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Lalu Prasad Yadav: लालू सत्ता से आउट मगर सियासत से नहीं, विरोधी भी नहीं कर पाते खारिज

Lalu Prasad Yadav Latest News: राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव गुरुवार को अपना 73 वां जन्मदिन मना रहे हैं। राजद की ओर से उनके जन्मदिन पर विभिन्न आयोजन किए गए हैं।

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Newstrack Network
Published on: 11 Jun 2022 3:38 AM GMT (Updated on: 11 Jun 2022 3:38 AM GMT)
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लालू प्रसाद यादव (Social Media)

Lalu Prasad Yadav Birthday Special: राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव गुरुवार को अपना 73 वां जन्मदिन मना रहे हैं। राजद की ओर से उनके जन्मदिन पर विभिन्न आयोजन किए गए हैं। चुनावी राजनीति से दूर होने और चारा घोटाले में सजा के बाद जेल में होने के बावजूद लालू बिहार की सियासत की महत्वपूर्ण धुरी बने हुए हैं। लालू के विरोधियों को भी उन्हें खारिज करना मुश्किल काम लगता है। बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आने के साथ ही एक बार फिर लालू चर्चा का केंद्र बन गए हैं।

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लगातार हार के बावजूद बने रहे चर्चा में

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 के विधानसभा चुनाव में लालू को सत्ता से बेदखल किया था। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा दोनों के तीन-तीन चुनाव हो चुके हैं। 2015 का विधानसभा चुनाव लालू ने जेडीयू के साथ गठबंधन करके नीतीश की अगुवाई में लड़ा था। इस चुनाव में गठबंधन को शानदार जीत मिली थी। हालांकि यह गठबंधन स्थायी नहीं रह सका और बाद में नीतीश कुमार ने फिर करवट बदलते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया।

इस चुनाव को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी पांचों चुनाव में लालू को बिहार की सियासत में हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि लालू भले ही सत्ता से आउट हो चुके हैं मगर बिहार की सियासत में अभी भी उनके नाम पर ही बैटिंग की जा रही है।

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लोकसभा चुनाव में राजद की करारी हार

लालू की पार्टी राजद को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। यह चुनाव लालू के बेटे और राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की अगुवाई में लड़ा गया था। बिहार की सियासत में लालू की तीन दशक की राजनीति में राजद को इतनी करारी हार कभी नहीं देखनी पड़ी। इस चुनाव में पार्टी एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी। महागठबंधन में शामिल राजद के सहयोगी दलों को भी कोई खास सफलता नहीं मिली। कांग्रेस किसी तरह एक सीट जीतने में कामयाब हो सकी।

विरोधियों के हर हमले की शुरुआत लालू से

इस करारी हार के बाद बिहार की राजनीति में लालू अभी भी चर्चा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बने हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के हर हमले की शुरुआत लालू और उनके कुनबे से ही होती है। पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी पहली वर्चुअल रैली में राजग के कार्यकाल की तुलना लालू-राबड़ी के राज से की।

नीतीश कुमार भी अपने हर भाषण में लालू-राबड़ी के राज की चर्चा जरूर करते हैं और अपने शासन को उससे बेहतर बना बताते हैं। इससे समझा जा सकता है कि किसी भी दल के लिए आज भी बिहार की सियासत में लालू को खारिज करना आसान काम नहीं है।

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लालू के दखल से सुलझ सकता है विवाद

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आने के साथ ही ही महागठबंधन में सीटों की शेयरिंग और नेतृत्व को लेकर घमासान छिड़ गया है। कांग्रेस और हम पार्टी के मुखिया जीतन राम मांझी तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। इसके साथ ही विधानसभा में ज्यादा सीटों की दावेदारी भी कर रहे हैं। हालांकि हर कोई इस बात को स्वीकार करता है कि यदि तेजस्वी की जगह लालू इस महागठबंधन की अगुवाई करते होते तो कोई विवाद ही नहीं पैदा होता। पिछले चुनावों में भी विवाद की स्थिति में आखिरी पंचायत लालू के दरबार में ही होती रही है। जानकारों का कहना है कि इस बार भी लालू के दखल से ही यह मामला सुलझ पाएगा।

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राजद को लालू के नाम का ही सहारा

लालू के ढाई साल से जेल में होने के बावजूद बिहार की सियासत में आज भी उन्हें और नीतीश कुमार को भी सबसे महत्वपूर्ण चेहरा माना जाता है। चुनाव में आज भी राजद की ओर से लालू के नाम पर ही नारे लगाए जाते हैं और राजद के विभिन्न पोस्टरों में लालू ही छाए रहते हैं। समर्थक तो हमेशा उनकी चर्चा करते ही हैं विरोधी भी नकारात्मक मॉडल के बहाने उनकी चर्चा करना नहीं भूलते।

जदयू और भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा हमला लालू के कुनबे पर ही किया जाता है। इससे समझा जा सकता है कि लालू की चर्चा के बिना आज भी बिहार की सियासत अधूरी ही लगती है। सियासी जानकार भी कहते हैं कि लालू भले ही जेल में हों और सत्ता से बेदखल हो चुके हों, लेकिन उन्हें राजनीति से आउट नहीं माना जा सकता।

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Ashiki

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