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ये थे नेहरू के पापा: 5 रूपये की फीस से बने देश के सबसे महंगे वकील
आज मोतीलाल नेहरु की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 06 फरवरी 1931 को लखनऊ में उनका निधन हो गया था। आपको बता दें कि मोतीलाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पिता थे, जिनका नाम देश के सबसे धनी वकीलों में होती थी।
नई दिल्ली: आज मोतीलाल नेहरु की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 06 फरवरी 1931 को लखनऊ में उनका निधन हो गया था। आपको बता दें कि मोतीलाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पिता थे, जिनका नाम देश के सबसे धनी वकीलों में होती थी। मोतीलाल नेहरु अपने जमाने के भारत के सबसे महंगे वकील कहे जाते थे। मोतीलाल नेहरु पहले कांग्रेस से जुड़े। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया। उसके बाद उन्होंने स्वराज पार्टी का गठन किया। आज उनके पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको मोतीलाल नेहरु के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे हैं।
वकालत और शानोशौकत को लेकर मशहूर थे मोतीलाल
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू के बारे में कई सारे किस्से प्रसिद्ध हैं। उन्हें और उनकी धनदौलत को लेकर कई बातें कही जाती रही हैं। सबसे ज्यादा जो किस्सा मशहूर है कि वो देश के सबसे धनी वकील थे और उनकी फीस बहुत ज्यादा थी। उनके ठाठबाट के भी कई किस्से मशहूर हैं।
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अपने जमाने के सबसे धनी लोगों में थे एक
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सद्शिवम ने मोतीलाल नेहरू के बारे में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट के एक जर्नल में लिखा कि मोतीलाल नेहरू एक विलक्षण वकील और अपने जमाने के सबसे धनी लोगों में एक थे। अंग्रेजी जज नेहरु की वाकपटुता और केस को पेश करने की उनकी खास शैली से काफी प्रभावित थे। और शायद यही वजह थी कि उन्हें जल्दी सफलता हासिल हुई। उन दिनों ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में किसी भी भारतीय वकील को केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग असंभव था, लेकिन मोतीलाल नेहरु ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल हुए।
कैम्ब्रिज से ग्रहण की 'बार ऐट लॉ' की उपाधि
बचपन में ही मोतीलाल नेहरू ने अपने सिर से पिता का साया खो दिया। उनके पिता का नाम गंगाधर था। जिसके बाद उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू भी पेशे से वकील थे। नंदलाल नेहरु आगरा हाईकोर्ट में वकील थे। जब अंग्रेजों ने हाईकोर्ट से इलाहाबाद में शिफ्ट कर दिया तो उनका पूरा परिवार इलाहाबाद में आ गया। नंदलाल भी अपने जमाने के बड़े वकीलों में गिने जाते थे। उन्होंने छोटे भाई को अच्छे कॉलेजों में पढाया और फिर कानून की पढाई के लिए कैंब्रिज भेजा। मोतीलाल नेहरू ने कैम्ब्रिज से "बार ऐट लॉ" की उपाधि ली और अंग्रेजी न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया।
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रुतबा था सबसे अगल
मोतीलाल नेहरु अपनी भाषा शैली की वजह से आकर्षण का केंद्र बन जाते थे। वो एक असरदार व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। उन दिनों ब्रिटेन से पढ़कर आए बैरिस्टरों (वकीलों) का रुतबा ही कुछ अलग हुआ करता था। वहीं उन दिनों देश में बैरिस्टर भी गिने चुने ही हुआ करते थे।
सभी अंग्रेज जजों को अपनी खास शैली से किया प्रभावित
जब तीन साल बाद 1988 में मोतीलाल नेहरु ने इलाहाबाद आकर हाई कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस शुरु की तो चीजें उनके लिए आसान बिल्कुल नहीं थी। वहीं बड़े भाई नंदलाल के मृत्यु के पश्चात परिवार की सारी जिम्मेदारी उन पर आ गई। उस समय अंग्रेजों का राज था और वो भारत के वकीलों को ज्यादा महत्व नहीं देते थे। लेकिन मोतीलाल नेहरु ने उनकी वाकपटुता और मुकदमों को पेश करने की उनकी खास शैली से करीब सभी अंग्रेज जजों को प्रभावित किया।
पहले केस के लिए मिले थे 5 रूपये
पी. सदाशिवम ने उनके बारे में लिखा कि, उन्हें हाईकोर्ट में पहले केस के लिए पांच रुपए दिए गए। फिर वो तरक्की की सीढियों पर चढ़ते गए। उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर बाद में उन्हें एक केस लड़ने के लिए बहुत अधिक पैसे मिलने लगे, जो हजारों में थे।
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यूरोपियन जैसी थी शानोशौकत
मोतीलाल को जब तरक्की मिलती गई तो उनके पास बड़े जमींदारों, तालुकदारों और राजे-महाराजों के जमीन से जुड़े मामले आने लगे। वो धीरे-धीरे देश के सबसे महंगे वकीलों में शामिल हो गए। उनका रहन सहन यूरोपियन वाला था। वो बिल्कुल यूरोपियन जैसे कोट पैंट, घड़ी पहनते थे और उनकी शानोशौकत भी बिल्कुल वैसी ही थी। 1889 के बाद वो लगातार मुकदमों के लिए इंग्लैंड जाने लगे। मोतीलाल वहां जाकर महंगे होटलों में ठहरा करते थे।
धन कमाना चाहते थे मोतीलाल, लेकिन...
मोतीलाल 1900 के बाद कई दशकों तक लगातार भारत के सबसे ज्यादा धनी वकील बने रहे। उनकी गिनती देश के सबसे धनी लोगों में हुआ करती थी। उन्होंने अपने बेटे जवाहर लाल नेहरु को लिखा था कि, मेरे दिमाग में स्पष्ट है कि मैं धन कमाना चाहता हूं लेकिन इसके लिए मेहनत करता हूं और फिर धन कमाता हूं। हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इससे कहीं ज्यादा पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन मेहनत नहीं करते।
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लंदन से आते कपड़े और यूरोप में होती थी धुलाई
उनकी शानोशौकत के बारे में कहा जाता है कि कि उनके कपड़े लंदन से सिलकर आते थे। साथ ही उनके कपड़े ऐसे होते थे, जिनकी खास धुलाई होती थी। उनके कपड़ों की यूरोप में धुलाई होती थी। लिहाजा उन्हें इलाहाबाद से वहां भेजा जाता था। वहीं उन दिनों भारत में कारें नहीं बनती थीं, बल्कि विदेश से मंगाई जाती थी। इलाहाबाद की सड़कों पर चलने वाली सबसे पहले विदेशी कार नेहरू परिवार की ही थी।
वकालत छोड़ आजादी के आंदोलन में हुए शामिल
1920 के दशक में उन्होंने महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद वकालत छोड़कर देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। जब उन्होंने अपनी वकालत छोड़ी उस वक्त वो टॉप पर थे और बहुत पैसा कमा रहे थे। अक्सर ये भी बातें सामने आती रही हैं कि उस समय जब भी कांग्रेस आर्थिक संकट से गुजरती थी तो मोतीलाल नेहरु पार्टी को धन देकर उबारा करते थे। वो दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। साल 1931 में 6 फरवरी को उनका निधन लखनऊ में हो गया।
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