TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

कोरोना के खिलाफ 21 दवाइयां शॉर्टलिस्ट, अभी इस वैक्सीन की तलाश

अगले कुछ महीनों में ट्रायल के परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। बहरहाल, दुनिया भर में 150 से ज़्यादा अलग-अलग दवाइयों को लेकर रिसर्च हो चुकी है।

Newstrack
Published on: 28 July 2020 7:54 PM IST
कोरोना के खिलाफ 21 दवाइयां शॉर्टलिस्ट, अभी इस वैक्सीन की तलाश
X

नई दिल्ली: कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या दो करोड़ के पास पहुंच रही है जबकि लाखों लोग मारे जा चुके हैं। इस संक्रमण का इलाज तलाशने की दिशा में कोशिशें हो रही हैं। अभी तक कोई परफेक्ट दवा तो नहीं मिली है लेकिन कुछ कारगर दवाइयां सामने आयी हैं। अभी तय नहीं है कि दुनिया के पास कब तक कोरोना की दवा होगी।

हालांकि अगले कुछ महीनों में ट्रायल के परिणाम आने शुरू हो जाएंगे। बहरहाल, दुनिया भर में 150 से ज़्यादा अलग-अलग दवाइयों को लेकर रिसर्च हो चुकी है। इनमें से ज़्यादातर दवाइयां पहले से ही प्रचलन में हैं और इन्हें कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज में आजमाकर देखा गया है। अमेरिका में तो विश्व की सभी दवाओं का लैब में कोरोना वायरस पर परीक्षण किया जा रहा है।

21 दवाइयां कीं गयीं शार्टलिस्ट

भारत समेत विश्व के वैज्ञानिकों ने कोरोना के इलाज के लिए 21 दवाएं शार्ट लिस्ट की हैं और इनका परीक्षण किया जा रहा है। इन दवाओं में एच आई वी, कुष्ठ रोग, मलेरिया, एलर्जी, इबोला, स्टेरॉइड आदि दवाएं शामिल हैं। कोरोना की दवा के मामले में ब्रिटेन में दुनिया का सबसे बड़ा क्लिनिकल ट्रायल चला रहा है, जिसे रिकवरी ट्रायल कहा जा रहा है। इस ट्रायल में ही पहली बार पता चला कि डेक्सामेथासोन से मरीजों की जान बच सकती है। इसके अलावा कौन सी दवा कारगर है या नहीं है, इसका पता भी इस ट्रायल में चला है।

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान में सिखों की आस्था से खिलवाड़ करने पर भारत ने जताया कड़ा विरोध

रिकवरी ट्रायल के विशेषज्ञों का कहना है कि कम मात्रा में इस दवा का उपयोग कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक बड़ी कामयाबी की तरह सामने आया है। इस दवा का इस्तेमाल पहले से ही सूजन को कम करने में किया जाता रहा है और अब ऐसा लगता है कि यह कोरोना वायरस से लड़ने में शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली को मदद पहुँचाने वाली है। अब तक इसका इस्तेमाल अधिक जोख़िम स्थिति वाले मरीज़ों के लिए ही किया जा रहा है। हल्के लक्षण वाले संक्रमितों पर इसका असर नहीं दिखा है।

रेमडेसिवीर

इबोला वायरस के इलाज के लिए खोजी गई दवा रेमडेसिवीर के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं। अमेरिकी नेतृत्व में इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल दुनिया भर में किया जा रहा है। रेमडेसिवीर उन चार दवाओं में शामिल है जिनको लेकर सॉलडरिटी ट्रायल चल रहा है। इस दवा को बनाने वाली कंपनी गिलिएड इसके ट्रायल का आयोजन भी करा रही है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ब्रुस आइलवर्ड का कहना है कि चीन के दौरे बाद उन्होंने पाया कि रेमडेसिवीर एकमात्र ऐसी दवा है जो असरदायी नज़र आती है।

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट: सरकार ने माना, खतरे में 10 करोड़ नौकरियां

एच आई वी की दवाओं को लेकर बहुत बातें की जा रही हैं लेकिन इस बात के प्रमाण नहीं मिले हैं जिससे यह कहा जाए कि एचआईवी की दवा लोपीनावीर और रिटोनावीर कोरोना वायरस के इलाज में असरदायी साबित हुई हैं। लैब में किए परीक्षण में ज़रूर इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह काम कर सकती हैं लेकिन लोगों पर किए गए ट्रायल में निराशा हाथ लगी है।

मलेरिया की दवा

मलेरिया की दवा को लेकर भी काफ़ी चर्चा रही है, लेकिन अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प या ब्राज़ील के बोलसरेनो भले कुछ कहें, इस दवा का स्पष्ट जवाब अभी भी नहीं है। वैसे, मलेरिया की दवा सॉलिडैरिटी ट्रायल और रिकवरी ट्रायल दोनों ही प्रयासों का हिस्सा है। क्लोरोक्वीन और उससे बने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्विन में वायरस प्रतिरोधी और इंसानों की प्रतिरोधक प्रणाली को शिथिल करने के गुण मौजूद हैं। यह दवा उस वक़्त बड़े पैमाने पर चर्चा में आई जब राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना वायरस के इलाज में इसकी संभावनाओं की बात कही।

ये भी पढ़ें- कश्मीर में फिर आग भड़काने में जुटा पाक, 5 अगस्त के लिए इमरान का खास प्लान

लेकिन अब तक इसके असरदार होने को लेकर बहुत कम प्रमाण मिले हैं। हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल अर्थराइटीस में भी किया जाता है क्योंकि यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने में मदद कर सकता है। लेकिन आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिकवरी ट्रायल से यह मालूम हुआ है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कोविड-19 के इलाज में कोई मदद नहीं पहुंचाता है। इसके बाद इसे ट्रायल से बाहर कर दिया गया।

ब्लड प्लाज़्मा

जो मरीज़ कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो गए हैं उनके शरीर में इसका एंटीबॉडी होना चाहिए जो वायरस के खिलाफ असरदायी हो सकता है। ये एक क्लिनिकल सिद्धांत है। इसके तहत, ठीक हुए मरीज़ के ख़ून से प्लाज्मा (जिस हिस्से में एंटीबॉडी है) निकाल कर बीमार पड़े मरीज़ में डालते हैं।

ये भी पढ़ें- अयोध्या में इस चांदी की ईंट से रखी जाएगी राम मंदिर की नींव, देखें पहली तस्वीर

भारत समेत कई देशों में ये प्रयोग किया जा रहा है। यह तरीका दूसरी बीमारियों में तो कारगर साबित हुआ है, लेकिन कोरोना वायरस में इस तरीके से पूरी कामायबी नहीं मिली है। इसके अलावा बहुत से रिकवर्ड मरीजों के ब्लड प्लाज़्मा में एंटी बॉडी नदारद पाई गई हैं।



\
Newstrack

Newstrack

Next Story