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Kargil Diwas 2019: पाक ने 84 में बनाया था कारगिल प्लान, भिंडरावाला कनेक्शन
लखनऊ: इस 26 जुलाई कारगिल युद्ध को 20 साल पूरे हो जाएंगे। 26 जुलाई 1999 को ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को युद्ध में हराकर कारगिल में तिरंगा फहराया था। आज पूरा देश विजय दिवस मना रहा है। इस युद्ध से जुड़ी हर एक बात हर एक हिन्दुस्तानी को मुहं जुबानी याद है। लेकिन आज हम जो बताने वाले हैं वो बहुत कम लोगों को ही पता होगा।
जरनैल सिंह भिंडरावाले से कनेक्शन
दरअसल पाकिस्तान भिंडरावाले को पंजाब में भारत विरोधी गतिविधियों के लिए मदद कर रहा था। प्लान ये था कि खेतों के रास्ते खालड़ा बॉर्डर पार कर भिंडरावाले और उसके साथी उधर से गुरिल्ला वार शुरू कर देंगे और पाकिस्तान उन्हें हर संभव मदद देगा। लेकिन देश की ख़ुफ़िया एजेंसीज को इस बात की भनक लग गई और पाकिस्तान के मंसूबों को आर्मी ने रौंद के रख दिया।
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13 अप्रैल 1984 को लेफ्टिनेट जनरल प्रेम नाथ के नेतृत्व में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कुमाऊं रेजिमेंट ने सियाचिन पर हमला बोल दिया। ऑपरेशन को नाम मिला ‘मेघदूत’। इस समय सियाचिन का इलाका बर्फ से ढका होता है। पाकिस्तानी आर्मी हाड़ कपा देने वाली इस ठंडक से बचने के लिए चौकियों को छोड़ बेस कैंप में लौट जाती थी। भारत ने इस मौके का फायदा उठाया और सर्दियों के आखिरी दिनों में इन चौकियों पर कब्जा कर लिया।
लेफ्टिनेट जनरल प्रेम नाथ इस बात को अच्छे से जानते थे। उनके नेतृत्व में कुमाऊं रेजिमेंट ने बिना किसी विरोध के पकिस्तान की लगभग 2600 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्ज़ा कर लिया। इसके साथ ही जून 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरावाले से भी मुक्ति मिल गई।
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पाकिस्तान में उस वक्त फौजी तानाशाह जिया-उल-हक़ राष्ट्रपति था। जबकि परवेज़ मुशर्रफ ब्रिगेडियर जनरल हुआ करता था। परवेज़ मुशर्रफ भारत की इस हरकत से बौखला गया था। उसने बदला लेने के लिए एक प्लान बनाया। डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस मिर्जा असलम बेग ने इस प्लान के बारे में राष्ट्रपति जिया को बताया। इस प्लान को नाम मिला ‘कारगिल प्लान’।
‘कारगिल प्लान’ के मुताबिक पाकिस्तानी सेना भारत की कुछ चौकियों पर हमला कर उन्हें अपने कब्जे में करने वाली थी। लेकिन जिया को लगा कि आर्मी ने ऐसा कुछ किया तो भारत युद्ध का ऐलान कर देगा और फिर मामला उलझता ही जाएगा। जिया ने ‘कारगिल प्लान’ को अपनी रजामंदी नहीं दी।
क्या था ‘कारगिल प्लान’
मिर्जा असलम बेग ने जिया को बताया कि इंडियन आर्मी ठंड के समय 17000 फीट की ऊंचाई पर बनी अपनी चौकियों को छोड़कर चली जाती है। ऐसे में अपने सैनिकों को इन चौकियों पर भेज उनपर कब्ज़ा कर लिया जाए। जब ठंड कम होने पर इंडिया के सैनिक नीचे से इधर आएंगे तो ऊपर बैठे हमारे सैनिक उन्हें मार गिराएंगे। कारगिल पर कब्ज़ा कर हम इंडिया के नेशनल हाईवे नंबर-1 पर कब्ज़ा कर लेंगे। इसके बाद भारत का कश्मीर और सियाचीन से संपर्क कट जाएगा और हम आसानी से दोनों पर कब्ज़ा कर अपना बदला ले सकेंगे।
जिया की ‘न’ से सुलग रहा था मुशर्रफ
जब जिया ने कारगिल प्लान के लिए इंकार किया तो मुशर्रफ उस समय तो कुछ नहीं बोला। लेकिन जब वो मुशर्रफ से आर्मी चीफ जनरल मुशर्रफ बना तो उसने ‘कारगिल प्लान’ को फाइलों से बाहर निकाल उसे जमीन पर उतारने का मन बना लिया। इसका कारण ये था कि 1998 में पकिस्तान ने 6 परमाणु विस्फोट कर दुनिया को शक्तिशाली होने का संदेश दे दिया था। ऐसे में उसे ऐसा लगा कि इंडिया उसके साथ युद्ध का ऐलान नहीं करेगा और चौकियों पर आसानी से कब्ज़ा हो जाएगा।
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नवंबर 1998 में पाक सेना के एक ब्रिगेडियर को कारगिल सेक्टर का जायजा लेने भेजा गया। जब ये ब्रिगेडियर वापस लौटा तो उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इंडियन चौकियां बर्फ से जमी हैं।
ब्रिगेडियर की रिपोर्ट से मुशर्रफ की बाछें खिल उठीं। कब्जे की तैयारीयों ने जोर पकड़ लिया। लेकिन 1984 वाले प्लान में तब्दीली करते हुए सैनिकों को मुजाहिदों की वेशभूषा में भेजा जाना तय हुआ। ताकि कुछ को कश्मीर के अंदर भेज वहां भारत विरोधी माहौल बनाया जा सके। इसका फायदा ये दिख रहा था कि इंडिया की आर्मी कश्मीर में फंसी रहेगी और चौकियों पर बिना विरोध के कब्ज़ा हो जाएगा।
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आपको बता दें, ये सब उस समय हो रहा था जब तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे थे। फरवरी 1999 में जब भारत के तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी अमन की बस लेकर लाहौर पहुंचे, तब तक मुशर्रफ कारगिल प्लान के कील काटें दुरुस्त कर चुके थे। जबकि पीएम शरीफ को कुछ पता ही नहीं था।
क्या किया मुशर्रफ ने
जनवरी 1999 में स्कर्दू और गिलगिट में तैनात फ्रंटियर डिविजन को संदेसा मिला कि मुशर्रफ ने उनकी छुट्टियां रद्द कर दी हैं। इसका कारण ये था कि फ्रंटियर डिविजन को पहाड़ों पर लड़ने के लिए विशेष तौर पर ट्रेंड किया जाता है। इसके बाद फ्रंटियर डिविजन के जवानों को कारगिल भेजा गया।
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इसके साथ ही लगभग 200 सैनिकों को आम आदमी के वेश में में कश्मीर में घुसपैठ के लिए भेजा गया। पाक आर्मी इंडिया की दस चौकियों पर कब्ज़ा करने की प्लानिंग में थी। लेकिन जब ये जवान कारगिल पहुंचे, तो वहां इन्हें कोई भी इंडियन सोल्जर नहीं मिला। ये माहौल उनके लिए बिन मांगी मुराद जैसा था। उन्होंने अपनी डिविजन से और ज्यादा सैनिक बुला लिए।
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अप्रैल आते-आते पाकिस्तान ने इंडिया की करीब 145 चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया। ये इलाका लगभग 200 से 300 वर्ग किलोमीटर का था। मई आ चुकी थी लेकिन इंडिया को इस कब्जे के बारे में कुछ पता ही नहीं था।
चरवाहों से खुला रहस्य
जैसे-जैसे बर्फ पिघलने लगती है चरवाहे पहाड़ियों पर लौटने लगते हैं। इस साल भी ऐसा ही हुआ जब कई चरवाहे पहाड़ियों पर लौटे तो उन्होंने पाया कि इंडियन चौकियों पर हथियारबंद लोगों का कब्जा है। इन्होने इसकी जानकारी आर्मी को दी।
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पहले तो खुफिया एजेंसियों को लगा कि ये आतंकी हैं। लेकिन जब रेडियो मैसेज इंटरसेप्ट किए गए तब पता चला कि ये कश्मीरी नहीं पश्तो हैं। जो पाकिस्तान के एक विशेष इलाके की भाषा है।
शरीफ को अंतिम समय में बुलाया गया
मई में इंडियन आर्मी को पता चल चुका था कि ये पाकिस्तानी आर्मी की सोची समझी चाल है। वो जवाबी हमले की तैयारी में लग गई। जब युद्ध जैसे हालात बनने लगे तो सबसे पहले मुशर्रफ ने आईएसआई, एयरफोर्स और नौसेना को इस ऑपरेशन के बारे में बताया। इसके बाद तय हुआ कि पीएम नवाज शरीफ को भी इस बारे में बता दिया जाए, क्योंकि यदि मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाता है तो पीएम ही देश का पक्ष रख सकता है।
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1999 मई 16-17 को रावलपिंडी के आईएसआई कैंप में पीएम शरीफ को उनके कुछ मंत्रियों के साथ बुलाया गया। सेना की तरफ से डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस तौकीर जिया, डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस जनरल अहसान और अन्य ने नवाज को नक़्शे के जरिए बताया कि लगभग 145 इंडियन चौकियों पर मुजाहिद्दीन कब्ज़ा कर चुके हैं। लेकिन पीएम को ये नहीं बताया गया कि असल में वो पाकिस्तानी सैनिक हैं।
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अजीज ने शरीफ को बताया, ‘ आर्मी जल्द ही सियाचिन की सप्लाई-लाइन काटने वाली है। मुजाहिद्दीन हमारे साथ हैं। कश्मीर में भी हम मजबूत हैं ऐसे में इंडिया को कश्मीर से आर्मी हटानी पड़ेगी। हम कश्मीर पर कब्ज़ा कर लेंगे। जब इंडिया हमसे बातचीत करेगा तो हम कारगिल के बदले में सियाचिन मांग लेंगे।’
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शरीफ को ये सब सुनकर लगा कि वो पाकिस्तान के इतिहास पुरुष बनने वाले हैं। बहुत खुश थे मीटिंग से निकल कर। लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि तारीखें इतिहास लिखती हैं इंसान नहीं, और उसके बाद जो हुआ वो भारत का इतिहास है जिसपर हमें गर्व है।