TRENDING TAGS :
राजस्थान में सचिन पायलट छूट गए पीछे, अब लड़ाई राज्यपाल बनाम कांग्रेस
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार जल्द से जल्द विश्वासमत हासिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं जबकि राजभवन की ओर से उन्हें शर्तों और सवालों में उलझा दिया गया है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: राजस्थान में अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई पीछे छूट गई है और पूरा मुद्दा अब राज्यपाल बनाम कांग्रेस हो गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार जल्द से जल्द विश्वासमत हासिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं जबकि राजभवन की ओर से उन्हें शर्तों और सवालों में उलझा दिया गया है। अशोक गहलोत कैबिनेट की ओर से 5 दिन में तीसरी बार 31 जुलाई से विधानसभा का सत्र बुलाने का प्रस्ताव राज्यपाल के पास भेजा गया है। हालांकि इस प्रस्ताव में भी विश्वासमत का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
हाईकोर्ट के फैसले ने बदली तस्वीर
राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद राजस्थान के सियासी संकट ने नई करवट ले ली है। गहलोत भी इस बात को बखूबी समझ चुके हैं कि जब तक विधानसभा का सत्र नहीं चलेगा तब तक वह और कांग्रेस सचिन पायलट और उनके समर्थक 18 विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे। इसी कारण स्पीकर सीपी जोशी ने भी सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले ली है और कांग्रेस ने पूरे मामले को सियासी आधार पर लड़ने का फैसला ले लिया है।
ये भी पढ़ें- इन 5 आदतों को बदलें, ब्वॉयज बना सकते हैं लड़कियों को अपना दीवाना
इन परिस्थितियों में सचिन पायलट तो पीछे छूट गए हैं और अब पूरा मामला कांग्रेस बनाम राज्यपाल के रूप में बदल गया है। कांग्रेस बहुत कुछ सोच समझकर जल्द से जल्द विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग पर अड़ी हुई है। गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाकर विश्वासमत हासिल करना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में व्हिप का पालन करना पायलट खेमे के लिए मजबूरी होगी और व्हिप का पालन न करने पर उन्हें अयोग्य करार देना आसान हो जाएगा। इसके साथ ही सचिन पायलट सहित पूरे खेमे की कांग्रेस से बेदखली का रास्ता भी साफ हो जाएगा।
राज्यपाल की आपत्तियों में दम नहीं
गहलोत मंत्रिमंडल की बैठक में राज्यपाल कलराज मिश्र की ओर से उठाई गई आपत्तियों पर विस्तृत चर्चा हुई। राज्यपाल की आपत्तियों पर गहलोत मंत्रिमंडल की ओर से कहा गया कि राज्यपाल की तीन आपत्तियों में से 2 आपत्तियां विधानसभा के स्पीकर से संबंधित हैं जबकि एक आपत्ति राज्य सरकार से संबंधित है। बैठक के दौरान यह आम राय उभरी के राज्यपाल को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। मंत्रिमंडल की ओर से अब तक विभिन्न विधानसभाओं में शॉर्ट नोटिस पर सत्र बुलाए जाने की विस्तृत जानकारी प्रस्ताव के साथ राज्यपाल को भेजी गई है।
ये भी पढ़ें- शौर्य चक्र से सम्मानित राफेल के पहले कमांडिंग अफसर, अब लद्दाख में होगी तैनाती
मंत्रिमंडल की ओर से यह तर्क भी दिया गया है कि राज्यपाल कलराज मिश्र के कार्यकाल के दौरान ही 4 बार 10 दिन से कम समय के नोटिस पर सत्र बुलाया जा चुका है। उस समय राज्यपाल की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई। राज्यपाल से अनुरोध किया गया है कि वे स्पीकर के काम में हस्तक्षेप ना करते हुए 31 जुलाई से विधानसभा का सत्र बुलाने की अनुमति दें।
स्पीकर के काम में दखल न दें राज्यपाल
मंत्रिमंडल की बैठक के बाद राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने कहा कि राज्यपाल की तीनों आपत्तियां सरकार को स्वीकार नहीं है। उन्होंने कहा कि 21 दिन का नोटिस देना सरकार का अधिकार है, राज्यपाल का नहीं। विधानसभा का सत्र बुलाना सरकार का हक है और इस मामले में राज्यपाल को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। राज्यपाल स्पीकर को अपना काम करने दे और उनके काम में दखल न दें।
ये भी पढ़ें- सऊदी अरब के किंग सलमान की हालत खराब, अस्पताल में भर्ती, हुई ये बीमारी
उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और लाइव प्रसारण करना है या नहीं, यह स्पीकर का काम है, राज्यपाल का नहीं। सत्र को कितने दिन में बुलाना है, यह तय करना सरकार की जिम्मेदारी है। राज्यपाल मंत्रिमंडल का प्रस्ताव मानने के लिए बाध्य हैं।
राज्यपाल के खिलाफ कांग्रेस मुखर
राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने कहा कि राज्यपाल हमसे बहुमत साबित करने के बारे में सवाल पूछ रहे हैं जबकि सीएम गहलोत को बहुमत साबित करने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि वह पहले से ही बहुमत में है। राजस्व मंत्री ने कहा कि राज्यपाल को यह पूछने का हक नहीं है कि सत्र क्यों बुलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से तीसरी बार प्रस्ताव राज्यपाल के पास भेजा गया है और अब उन्हें मंत्रिमंडल की ओर से पारित प्रस्ताव पर मुहर लगा देनी चाहिए।
ये भी पढ़ें- सीमा विवाद: चीनी मीडिया का दावा-विवाद वाली जगह से पीछे हटने का काम हुआ पूरा
गहलोत और कांग्रेस की कोशिश जनता के सामने इस बात को साबित करने की है कि भाजपा और राज्यपाल जनता की चुनी हुई सरकार की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी को लेकर पार्टी राज्यपाल के खिलाफ अब मुखर हो गई है और पार्टी की ओर से देश भर के राजभवनों पर सोमवार को प्रदर्शन भी किया गया। दूसरी ओर भाजपा और पायलट यह नहीं चाहते हैं कि विधानसभा का सत्र बुलाया जाए। वे लगातार नियमों के अनुसार कार्रवाई करने पर जोर दे रहे हैं। कुल मिलाकर मामला बहुत दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है और अब हर किसी को इसी बात का इंतजार है कि ऊंट किस करवट बैठता है।