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योगा से बदल रही दुनिया: नूपुर तिवारी

आज वह वैश्विक स्तर की एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी हैं। पिछली सदी में मुर्शिदाबाद के एक छोटे से गाँव में जन्मी इस लड़की की पृष्ठभूमि अत्यंत साधारण थी।

Shreya
Published on: 8 Jan 2020 7:21 AM GMT
योगा से बदल रही दुनिया: नूपुर तिवारी
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मयंक शर्मा

आज वह वैश्विक स्तर की एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी हैं। पिछली सदी में मुर्शिदाबाद के एक छोटे से गाँव में जन्मी इस लड़की की पृष्ठभूमि अत्यंत साधारण थी। एक परम्परागत ब्राह्मण परिवार की यह लड़की एक दिन इतना लम्बा सफर तय करेगी शायद तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लेकिन इस असाधारण प्रतिभा की धनी लड़की ने मुर्शिदाबाद के एक गाँव से कोलकता और कोलकता से जापान तक का एक सफल सफर तय किया।

साधारण पृष्ठभूमि की एक असाधारण लड़की

साधारण सी पृष्ठभूमि की इस असाधारण सी लड़की ने आगे चलकर बहुत से असाधारण कार्य किये। उसने न सिर्फ जापान बल्कि अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देशों में भी बहुत से सामाजिक कार्य किये और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अनगिनत लोगों को संभाला। उसके द्वारा किया जा रहे कार्यों को संयुक्त राष्ट संघ ने भी सराहा।

2017 के आस पास से उसे भारत के भी कई शहरों एवं राज्यों में अपने कार्यों के लिए जाना जा रहा है। एक अनिवासी भारतीय होने के बावजूद उसे पंजाब के युवाओं की भी चिंता है, तो उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जैसे शहर के बच्चों की शिक्षा की भी उसे चिंता है। उसे बंगाल की महिलाओं की चिंता है, उसे ओडिशा के आपदा पीड़ितों की भी चिंता है। यह साधारण पृष्ठभूमि की असाधारण लड़की अब काफी सयानी हो चुकी है, अब वह खुद भी एक माँ है। आज वह न सिर्फ सम्पूर्ण भारत बल्कि भारतीय संस्कृति में रचे बसे प्राचीन विचार "वसुधैव कुटुंबकम" की दृष्टि से सोचती है।

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कहानी हील टोकियो की संस्थापक नूपुर तिवारी की

आज हम बात कर रहे हैं "हील टोकियो" की संस्थापक नूपुर तिवारी की, जो कि 2003 से जापान में रह रही हैं। नूपुर ने जापानी कम्पनी मित्सुबिशी में एक वरिष्ठ कार्यकारी के रूप में कार्य करने के लिए जापान के शिकोकू शहर के लिए 2003 में कोलकता से उड़ान भरी और फिर धीरे धीरे विश्व पटल पर छा गईं। उनसे बात की "अपना भारत" के मुंबई - महाराष्ट्र ब्यूरो से मयंक शर्मा ने।

योग के माध्यम से जापान में भारतीय संस्कृति को पहचान दी

योग उनके ह्रदय में बचपन में बचपन से ही रचा बसा हुआ था। योग उनके परम्परागत परिवार की उनके लिए एक सांस्कृतिक देन के सामान था। जापान की रोबोटिक जीवन शैली में जब उन्होंने लोगों में तनाव देखा तो उन्होंने योग को लोगों के समक्ष एक समाधान के रूप में रखा। दरअसल नूपुर को जापान में रहते हुए एक और बात नागवार गुजर रही थी। उन्हें महसूस हुआ कि बौद्ध धर्म एवं अन्य सांस्कृतिक एकरूपताओं की वजह से जापान एवं भारत की संस्कृति में काफी समानतायें हैं।

जापान को भारत की इन सांस्कृतिक भेटों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, लेकिन कृतज्ञता तो दूर की बात है, जापान में लोग भारत को जानते तक नहीं हैं। तभी नूपुर ने ठान लिया कि मैं यहाँ योग के माध्यम से जापानी लोगों का भारतीय संस्कृति से परिचय करवाऊँगी। उन्होंने स्वेच्छा से बिना किसी लाभ की शर्त पर लोगों एवं विभिन्न संस्थानों के साथ योग शिविर प्रारम्भ किये। वे कुछ स्कूलों में अंग्रेजी एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध की कक्षाएं लिया करती थीं, उन्होंने इन स्कूलों में स्वैक्षिक योग शिविर भी प्रारम्भ कर दिए।

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धीरे धीरे योग को वहां लोग अपनाने लगे और अधिक से अधिक लोग इस माध्यम से नूपुर से जुड़ने लगे। योग को उन्होंने लोगों के समक्ष मानव जीवन के समस्यायों के समाधान के रूप में रखा। दरसल आज नूपुर की जापान में पहचान इस प्रकार की भारतीय महिला की बन गयी है कि उन्हें कई बार अनऑफिशियल बर्न्ड एम्बेसडर ऑफ़ इंडिया भी कहा जाने लगा है।

योग के माध्यम से समाज सेवा

नूपुर योग और शिक्षा के माध्यम से जापान में लोगों का जीवन रूपांतरित कर रही थीं। लेकिन 2015 में कुमामोटो भूकंप ने उनके जीवन को समाज सेवा से सीधे जोड़ दिया। इस भूकंप ने क्यूशू में एक बड़े क्षेत्र को तबाह कर दिया। नूपुर बताती हैं, "इस प्राकृतिक आपदा को देखकर मैं हैरान रह गई। मैं सोच रही थी कि मैं इन लोगों की कैसे मदद कर सकती हूँ, जिन्होंने मुझ जैसे एक अजनबी को इतना प्यार दिया है। यहाँ रहने वाले लोगों का सब कुछ बर्बाद हो चुका था। लोगों के बीच तनाव इतना बढ़ चुका था कि आत्महत्या करने तक को मजबूर हो चुके थे।"

सिर्फ पैसे से उनकी तात्कालिक सहायता के आलावा भी मैं कुछ करना चाहती थी। मैंने महसूस किया कि कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे इन लोगों के बर्बाद हो चुके जीवन को एक बार फिर सँवारा जा सके। जीवन की जो गाड़ी पटरी से उतर चुकी है उसे पुनः पटरी पर लाया जा सके। मैंने कुमामोटो में चैरिटी योग शिविर प्रारम्भ किये, जिससे भूकंप में अपना सब कुछ खो चुके दुःखी लोगों के जीवन को रूपांतरित किया जा सके।

योग, ध्यान, आत्म-चिकित्सा अभ्यासों के माध्यम से मैंने उन्हें नए सिरे से जीवन की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही साथ मैंने स्वैच्छिक दान कार्यक्रम भी चलाये जिससे होने वाली आय से बर्बाद हो चुके लोगों के घरों के पुनर्निर्माण को वित्तपोषित किया गया। नूपुर के इन कार्यक्रमों ने कुमामोटो के क्यूशू क्षेत्र को संभलने में काफी मदद की।

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संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता

संयुक्त राष्ट्र संघ ने नूपुर तिवारी के इन प्रयासों को काफी सराहा गया और मान्यता भी मिली। आगे चलकर श्रीलंका एवं अफ्रीका के कई हिस्सों को जब प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा तब संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें वहां भी योग और उपचार अभियान आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार योग से हुयी एक शुरुआत ने देश और दुनिया को दुरुस्त और तंदुरुस्त रखने के लिए नूपुर के समक्ष कई और आयाम खोल दिए।

अब वह एक शिक्षक एवं योग प्रशिक्षक के अतिरिक्त एक वैश्विक स्तर की समाज सेवी के रूप में भी स्थापित हो चुकी थीं। लोगों को प्रेरित करने के लिए मोटिवेशनल स्पीचेस के लिए भी उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा। अब उन्हें विश्व पटल पर एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी के रूप जाना जाने लगा।

हील टोकयो की स्थापना

अभी तक नूपुर तिवारी अपने सभी सामाजिक कार्य व्यक्तिगत सत्ता या इकाई के रूप में ही कर रही थीं। लेकिन अब उन्हें अपने फैलते दायरे को देखते हुए इसे व्यवस्थित रूप देना आवश्यक समझा और यहीं से नींव पड़ी हील टोकयो की। 2017 में उन्होंने हील टोकयो की स्थापना की। हील तोक्यो को नूपुर ने योग, सकारात्मक उपचार की सीमाओं के भीतर नहीं बांधा है। वो कहती हैं कि जब मैं खुद सीमाओं में बंधकर नहीं रह सकती तो मेरी संस्था भला कैसे ऐसा कर सकती है। हम हील टोकयो के माध्यम जितना कुछ इस वसुधैव कुटुंबकम के लिए कर सकते हैं, करेंगे। हम जहाँ जहाँ भी कुछ कर सकते हैं करेंगे। हम जल्द ही टोकयो में "वर्ल्ड पीस" पर एक इवेंट आयोजित कर रहे हैं।

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भारत की ओर बढ़ते कदम

हील टोकयो के लिए काम करते हुए और उसके पहले भी मुझे कई बार ऐसा लगता था कि मेरी मातृभूमि मुझे पुकार रही है और यह पुकार मुझे बार बार अपने देश के लिए भी अधिक से अधिक करने के लिए प्रेरित करती थी। मैं यहाँ के वंचित, निराश्रित बच्चों की शिक्षा के लिए अधिकतम सुविधाएँ मुहैया करना चाहती हूँ।

2017 से उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिया। वे यहाँ के कई राज्यों में स्कूलों के लिए कॉपी, किताबें एवं अन्य स्टेशनरी मुहैय्या कराने लगीं। आपदाओं के दौरान मुंबई और ओडिशा में उन्होंने काम किया। उन्होंने ओडिशा में आपदा, फेनी चक्रवात के दौरान एक ही दिन में अपनी योग इवेंट से 60000 रूपये इकट्ठे किये और मुख्यमंत्री सहायता कोष में ट्रांसफर कर दिए। मुंबई में 2017 में उन्होंने बाढ़ राहत हेतु कार्य किया। बंगाल के कई स्कूलों को भी बहुत सी सुविधायें मुहैय्या करवाईं। गुरुग्राम में पिछले वर्ष नई ईयर के दौरान निराश्रितों को कम्बल बांटे और अन्य कुछ सुविधायें भी मुहैया कराईं।

अलीगढ़ में वंचितों के लिए स्कूल

पिछले दिनों मुझे मेरे एक परिचित के माध्यम से पता चला कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक महिला झुग्गियों के बीच निराश्रित बच्चों को पढ़ा रही है। वह स्वेच्छा से उन बच्चों के लिए मेहनत तो कर रही है लेकिन उसके पास संसाधनों का आभाव है। मैं अलीगढ़ गई और जाकर देखा कि वहाँ क्या चल रहा है। मैंने वहां कि वह महिला क्षेत्र के निराश्रित एवं गरीब बच्चों को अपने ही एक कमरे में पढ़ा रही है।

हील टोकयो ने इस स्कूल को गोद ले लिया है, हील टोकयो के फण्ड से इस स्कूल को पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया गया है। अलीगढ़ के इस स्कूल में आज झुग्गियों के 110 बच्चे उपयुक्त शिक्षा पा रहे हैं। इस स्कूल में अब दो अतिरिक्त कमरे हैं, दीवारों पर जीवंत रंग रोगन और पेंट है। आधुनिक डिजिटल कक्षाएं भी अब इन वंचितों के लिए उपलब्ध हैं।

हील टोक्यो के माध्यम से ही छात्रों के लिए सभी किताबें, स्टेशनरी, वर्दी और उचित भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। योग और ध्यान को भी सीखने के अनुभव को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम में एकीकृत किया गया है। जिससे इन बच्चों का सर्वांगीड़ विकास हो सके। आखिर ये बच्चे ही तो कल के भारत की तस्वीर बदलेंगे न।

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नूपुर बताती हैं, कि अलीगढ़ के इस स्कूल का नुभव अभूतपूर्व रहा, "जब मैं वहां उन बच्चों के बीच खड़ी थी, तो मुझे एक अलग तरह का गर्व महसूस हो रहा था, इस सपने के साथ कि ये बच्चे भी किसी दिन अपनी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगी।"

वंचितों के सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत नूपुर तिवारी

कोलकता के साल्ट लेक क्षेत्र में भी हील टोकयो वंचितों के लिए एक स्कूल लेकर आ रहा है। बंगाल की ग्रामीण महिलाओं के लिए एक सशक्तिकरण कार्यक्रम की योजना पर भी काम चल रहा है। नूपुर बताते हैं कि बंगाल की यह योजनायें मेरी माँ के नाम समर्पित जिन्हें हमनी हाल ही में खो दिया है।

हील टोक्यो के लिए आदर्श वाक्य को नूपुर प्राचीन भारत के 'वसुधैव कुटुम्बकम' शब्दों में बस समेत देती हैं। “मैं केवल सकारात्मकता के पोषण में विश्वास रखती हूँ। मैं सभी विश्ववासियों को सामान रूप से स्थापित देखना चाहती हूँ।

आज, बहुत से लोग मुझे अपनी प्रेरणा मानते हैं। मेरा मानना है कि अगर मैं मेरी जैसी सौ नूपुरों को प्रेरित कर सकूं, तो वे कल और एक हज़ार को प्रेरित कर सकती हैं, जिससे सम्पूर्ण विश्व में खुशी और सकारात्मकता की एक लहर सी फ़ैल सकती है।

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