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कोरोना काल के बाद भयानक होने वाली है स्थिति, लोगों का होगा ऐसा हाल
कोरोना काल बीतने के बाद भी लंबे समय तक इस महामारी का असर दिमाग पर रहेगा। मतलब कोरोना की वैक्सीन बनने के बाद भी सालों तक लोगों के दिमाग पर कोरोना का डर छाया रहेगा।
नई दिल्ली: इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना वायरस के संकट से गुजर रही है। दुनियाभर के तमाम देशों में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया गया है। इस दौरान बहुत से लोगों के मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन अब ये बात सामने आई है कि इस कोरोना काल के गुजर जाने के बाद भी काफी लंबे समय तक लोग इस महामारी को दिमाग से नहीं निकाल पाएंगे।
लंबे समय तक दिमाग पर रहेगा त्रासदी का असर
इसे लेकर 15 अप्रैल 2020 को सेंट साइकियाट्री जर्नल में एक रिसर्च रिपोर्ट छपी थी, जिसका शीर्षक था- Pandemic: a call for action for mental health science. इस रिपोर्ट में लिखा था कि कोरोना का समय बीतने के बाद भी लंबे समय तक इस महामारी का असर दिमाग पर रहेगा। मतलब कोरोना की वैक्सीन बनने के बाद भी सालों तक लोगों के दिमाग पर कोरोना का डर छाया रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में दुनियाभर में हर पांचवा व्यक्ति तनाव से जूझ रहा है।
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लोगों में बना रहेगा इस त्रासदी का खौफ
स्वीडन में उपासाला यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ई-होम्स की अगुवाई में हुए इस रिसर्च में जो परिणाम सामने आए हैं, उसमें इस बात के संकेत मिले हैं कि ये महामारी लंबे वक्त तक मेंटल हेल्थ पर असर डालती रहेगी। लोगों में इस त्रासदी का खौफ बना रहेगा। इस रिपोर्ट में पहले के कुछ आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि इस महामारी के खत्म होने के बाद दुनिया में अचानक से मेंटल हेल्थ पेशेंट में इजाफा पाया जाएगा।
पहले भी हो चुकी है ऐसी समस्या
रिपोर्ट में पहले की महामारी का उदाहरण भी दिया गया है। साल 2003 में COVID- 19 के परिवार के वायरस सार्स की वजह से आई महामारी (इबोला वायरस) से जो लोग प्रभावित हुए उन्हें तनाव, निराशा, चिंता या पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर जैसी शिकायत हुई। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लास्गो के प्रोफेसर रोरी ओ कॉनर का कहना है कि, सार्स महामारी के बाद 65 साल के ऊपर के लोगों में सुसाइड की दर 30 फीसदी तक बढ़ी।
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क्या है शोध का सुझाव?
. इस रिसर्च का सुझाव है कि अभी से ही हेल्थ वर्कर और आम लोगों के मेंटल हेल्थ की मॉनिटरिंग शुरु कर देनी चाहिए। रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना के चलते बढ़ती बेरोजगारी, रोजगार छिन जाने का डर, परिवार से दूर होना, क्वरंटाइन या आइसोलेशन में रहने और अर्थव्यवस्था की खराब हालत को आम लोगों के मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक असर पड़ने की बड़ी वजह बताई गई हा।
. इसके साथ ही फिजिकल हेल्थ सर्विस के साथ-साथ क्राइसिस काउंसेलर और साइकोलोजिस्ट की व्यवस्था भी बड़े स्टर पर किए जाने की जरुरत पड़ेगी।
मेंटल हेल्थ पेशेंट के आंकड़ों में आई बाढ़
यू.एस, कनाडा और यूके आधारित फ्री Crisis Text Line परामर्श सर्विस है। यहां लोग अपनी प्रॉबल्म्स को लिखकर शेयर कर रहे हैं। फिर उनकी प्रॉबल्म्स का काउंसिलर समाधान बताते हैं। इसके मुताबिक, महामारी के दौरान यहां संपर्क करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है। मैसेज लिखने वाले लोगों में से ज्यादा लोगों ने अपनी प्रॉब्लम्स के लिए पैनिक, तनाव, चिंता, आतंकित करने वाले शब्दों का ज्यादातर इस्तेमाल किया है। इस संस्था के कोफाउंडर और चीफ बॉब फिबलिन के मुताबिक, पहले के 6 फीसदी के तुलना में अब 16 फीसदी लोग अपने घरों के साथ आइसलेशन, डोमेस्टिक वायलेंस, और सैक्सुअल एब्यूज जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
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भारत ने उठाए कौन से कदम?
भारत में केरल में मुफ्त मेंटल हेल्थ काउंसलिंग की व्यवस्था की गई है और ऐसा करने वाला केरल पहला राज्य है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च के आखिरी हफ्ते में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS) के साथ मिलकर फ्री में मेंटल हेल्थ काउंसिलिंग के लिए नंबर (08046110007) जारी किया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंस ने भी अपनी तरफ से टॉल फ्री नंबर (08046110007) जारी किया है।
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