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सबसे दौलतमंद मंदिर: केरल का ये शाही परिवार संभालेगा कमान, जानें इसका इतिहास

सुप्रीम कोर्ट ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने की देखरेख का जिम्मा केरल के त्रावणकोर शाही परिवार को दे दिया है। बता दें कि ये मंदिर देश के सबसे दौलतमंद मंदिरों में शामिल है।

Shreya
Published on: 13 July 2020 10:06 AM GMT
सबसे दौलतमंद मंदिर: केरल का ये शाही परिवार संभालेगा कमान, जानें इसका इतिहास
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने की देखरेख का जिम्मा केरल के त्रावणकोर शाही परिवार को दे दिया है। बता दें कि ये मंदिर देश के सबसे दौलतमंद मंदिरों में शामिल है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से त्रावणकोर शाही खानदान सुर्खियों में आ गया है। इस परिवार का इस मंदिर से काफी ज्यादा जुड़ाव है। इतिहासकारों की मानें तो साल 1750 में हुए एक भव्य समारोह में इस रियासत के राजा ने अपना राज्य भगवान पद्मनाभ स्वामी को समर्पित कर दिया और फिर स्वामी के दास के रुप में ही त्रावणकोर का शासक किया।

इसके बाद से त्रावणकोर के शासक को भगवान पद्मनाभ स्वामी का दास यानी पद्मनाभदासों कहा जाने लगा। चलिए आपको बताते हैं इस शाही परिवार के बारे में जो दो लाख करोड़ के करीब खजाने वाले श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को संभालेगा।

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केरल से लेकर कन्याकुमारी तक रियासत का विस्तार

त्रावणकोर राजवंश त्रावणकोर राज्य को चलाता था। यह पहले काफी समृद्ध रियासत हुआ करती थी। एक वक्त था जब इस रियासत का विस्तार आधुनिक केरल के कई हिस्सों के साथ-साथ तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक हुआ करता था। इस रियासत का एक अलग झंड़ा भी था। इस रियासत को पहले पद्मनाभपुरम और फिर तिरुवनन्तपुरम से संभाला जाता रहा।

आजादी के बाद देश में मिली रियासत

ब्रिटिश राज के दौरान भी यह काफी समृद्ध रियासत रही, यहां के राजा जनकल्याण के काम करवाते रहे। देश के आजाद होने क बाद साल 1949 में यह रिसायत देश से जुड़ गई और साल 1971 में इस शाही परिवार से मिलने वाले पर्क्स भी बंद हो गए। तब भी शाही परिवार के पास बेहद संपत्ति थी, जो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद और बढ़ गई है।

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भगवान परशुराम ने सौंपा त्रावणकोर का राज

त्रावणकोर शाही के परिवार को लेकर कहा जाता है कि ये मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के पास से केरल आए और फिर यहीं बस गए। यही नहीं एक किवदंती ऐसी भी है कि इस परिवार को खुद शिव के अवतार परशुराम ने त्रावणकोर का राज सौंपा था। हालांकि इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है कि परशुराम माइथोलॉजी का चरित्र हैं या फिर एक सच्चाई।

इस राजा ने सबसे लंबे वक्त तक किया राज

त्रावणकोर के आखिरी राजा चितिरा तिरुनल बलराम वर्मा थे। शाही परिवार के आखिरी राजा ने रियासत पर सबसे लंबे वक्त तक राज किया है। राजा चितिरा तिरुनल बलराम वर्मा के शासनकाल में ही रियासत को देश से मिलाया गया। शादी ना करने के चलते रियासत की बागडोर उनके बाद उनके भाई के बेटे मूलम तिरुनल राम वर्मा को दी गई। फिलहाल यहीं शाहीपरिवार के मुखिया हैं। इन्हें अभी भी लोग महाराज ऑफ त्रावणकोर के नाम से पुकारते हैं।

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मैंगलोर में सर्वश्रेष्ठ मसालों की कंपनी

मूलम तिरुनल राम वर्मा की बात करें तो इनकी पढ़ाई और काम दोनों की शुरूआत लंदन में हुई है। ये साल 1972 में देश वापस लौटे और केरल के सर्वश्रेष्ठ मसालों की एक प्राइवेट कंपनी मैंगलोर में शुरु की, जिसका नाम Aspinwall Ltd है। इन्होंने दो शादियां की। पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद इन्होंने दूसरी शादी लंदन की एक रेडियोलॉजिस्ट से की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों ही शादियों से इनकी एक भी औलाद नहीं है।

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300 सालों से होता आया है वीणा उत्सव का आयोजन

इस शाही परिवार के अवस्थी तिरुनल राम वर्मा शास्त्रीय संगीत के जाने-माने हस्ती हैं। ये कर्नाटक संगीत के जानकार हैं, साथ ही अवस्थी तिरुनल को वीणा बजाने में भी महारत हासिल है। इनका प्रोग्राम देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होता है। बता दें कि त्रावणकोर में तकरीबन 300 सालों से वीणा उत्सव का आयोजन होता आ रहा है।

राजशाही खत्म होने के बाद भी है खूब रुतबा

बता दें कि राजशाही खत्म होने के बाद भी इस शाही परिवार का बहुत रुतबा है। आज लोग राजमहल को कोडिआर पैलेस के नाम से जानते हैं। त्रावणकोर के इस शाही परिवार ने आज भी अपनी रियासत को संभालकर रखा हुआ है। अब भी यहां पर शाही परिवार के सदस्य रहते हैं। राजमहल अपनी महीन वास्तुकला के लिए काफी प्रसिद्ध है। इसके अंदर 150 कमरे हैं। यहां पर राजपरिवार से आमंत्रण होने के बाद ही प्रवेश के लिए इजाजत मिलता है।

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ज्यादातर रहते हैं विदेशों में

बता दें कि इस राज परिवार के बहुत से युवा सदस्य विदेशों में ही रहते हैं। लेकिन अब भी कई सदस्य राजमहल यानी कि कोडिआर पैलेस में कई सदस्य रहते हैं। कहा जाता है कि ये शाही परिवार केरल की संस्कृति से जुड़ा हुआ है। परिवार के सभी लोग खाने के समय जमीन पर चटाई बिछाकर बैठते हैं और आज भी केले के पत्तों पर ही खाना खाते हैं।

वहीं सोमवार सुबह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये परिवार एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। SC ने फैसला सुनाया है कि मंदिर का सारा कामकाज त्रावणकोर शाही परिवार ही देखेगा।

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