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परोपकार के मामले में पीछे हैं भारतीय

इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। भारत 2010 में सबसे कम 134वें और पिछले साल सबसे अच्छे 81वें स्थान पर रहा। इस साल की रिपोर्ट में सभी देशों का पिछले 10 साल के आंकड़े दिए गए हैं। इस साल डब्ल्यूजीआई में, भारत का कुल स्कोर 26 फीसदी था।

Harsh Pandey
Published on: 19 Nov 2019 5:57 PM IST
परोपकार के मामले में पीछे हैं भारतीय
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मुंबई: परोपकार यानी दूसरों की मदद करने के मामले में भारत दुनियाभर के 128 देशों की लिस्ट में 82वें स्थान पर है।

दसवीं 'वल्र्ड गिविंग इंडेक्सÓ (डब्ल्यूजीआई) में ये बात सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक तिहाई भारतीयों ने किसी अजनबी की मदद की, चार में से एक ने पैसे दान किए और पांच में से एक ने अपना समय दूसरों की मदद में लगाया।

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रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग कम होने की वजह, परिवार, समुदाय और धार्मिक कामों में अनौपचारिक रूप से दी गई मदद को बताया गया है। रिपोर्ट में परोपकार में दान करने के लिए और अधिक औपचारिक तरीकों की सिफारिश की गई है।

पिछले 9 साल (2009-2018) में 128 देशों के 13 लाख लोगों का सर्वे करने के बाद अक्टूबर 2019 में ये रिपोर्ट ऑनलाइन प्रकाशित की गई। सर्वे के दौरान लोगों से पूछा गया कि क्या उन्होंने किसी अजनबी की मदद की है, परोपकार के काम में पैसे दान किए हैं या पिछले महीने में दूसरों की मदद में अपना समय दिया है? सर्वे में गैलप वर्ल्ड पोल डेटा का इस्तेमाल किया गया था। ये सर्वे यूनाइटेड किंगडम की चैरिटी एड फाउंडेशन (सीएएफ) की तरफ से कराया गया।

इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। भारत 2010 में सबसे कम 134वें और पिछले साल सबसे अच्छे 81वें स्थान पर रहा। इस साल की रिपोर्ट में सभी देशों का पिछले 10 साल के आंकड़े दिए गए हैं। इस साल डब्ल्यूजीआई में, भारत का कुल स्कोर 26 फीसदी था।

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सात सबसे धनी देश रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडेक्स में ऊपर के 10 देशों में से सात दुनिया के सबसे धनी देश हैं। लेकिन फिर भी दुनियाभर में उदारता कम हो रही है। लोगों की मदद करने के लम्बे इतिहास वाले अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में व्यक्तिगत तौर पर दान देने की आदत अब कम हो गई है।

भारत का 26 फीसदी डब्ल्यूजीआई स्कोर, अमेरिका के 58 फीसदी के आधे से भी कम है। इस लिस्ट में अमेरिका सबसे ऊपर है जबकि चीन, 16 फीसदी के स्कोर के साथ इंडेक्स में सबसे नीचे है। एशिया के इस सबसे बड़े देश

को इंडेक्स के तीनों मानकों (अजनबी की मदद करने, धन दान करने और स्वयं सेवा करने) में सबसे कम स्कोर मिला है। दूसरी तरफ न्यूजीलैंड अकेला देश है, जो तीनों मानकों के स्कोर में पहले 10 देशों में शामिल है।

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इंडोनेशिया ने किया सुधार जिन 10 देशों ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है उनमें से 5 देश एशिया के हैं। इंडोनेशिया ने अपनी रैंकिंग में सबसे अधिक सुधार किया है। पैसे दान करने और स्वयं सेवा के मामलों में इंडोनेशिया, शुरू

के 10 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है। स्वयं सेवा के पैमाने पर श्रीलंका ने दुनिया में सबसे ज़्यादा स्कोर (46 फीसदी) हासिल किया है जो स्वयं सेवा में भारत के स्कोर (19 फीसदी) का दोगुने से भी ज़्यादा है।

सांस्कृतिक कारण...

रैंकिंग में बढ़ोतरी के पीछे सांस्कृतिक कारण बताए गए हैं। जैसे कि, म्यांमार में ज़्यादातर लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, जिनमें से 99 फीसदी लोग थेरावादा शाखा के अनुयायी हैं जिसका मुख्य संदेश ही दान करना है। श्रीलंका में भी थेरावादा बौद्धों की आबादी काफी ज़्यादा है। इसी तरह, दुनिया में मुसलमानों की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश, इंडोनेशिया में दान, जकात के रूप में एक धार्मिक दायित्व है। देशों के आर्थिक विकास की वजह से भी उनकी रैंकिंग बेहतर हुई है।

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पड़ोसियों से पिछड़ा भारत...

उदारता के मामले में भारत, दक्षिण एशिया के कई देशों से भी पिछड़ गया है। भारत इस इंडेक्स में अपने पड़ोसी देशों, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है। इसका एक कारण ये हो सकता है कि हाल के दशकों में भारत के आर्थिक विकास का फायदा बहुत कम लोगों को मिला है, जो ये समझाने के लिए काफी है कि परोपकार के मामले में भारत, बाकी एशियाई देशों के समान क्यों नहीं बढ़ पा रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में कम आय वाले परिवारों के दान या मदद करने की सम्भावना (69 फीसदी) उन परिवारों के मुकाबले कम है, जिनकी घरेलू आमदनी 1.7 लाख रुपए महीने से अधिक (82 फीसदी) है। ज़्यादातर भारतीयों (64 फीसदी) ने कहा कि वे जरूरतमंद लोगों और परिवारों को या फिर चर्च या धार्मिक संगठनों को सीधे पैसा देते हैं। गैर-लाभकारी या धर्मार्थ संगठनों को देने वाले 58 फीसदी थे। इसके अलावा, भारत में धार्मिक दान के 500 से ज़्यादा पारंपरिक तरीके हैं। जैसे, हिंदू दान और उत्सर्ग, इस्लामी जकात, खुम्स और सदका। ये तरीके इंडेक्स में दिखाई नहीं दे सकते क्योंकि भारतीय इसे एक पारिवारिक या धार्मिक दायित्व मानते हैं।

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उदाहरण के लिए, भारतीयों के लिए पूजा स्थलों के बाहर गरीबों को खाना खिलाना, या संन्यासियों को भोजन परोसना आम बात है। सर्वे का जवाब देने वाले लोगों ने इसे दान के रूप में नहीं माना होगा, क्योंकि वे इसे अपना कर्तव्य समझते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 38 फीसदी भारतीयों ने कहा कि अगर उन्हें ये पता हो कि उनके पैसे का इस्तेमाल कैसे होगा तो वे और ज़्यादा दान करेंगे। 32 फीसदी ने कहा कि अगर उनके दान के पैसे खर्च करने में ज़्यादा पारदर्शिता रहेगी तो वे और ज़्यादा दान करेंगें।

अरबपति कम ही देते हैं दान...

ऑक्सफैम इंडिया की इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में, भारत के सबसे धनी 1 फीसदी लोगों की संपत्ति 20,913 अरब रुपए (303 बिलियन डॉलर) बढ़ी। ये रकम उस वित्त

वर्ष के केंद्र सरकार के कुल बजट के बराबर थी। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट बताती है कि भारत के सबसे ज़्यादा अमीरों में परोपकार की गतिविधियां, उनकी सम्पत्ति में हुई बढ़ोत्तरी की तुलना में काफ़ी धीमी हैं। अल्ट्रा-हाई नेट वर्थ वाले लोगों (25 करोड़ रुपए से ज़्यादा सम्पत्ति वाले) के बड़े योगदान (दस करोड़ रुपए से ज़्यादा) में 2014 के मुक़ाबले, 4 फीसदी की कमी आई है। पिछले छह साल में भारत का सबसे कम डब्ल्यूजीआई स्कोर (2018 में 22 फीसदी), उसी साल हुआ जिस साल देश में 121 अरबपतियों की रिकॉर्ड संख्या सामने आई थी, चीन और अमेरिका के बाद सबसे ज़्यादा।

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अजनबियों की मदद...

रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में विश्व में ढाई अरब से ज्यादा लोगों ने अजनबियों की मदद की। औसतन 48.3 फीसदी एडल्ट आबादी ने अजनबियों की मदद की है। अजनबियों की मदद के मामले में अफ्रीकी देश सबसे हैं और इसका कारण वहां प्रचलितयूबंतू प्रथा है। यूबंतू दरअसल जीवन जीनेका एक अंदाज है जिसमें दयालुता, सम्मान,इंसानियत, एक-दूसरे की मदद और मेलजोल का काफी बड़ा स्थान है। रैंकिंग की बात करें तो लाइबेरिया (77 फीसदी) सबसे ऊपर इराक, कनाडा और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। जो देश अजनबियों की मदद के मामले में पीछे हैं उनमें लातविया,चीन, जापान, कम्बोडिया, क्रोएशिया शामिल हैं।

वालंटियर...

स्वयंसेवकों की बात करें तो पिछले दस वर्षों में विश्व में हर पांच व्यस्कों में से एक ने ये काम किया है। विश्व में वालंटियर्स के मामले में श्रीलंका टॉप पर है। हर साल करीब सत्तर लाख लोग स्वयंसेवा में योगदान करते हैं। दस प्रमुख देशों में श्रीलंका, तुर्कमेनिस्तान, म्यांमार, लाइबेरिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया, तजाकिस्तान, फिलिपींस और आयरलैंड हैं। स्वयंसेवा में सबसे खराब प्रदर्शन वाले देश हैं - जॉर्डन, मोरक्को, रोमानिया, चीन, बुल्गारिया, मिस्र आदि।

Harsh Pandey

Harsh Pandey

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