ममता का मंत्र: NRC के खिलाफ छात्रों को दी ये सलाह, कहा इसे जारी रखें

सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए ममता ने कहा कि सभी छात्रों से यह कहना चाहती हूं कि वे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपना प्रदर्शन जारी रखें।

SK Gautam
Published on: 26 Dec 2019 12:03 PM GMT
ममता का मंत्र: NRC के खिलाफ छात्रों को दी ये सलाह, कहा इसे जारी रखें
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mamta banerji

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नागरिकता संशोधन कानून पर देशभर में हो रही हिंसा के बीच कहा कि वे छात्रों से यह कहना चाहेंगी कि वे लोकतांत्रिक तरीके से सीएए और एनआरसी पर अपने प्रदर्शन जारी रखें।

एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए ममता ने कहा कि सभी छात्रों से यह कहना चाहती हूं कि वे लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपना प्रदर्शन जारी रखें।

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ममता बनर्जी ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ बड़ी तादाद में एकत्र होकर कोलकाता के राजा बाजार से मल्लिक बाजार तक प्रदर्शन मार्च किया। मंगलवार को उन्होंने एक जनसभा के दौरान बीजेपी, सीएए और एनआरसी के खिलाफ लगातार नारे लगाए थे।

पश्चिम बंगाली की मुख्यमंत्री ने बड़ी तादाद में एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुए नारे लगाए थे- बीजेपी छी छी... सीएए छी छी, एनआरसी नहीं चलेगा।

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कर्नाटक के मैंगलोर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। ममता बनर्जी ने सीएम येदियुरप्पा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा वादा पूरा नहीं करती। सीएम ने कहा था कि मैंगलुरु हिंसा में मारे गए दोनों युवकों के परिजनों को मुआवजा जांच के बाद मिलेगा। ममता ने इस रैली में 'सीएए, एनआरसी वापस लो, वापस लो' के नारे भी लगवाए।

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'बिना डर के जारी रखे आंदोलन'

ममता बनर्जी ने छात्रों से बिना किसी डर के सीएए के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन जारी रखने के लिए भी कहा। कोलकाता में राजाबाजार से मल्लिक बाजार तक विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहीं बनर्जी ने आरोप लगाया कि सीएए के खिलाफ बोल रहे छात्रों को भाजपा डरा रही है।

सरकार पर साध रही हैं निशाना

उन्होंने कहा कि हम सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे जामिया मीलिया इस्लामिया, आईआईटी कानपुर और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हैं।’ ममता बनर्जी लगातार सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं और सरकार पर निशाना साध रही हैं।

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आईये जानते हैं कि क्या है CAA और क्यों हुआ हो रहा है विरोध

सोशल मीडिया पर भी इस अधिनियम को लेकर बहस बहसी छिड़ी हुई है । प्रदर्शन विरोध में भी हो रहे हैं और समर्थन में भी। विरोध में आवाज बुलंद करने प्रदर्शनकारी इसे अपने लिए खतरा बता रहे हैं तो वहीं समर्थन करने वालों का दावे के साथ कहना है कि इस अधिनियम से किसी भी धर्म के किसी भी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं होने वाला है।

क्या आप जानते हैं कि यह नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA क्या है? इसका विरोध क्यों हो रहा है ? और समर्थन करने वाले क्यों इसके पक्ष में हैं? अगर नहीं जानते तो भी कोई दिक्कत नहीं।

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CAA क्या है?

CAA के बारे में जानने से पहले आइए नागरिकता संशोधन विधेयक यानी citizenship amendment bill (CAB) के बारे में जान लेते हैं। इस विधेयक को बीती नौ दिसंबर को लोकसभा में लाया गया, जहां इसे 80 के मुकाबले 311 मत से पारित कर दिया गया। इसके बाद इस विधेयक को दो ही दिन बाद बीती 11 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया गया, जहां इसके पक्ष में 125 वोट पड़े थे जबकि इसके विरोध में 99 सांसदों ने मतदान किया।

इस तरह संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद इस बिल यानी विधेयक को अगले दिन सुबह 12 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष ले जाया गया, जिन्होंने इस बिल पर हस्ताक्षर कर इसे अपनी मंजूरी दे दी और यह कानून बन गया। कानून बनने के बाद इसे नागरिकता संशोधन कानून कहिए या नागरिक संशोधन अधिनियम यानी CAA पुकारा गया।

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CAA में प्रावधान क्या है?

CAA के जरिए भारत के 3 पड़ोसी मुस्लिम देशों बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों, जिनमें छह समुदाय हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी को धार्मिक या किसी अन्य कारण से अपना देश छोड़कर आने पर भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया है।

CAA के लिए क्या शर्त रखी गई है?

साथियों, छह अल्पसंख्यक समुदायों के इन लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए शर्त यह रखी गई है कि यह अल्पसंख्यक बीते 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हों। इससे पहले भारतीय नागरिकता के लिए उन्हें इस देश में 11 साल बिताने पड़ते थे, CAA के तहत इस अवधि को घटाकर 6 साल कर दिया गया है।

CAA का विरोध देश में क्यों हो रहा?

CAA यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध इस वक्त पूरे देश में हो रहा है। आइए, आपको बताते हैं कि यह विरोध क्यों हो रहा है। दरअसल, इसके विरोध की वजह यह है कि यह कानून जिन अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात कर रहा है, जिन्हें यह प्रदान करने की बात करता है उसमें 6 गैर मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। जैसे कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी। इनमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, यही विरोध की जड़ है।

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सबसे पहले कहां शुरू हुआ विरोध

हमारे देश के जो मुस्लिम बहुल राज्य है वहां इनका विरोध शुरू हो गया है। सबसे पहले पूर्वोत्तर को इस आग ने अपनी चपेट में लिया। उसके बाद बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले असम और पश्चिम बंगाल में इस अधिनियम का पुरजोर विरोध हुआ। वहां कई भवनों को टायरों को आग के हवाले कर दिया गया, हिंसा भड़क उठी। जिसके बदले में वहां सरकारी आदेश पर प्रशासन की ओर से इंटरनेट सेवाओं को ठप कर दिया गया। साथ ही ट्रेन और हवाई सेवाओं के सामान्य रूट के समय में भी परिवर्तन कर दिया गया। हिंसा की आग ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया।

दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुआ जोरदार विरोध

दिल्ली विश्वविद्यालय में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र सड़कों पर उतर आए। इसके बाद उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र के विरोध में उतर आए। वहीं केरल और कर्नाटक में भी अधिनियम के विरोध में जबरदस्त प्रदर्शन जारी है। केरल में सत्तारूढ़ सरकार के साथ ही विपक्ष ने भी इस अधिनियम के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद की है। दिल्ली में बृहस्पतिवार को दिल्ली में 15 मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं ।कई जगह से लोगों को हिरासत में ले लिया गया है। ताकि हिंसा को भड़काने में अपनी भूमिका अदा करने वाले लोगों को दूर रखा जा सके।

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केंद्र सरकार का रुख क्या है?

इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से अपना रुख स्पष्ट किया जा रहा है। इस अधिनियम को लेकर तमाम गतिरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से लोगों को शांत करने की पूरी कोशिश की है। उसने लोगों को इस बात का भरोसा दिलाया है, कि किसी भी भारतीय नागरिक के किसी भी कानूनी अधिकार से, जो कि उसे संविधान में दिए गए हैं कोई छेड़छाड़ करने का इरादा उनका नहीं है। और ना ही नागरिकता संशोधन अधिनियम का उनके अधिकारों से कोई लेना-देना है।

उनका कहना है कि भारत का जो भी वासी चाहे वह हिंदू है, चाहे मुस्लिम है, उसका इस नागरिकता संशोधन अधिनियम से कोई लेना देना नहीं है। इसमें मुसलमानों को शामिल न किए जाने के मसले पर सरकार ने साफ किया है कि वह पहले की तरह देश के नागरिकता कानून के दायरे में होंगें। संविधान का सेक्शन-6 इस संबंध में उनकी सहायता करेगा।

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क्या बन सकता है मुसीबत

नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA के तहत किया यह गया है कि धार्मिक उत्पीड़न की वजह से जो भी नागरिक अपना देश छोड़कर हमारे देश यानी भारत आए हैं और उनके पास कोई वैध दस्तावेज जैसे वीजा, पासपोर्ट आदि नहीं है तो भी वे देश के नागरिक बन सकेंगे। इस अधिनियम के तहत अब 3 देशों से आए अवैध प्रवासियों को घुसपैठिया नहीं माना जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति पर अवैध प्रवासी संबंधी कोई कार्रवाई चल रही है तो भी नागरिकता के लिए उसकी पात्रता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इससे दुश्मन देश के जासूसों के भी फायदा उठाने की प्रबल आशंका है।

नागरिकता अधिनियम 1955 की व्यवस्था क्या थी?

आपको बता दें कि इससे पहले नागरिकता अधिनियम 1955 अवैध प्रवासियों की भारतीय नागरिकता पर प्रतिबंध लगाता था। अवैध प्रवासी वह माना जाता है, जिसने भारत में वीजा, पासपोर्ट या अन्य किसी वैध दस्तावेज के बगैर प्रवेश ले लिया हो या फिर जो निर्धारित समय सीमा से अधिक समय से भारत में रह रहा हो।

और किस अधिनियम में देनी होगी छूट

साथियों, आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत सरकार को 1920 के पासपोर्ट अधिनियम और 1946 के प्रवासी अधिनियम में भी छूट का प्रावधान करना पड़ेगा। क्योंकि 1920 का पासपोर्ट अधिनियम भारत में रहने वाले किसी भी प्रवासी के लिए पासपोर्ट को जरूरी करता है और 1946 का प्रवासी अधिनियम उनके यहां प्रवेश को प्रतिबंधित करता है । ऐसे में CAA को लागू करने के लिए इन दोनों में छूट का प्रावधान करना होगा।

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इससे पहले कब लाया गया था विधेयक

आपको यह भी बता दें कि इससे पहले इस विधेयक को 8 जनवरी को इसी साल लोकसभा में लाया गया था । जहां से इस विधेयक को पारित कर दिया गया था। इसे इसके बाद संसद के उच्च सदन राज्यसभा में पेश किया जाना था, लेकिन लोकसभा का सत्र समाप्त हो जाने के कारण इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका था। जिस वजह से यह निष्प्रभावी हो गया था। यही वजह थी कि सरकार ने इसको शीतकालीन सत्र में लाने की सोची थी। और ऐसा उन्होंने किया भी।

जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि बीती नौ दिसंबर को यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, जहां यह 80 के मुकाबले 311 वोट से पास हो गया। इसके बाद फिर इसे 11 दिसंबर को राज्यसभा में भेजा गया। दोस्तों, लगे हाथों आपको यह भी बता दें कि अगर जनवरी के महीने में राज्यसभा में यह बिल पास हो गया होता और लोकसभा में ना हुआ होता तो उस वक्त निष्प्रभावी नहीं होता। और उसे दोबारा से सदन में पेश करने की जरूरत ना पड़ती। लेकिन क्योंकि ऐसा नहीं हुआ था, इसलिए इसको दोबारा सदन में लाया गया और यह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही कानून बन गया।

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CAA में अब आगे क्या होगा

नागरिकता संशोधन कानून लागू हो चुका है, इसके बावजूद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन जारी है। इसे वापस ले जाने की मांग की जा रही है। इस संबंध में अब आगे क्या होगा तो आपको बता दें कि इसका फैसला अब केंद्र सरकार को करना है। फिलहाल केंद्र इस मामले में बैकफुट पर आने की राह पर नहीं दिखती। लिहाजा, कोशिश यही की जाने की होगी कि फिलहाल स्थिति को सामान्य किया जाए।

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