TRENDING TAGS :
'लैंडर विक्रम' पर अब आई ये जानकारी, इन तीन बड़े कारणों से बिगड़ी लैंडिंग!
चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से चांद की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर इसरो का संपर्क टूट गया था। इसके बाद से लगातार इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने भी लैंडर विक्रम से संपर्क साधने में इसरो की मदद कर रहा है।
नई दिल्ली: चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से चांद की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर इसरो का संपर्क टूट गया था। इसके बाद से लगातार इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने भी लैंडर विक्रम से संपर्क साधने में इसरो की मदद कर रहा है। नासा ने विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश में 'हलो' मेसेज भेजा है।
गौरतलब है कि 7 सितंबर को लैंडर विक्रम हार्ड लैंडिंग के बाद चांद की सतह पर गिर गया था। नासा ने अपने डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) के जेट प्रपल्शन लैब्रटरी (JPL) की प्रयोगशाला से विक्रम को एक रेडियो संदेश भेजा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नासा इसरो से सहमति के बाद रेडियो संदेश के जरिए विक्रम से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है।’
यह भी पढ़ें...भोपाल में गणपति विसर्जन के दौरान पलटी नाव,11 लोगों की मौत, चार लापता
लेकिन लैंडर विक्रम की लैंडिग क्यों बिगड़ी इसका अभी पता नहीं चल पाया है। इस बीच वैज्ञानिकों ने इस मिशन के बिगड़ने के तीन वजहें बताया है।
जानिए क्या हो सकती है वजह
एक साथ न स्टार्ट हुए हों थ्रस्टर्स
चांद की सतह से 30 किमी की दूरी पर विक्रम लैंडर 1.66 किमी प्रति सेकंड से चक्कर लगा रहा था। चांद की सतह पर उतरते वक्त विक्रम लैंडर को सीधा रहना था और उसकी गति 2 मीटर प्रति सेकंड होनी चाहिए थी। विक्रम लैंडर में पांच बड़े थ्रस्टर्स हैं जो उसे लैंडिंग में मदद करते। थ्रस्टर्स की सहायता से विक्रम लैंडर चांद के चारों तरफ चक्कर भी लगाए थे। इनके अलावा विक्रम लैंडर पर और 8 छोटे थ्रस्टर्स लगे हैं। थ्रस्टर्स छोटे रॉकेट जैसे होते हैं जो किसी वस्तु आगे या पीछे बढ़ाने में मदद करते हैं।
यह भी पढ़ें...इमरान बोले, पाकिस्तान ने तैयार किए आतंकी, अमेरिका पर लगाया ये बड़ा आरोप
विक्रम के नीचे पांच बड़े थ्रस्टर्स को लगाया था। चार थ्रस्टर्स चार कोनों में और एक को बीच में। ये विक्रम को ऊपर-नीचे ले जाने में मदद करते। जबकि, 8 छोटे थ्रस्टर्स विक्रम की दिशा निर्धारण में मदद करते। ये हो सकता है कि चांद की सतह से 400 मीटर की ऊंचाई पर लैंडिंग के समय सभी बड़े थ्रस्टर्स में एकसाथ ईंधन न पहुंचा हो।
इससे ये हुआ होगा कि सारे थ्रस्टर्स एकसाथ स्टार्ट न हुए हों जिसकी वजह से लैंडर तेजी से घूमने लगा होगा और संतुलन खो दिया होगा। इस समय लैंडर वैसे ही घूम रहा होगा जैसी दिवाली में चकरी आतिशबाजी घूमती है।
यह भी पढ़ें...जानिए क्यों डीके को आधी रात अस्पताल से थाने ले आई ED, कोर्ट में करेगी पेश
इंजन तक न पहुंचा हो ईंधन
दूसरी वजह ये हो सकती है कि इंजन तक सही समय में ईंधन न पहुंचा हो। विक्रम लैंडर में बड़ा हिस्सा ईंधन की टंकी है। लैंडर की तेज गति, ब्रेकिंग की वजह से टंकी में ईंधन वैसे ही उछल हो जैसे पानी के टब में पानी उछलता है। इसके कारण इंजन के नॉजल में ईंधन सही से नहीं पहुंचा होगा। इसकी वजह से लैंडिंग के समय थ्रस्टर्स को पूरा ईंधन न मिलने से लैंडिंग में गड़बड़ी आ सकती है।
गुरुत्वाकर्षण शक्ति
चांद की सतह से 100 मीटर की ऊंचाई पर जब विक्रम लैंडर हेलीकॉप्टर की तरह मंडराता तो उस समय चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को बर्दाश्त करने के लिए उसमें अगल-बगल लगे छोटे थ्रस्टर्स ऑन रहते। लैंडर का कैमरा लैंडिंग वाली जगह खोजता और फिर उतरता। कैमरे से ली गई तस्वीर ऑनबोर्ड कंम्प्यूटर में स्टोर की गई तस्वीर से मैच करतीं।
यह भी पढ़ें...20 साल बाद आज दिखेगा फुल हार्वेस्ट मून, जानिए इससे क्यों डरते हैं लोग?
इसके बाद विक्रम लैंडर मंडराना बंद कर धीरे-धीरे चार बड़े थ्रस्टर्स को बंद कर बीच वाले पांचवें थ्रस्टर की मदद से नीचे उतरता। इस वक्त विक्रम लैंडर में लगा रडार अल्टीमीटर लैंडर की ऊंचाई का ख्याल रखता। चुंकि लैंडिंग पूरी तरह से ऑटोमैटिक थी, इसपर पृथ्वी से कंट्रोल नहीं किया जा सकता था। हो सकता यहीं पर लैंडर विक्रम गुरुत्वाकर्षण को भांप नहीं पाया हो, क्योंकि वहां गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में बदलाव आता रहता है।