी-रोटी से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

गांव के लोगों को यह भी समझाया कि आज महिलायें घूंघट तक नहीं सिमटी हैं। वह हर वह काम कर रही हैं जो पुरूष कर सकता है। लिहाजा गांव की महिलाओं को भी काम करना चाहिए और घर के पुरूषों का हाथ बंटाना चाहिए। ऐसा होने पर ही तरक्की व खुशहाली आयेगी। उन्होंने महिलाओं के रोजगारपरक शिक्षा के लिए भी प्रोत्साहन दिया।

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किसी बड़े शहर की सुव्यवस्थित कालोनी लगता है मेजवां गांव

कैफी साहब की लायी गयी जागरूकता का ही असर रहा कि आज आजमगढ़ जिले के फूलपुर कस्बे से दो किलोमीटर दूर स्थित मेजवां गांव किसी बड़े शहर के सुव्यवस्थित कालोनी जैसा लगता है। यहां पर लड़कियों के लिए इण्टर कालेज, कम्प्यूटर ट्रेनिंग सेन्टर, यूबीआई का एटीएम, पोस्टआफिस, कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र, सिलाई स्कूल, ब्यूटी पार्लर ट्रेनिंग सेन्टर, जरी जरडोजी का काम, चिकनकारी प्रशिक्षण केन्द्र आदि मौजूद है। चिकनकारी सीख रही लड़कियां यह मान रही कि काम तो गांव में बहुत हो गया।

ऐसे में अब दायित्व उसे सहेजकर रखने की है। यह लड़कियां इसका सारे श्रेय शबाना आजमी को देती हैं। कहती हैं कि शबाना दीदी ने अब्बू कैफी के सपनों को पूरा किया। इनका कहना है कि शबाना जी के ही प्रयास से यह संभव हो पाया है। वह यह जरूर चाहती हैं कि गांव में लड़कियों के लिए डिग्री कालेज व एक अस्पताल हो जाय तो अच्छा रहेगा। चिकनकारी सेन्टर की प्रशिक्षिका संयोगिता कहती हैं कि अब्बू यानि कैफी आजमी साहब के निधन के बाद एक बार ऐसा लगा कि सब कुछ बर्बाद हो जायेगा मगर शबाना दीदी ने अब्बू के सपनों को पूरा किया। हम सबके सपनों को पूरा किया।

हम लोग इस छोटे से गांव के रहने वाले लोग थे। कोई नहीं जानता था हमें। शबाना दीदी की वजह से आज हमें पूरा देश जान रहा है। हम बड़े-बड़े डिजाइनरों के कपड़ों पर चिकनकारी कर रहे हैं। जेट एयरवेज के मालिक की बेटी नम्रता गोयल तो अभी बच्ची है, मगर उसने भी शबाना दीदी के साथ मिलकर हम सबके लिए बहुत कुछ किया है। मुम्बई के इण्टरनेशनल हवाई अंड्डेे पर हमारे चिकनकारी किये अब्बू की गजलें व हमारे संघर्ष की कहानियां कभी भी देखी जा सकती है।

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मेजवां गांव से होता है तीन करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार

मेजवां गांव से चिकनकारी का तीन करोड़ रूपये से अधिक का सालाना कारोबार होता है। मौजूदा समय में इस इलाके की तीन सौ से अधिक महिलायें व लड़कियां इस कारोबार में लगी हुई हैं। एक कारीगर करीब एक लाख रूपये सालाना कमा लेता है। प्रशिक्षिका संयोगिता कहती हैं कि यहां से सीखने वाली लड़की की अगर शादी हो जाती है तो वह अपने ससुराल रहते हुए भी हमसे जुड़ी रह सकती है। इसके लिए हम उसे उसकी ससुराल में ही कपड़े उपलब्ध करा दिया करते हैं।

वह चिकनकारी करके कमाती रह सकती है या अपना खुद का काम कर सकती है। सब मिलाकर वह कभी किसी पर बोझ नहीं बनेगी। चिकनकारी सीख रही तीन सौ लड़कियों व महिलाओं में पचास से अधिक मेजवां गांव की ही हैं। इसके अलावा दूर-दराज के गांवों की भी हैं। इसके अलावा सिलाई, ब्यूटी पार्लर कोर्स, कम्यूटर कोर्स करके भी लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं।

आखिरी क्षण तक गांव के विकास को लेकर दिखे चिन्तित

कैफी साहब जीवन के आखिरी क्षणों तक अपने गांव मेजवां के विकास को लेकर चिन्तित रहे। यही वजह रही कि आखिरी क्षणों में जब उनकी बेटी सिने तारिका शबाना आजमी उनसे मिलने पहुंची तो उनके सामने कैफी साहब का दर्द छलक पड़ा। उन्होंने कहा कि वह रहेंगे या नहीं, इसकी चिन्ता उनको नहीं है। उनको बस फिक्र इस बात का है कि उनके बाद गांव के लोगों की देख-रेख कौन करेगा।

इस गांव के विकास की जिम्मेदारी कौन संभालेगा। शबाना आजमी उनकी बातें सुनकर भावुक हो उठी। उन्होंने वादा किया कि वह इन जिम्मेदारियों को संभालेंगी। शबाना अपने वादों पर खरी भी उतरी। उन्होंने बखूबी इस जिम्मेदारी को संभाली। आज मेजवां के हर हाथ में रोजगार है। कैफी का गांव किसी शहर से कम नहीं दिखता।

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कैफी के दिल में हमेशा जिन्दा रहा कम्युनिष्ट

कैफी आजमी साहब के दिल में एक कम्युनिष्ट हमेशा जिन्दा रहा। यही वजह रही कि जीवन के आखिरी वर्षों में जब वह मुम्बई की चकाचैंध भरी जिन्दगी छोड़कर मेजवां आये तो इस जिले में छोटी रेल लाइन ही थी। बड़ी रेल लाइन न होने की वजह से महानगरों के लिए जाने वालों को वाराणसी आदि शहरों में जाकर रेल पकड़नी पड़ती थी।

लोगों ने इस असुविधा से कैफी साहब को अवगत कराया। लोगों की तकलीफों को महसूस कर कैफी साहब आन्दोलित हो उठे। आजमगढ़ में बड़ी रेल लाइन पटरी बिछाने के लिए उन्होंने बड़ा आन्दोलन खड़ा किया। परिणाम यह रहा कि उनकी मांगें मान ली गयी और बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछ गयी। आज यदि आजमगढ़ के लोग मुम्बई, दिल्ली आदि जगहों के लिए सीधे आजमगढ़ से ही रेल का सफर कर रहे हैं तो वह निश्चित रूप से कैफी साहब की ही देन है।

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जन्म शताब्दी वर्ष पर हो रहा ढेरों कार्यक्रम

आजमगढ़ जिले में कैफी जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर तरह-तरह के आयोजन किये जा रहे हैं। जिले के फूलपुर कस्बे में 14 जनवरी को उनकी स्मृति में कैफी क्रांति दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की गयी। इस तरह के और भी कार्यक्रम हुए तथा आगे भी आयोजित किये जा रहे हैं। मेजवां में तो कार्यक्रमों की धूम ही रही। इन कार्यक्रमों के क्रम में 11 जनवरी की शाम आजमगढ़ शहर के राहुल प्रेक्षागृह में कैफी आजमी की याद में मेरी आवाज सुनो के नाम से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

यह आयोजन लार्ड जीसस वेलफेयर वुमेन सोसायटी, राहुल सांकृत्यायन घुमक्कड़ ग्रुप, स्पर्श फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। राहुल प्रेक्षागृह में कैफी आजमी जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर उनके गीत, गजल का गायन व नृत्य की सुंदर प्रस्तुति कलाकारों ने की। डॉ पूजा पांडेय, शाहआलम सांवरिया, सनम शेख, ज्योति के गीत और रोहिणी के नृत्य ने दर्शकों को प्रभावित किया। कैफी आजमी गल्र्स इंटर कॉलेज फूलपुर की छात्राओं ने कैफी के गीत-उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे-पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया।

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मेरे नौकरी की शुरूआत मेजवां की सड़क से हुईः डीएम

राहुल प्रेक्षागृह में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे जिलाधिकारी आजमगढ़ नागेंद्र प्रसाद सिंह ने कैफी आजमी को याद करते हुए कहा कि आजमगढ़ में जब नौकरी की शुरुआत हुई और वह मेरे प्रशिक्षण का पहला दिन था, जब यहां के तत्कालीन जिलाधिकारी पंकज अग्रवाल मुझे अपने साथ कैफी आजमी के घर मेजवां लिवा गए। कैफी साहब ने मेंजवां के लिए सड़क की मांग किया और उस कार्य को कराने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी ने मुझे सौंपा था।

इस तरह मेंजवां की सड़क के साथ मेरे प्रशिक्षण की शुरुआत हुई। जिलाधिकारी ने कहा कि कैफी आजमी ऐसे शायर थे जिसे सारी दुनियां के लोग मानते हैं। वह ऐसे अकेले शायर मुझे दिखते हैं जो इंकलाब और इश्क दोनों पर लिखे। साम्यवादी विचारों से प्रभावित व्यक्ति इश्क पर इतना जनूनी हो सकता है, ऐसे शायर थे कैफी आजमी।

उन्होंने कहा कि 1930 में 11 वर्ष की उम्र में कैफी आजमी ने पहली गजल-इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े, हंसने से मिले न सकून ना रोने से कल पड़े-लिखकर अपनी लेखनी का तहलका मचा दिया। कार्यक्रम समापन पर प्रतिभागियों को कैफी आजमी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।



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