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कौन थे तानाजी, क्या है उनकी शौर्यगाथा और सिंहगढ़ किले की लड़ाई

इन दिनों बॉलीवु़ड में बायोपिक और ऐतिहासिक फिल्मों का दौर चल रहा है। अजय देवगन की फिल्म तानाजी भी इस लिस्ट में शामिल हो गई है। इतिहास के महान योद्धा पर आधारित यह फिल्म दमदार है और यह अजय देवगन के करियर की 100वीं फिल्म है।

Dharmendra kumar
Published on: 11 Jan 2020 10:45 AM GMT
कौन थे तानाजी, क्या है उनकी शौर्यगाथा और सिंहगढ़ किले की लड़ाई
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मुंबई: इन दिनों बॉलीवु़ड में बायोपिक और ऐतिहासिक फिल्मों का दौर चल रहा है। अजय देवगन की फिल्म तानाजी भी इस लिस्ट में शामिल हो गई है। इतिहास के महान योद्धा पर आधारित यह फिल्म दमदार है और यह अजय देवगन के करियर की 100वीं फिल्म है। अजय देवगन की फिल्म तानाजी: द अनसंग वॉरियर कोढांला किले की लड़ाई पर आधारित है।

कोढांला पुणे के पास बना यह किला बहुत ही ज्यादा खास था और हर कोई इस किले पर कब्जा करना चाहता था। मुगलों की उत्तर दिशा में पहले से ही अच्छी पकड़ थी और वह कोढांला किले की मदद से दक्षिण दिशा में भी अपना सम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। यह मराठा के लिए चिंता की बात थी। 1657 से लेकर 1664 तक कोढांला किला शिवाजी महराज के पास था, लेकिन 1665 में किसी कारण से शिवाजी को यह किला गंवाना पड़ा

कौन थे तानाजी मालुसरे?

तानाजी मालुसरे बहादुर और प्रसिद्ध मराठा योद्धाओं में शामिल थे और एक ऐसा नाम है जो वीरता का पर्याय है। वे महान शिवाजी के मित्र थे। उनको 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जहां उन्होंने मुगल किला रक्षक उदयभान राठौर के खिलाफ अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी थी, जिसने मराठाओं के जीत के मार्ग को प्रशस्त किया था।

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तानाजी मालुसरे की वीरता और बहादुरी की वजह से शिवाजी उन्हें 'सिंह' कहा करते थे। 1600 ईस्वी में गोडोली, जवाली तालुका, सतारा जिला, महाराष्ट्र में तानाजी मालुसरे का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार कोलाजी और माता का नाम पार्वतीबाई था। तानाजी के भाई का नाम सरदार सूर्याजी था।

क्या है सिंहगढ़ की लड़ाई

तानाजी मालुसरे के पुत्र के विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं और खुशियों का वातावरण था। वे शिवाजी महाराज और उनके परिवार को शादी में आने का न्योता देने पहुंचे थे तभी उनको पता चला कि शिवाजी महाराज कोढांला किला जो कि सिंहगढ़ किले के नाम से जाना जाता है वापिस मुगलों से पाना चाहते हैं। पहले सिंहगढ़ किले का नाम कोढांला हुआ करता था।

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1665 में पुरंदर की संधि की वजह से शिवाजी महाराज को कोढांला किला मुगलों को देना पड़ा। कोढांला पुणे के पास स्थित, सबसे भारी किलेबंदी और रणनीतिक रूप से रखा गया किला था। इस संधि के बाद मुगलों की ओर से राजपूत, अरब और पठान की टुकड़ी किले की रक्षा किया करती थी। इसमें सबसे सक्षम सेनापति उदयभान राठौर था और दुर्गपाल भी, जिसे मुगल सेना प्रमुख जय सिंह प्रथम ने नियुक्त किया हुआ था।

शिवाजी के आदेश के बाद तानाजी लगभग 300 सेना को लेकर किला फतेह करने के लिए चल पड़े। उनके साथ उनका भाई और 80 वर्षीय शेलार मामा भी गए थे। किले की दीवारें इतनी ऊंची थीं जिस पर आसानी से चढ़ पाना नामुमकिन था।

गौरतलब है कि उदयभान राठौर के नेतृत्व में 5000 मुगल सैनिकों ने किले की रक्षा की थी। एकमात्र किले का वो हिस्सा जहां मुगल सेना नहीं थी वो एक ऊंची लटकती हुई चट्टान के ऊपर था। बताया जाता है कि तानाजी अपने किसी पालतू जानवर जो कि एक विशालकाय छिपकली थी की सहायता से उस ऊंची चट्टान पर अपने सैनिकों के साथ चढ़ने में कामयाबी हासिल की थी और मुगल सैनिकों पर हमला बोला।

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इस हमले के बारे में उदयभान और मुगल सैनिकों को जानकारी नहीं थी। इस लड़ाई में तानाजी उदयभान द्वारा मारे गए और वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन उनके शेलार मामा ने तानाजी के बाद लड़ाई की कमान संभाली और उदयभान को मार दिया। अंत में मराठाओं ने किले पर कब्जा कर लिया। आखिरकार मराठाओं को तानाजी के शौर्य और सूझ-बूझ की वजह से कारण विजय मिली और सूर्योदय होते-होते कोढांला किले पर भगवा ध्वज फहरा दिया गया।

कोढांला किले पर विजय प्राप्ति के बाद शिवाजी काफी दुखे थे, क्योंकि उन्होंने अपने सबसे सक्षम कमांडर और दोस्त को खो दिया था। उनके मुख से आवाज निकल पड़ी- गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात् "गढ़ तो हाथ में आया, परन्तु मेरा सिंह (तानाजी) चला गया। उन्होंने तानाजी के सम्मान में कोढांला किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया, क्योंकि वे तानाजी को 'सिंह' कहकर पुकारते थे।

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तानाजी मालुसरे एक योद्धा थे जिन्होंने अपने पुत्र के विवाह और अपने परिवार की भी प्रवाह न की और शिवाजी महाराज की आज्ञा मानी और सिंहगढ़ किले की लड़ाई लड़ी और विजय प्राप्त की। महान योद्धा की वीरता को महाराष्ट्र और पूरा भारत याद करता है।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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