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खाड़ी संकट में छिपे हैं अमेरिका के निहित स्वार्थ
ईरान और अमेरिका के बीच ताजा विवाद और हमलों के संदर्भ में तात्कालिक निष्कर्ष निकालने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि अमेरिका और ईरान के संबंध पूर्व में कैसे रहे हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि ईरान और अमेरिका के बीच 1980 से कोई औपचारिक डिप्लोमेटिक रिलेशन नहीं हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
ईरान और अमेरिका के बीच ताजा विवाद और हमलों के संदर्भ में तात्कालिक निष्कर्ष निकालने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि अमेरिका और ईरान के संबंध पूर्व में कैसे रहे हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि ईरान और अमेरिका के बीच 1980 से कोई औपचारिक डिप्लोमेटिक रिलेशन नहीं हैं।
समझने की बात ये है कि पाकिस्तान अमेरिका में ईरान की रक्षा शक्ति के रूप में कार्य करता है, जबकि स्विट्जरलैंड ईरान में अमेरिका की रक्षा शक्ति के रूप में कार्य करता है। वाशिंगटन, डीसी में पाकिस्तानी दूतावास के ईरानी हितों को देखते हुए संपर्क किया जाता है और तेहरान में स्विस दूतावास अमेरिकी हितों को देखता है।
इस समय का विवाद क्या है
-अमेरिका और ईरान के बीच 67 साल से चल रहा विवाद एक फिर गरमा गया है। इसकी शुरुआत शुक्रवार को तड़के इराक में अमेरिका की कार्रवाई से हुई जब उसने हवाई हमले में शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को मार गिराया। इस घटना से खाड़ी क्षेत्र में तनाव गहरा गया है।
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-शुक्रवार (3 जनवरी) को बगदाद में अमेरिका के हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर के कुद्स फोर्स के प्रमुख ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी। हमले में इराक के हशद अल-शाबी के उप प्रमुख की भी मौत हुई। अधिकतर शिया धड़े का नेटवर्क हशद अल-शाबी ईरान के करीब है और वह इराक सरकार के सुरक्षा बल में भी शामिल है।
-शनिवार (4 जनवरी) को हशद ने कहा कि राजधानी के उत्तर में उनके सुरक्षा बलों के काफिले पर नये हमले हुए। इराकी सरकारी मीडिया ने इन हमलों के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन के प्रवक्ता ने इससे इनकार किया है। प्रवक्ता माइल्स कैगिंस ने कहा, ''अमेरिका या गठबंधन की ओर से कोई हमला नहीं हुआ।"
-इराक में शनिवार को ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी और इराकी अर्द्धसैन्य बल के उप प्रमुख अबु महदी अल मुहंदिस के अंतिम संस्कार के लिए निकाले गये जुलूस में हजारों लोग शामिल हुए, जो अमेरिका की मौत हो नारा लगाते हुये चल रहे थे। अंतिम संस्कार में शामिल लोगों ने काले कपड़े पहन रखे थे और उनके हाथों में ईरान इराक समर्थित मिलिशिया के झंडे थे।
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-कुल मिलाकर विश्लेषकों का यह मानना है कि खाड़ी में तनाव बढ़ गया है। भारत चूंकि अमेरिका और ईरान दोनो से मित्रता रखता है इसलिए उसके लिए स्थिति बहुत ही खराब है। अगर यह तनाव लंबे समय तक चल गया तो चीन भी इससे नहीं बचेगा।
-अमेरिका ईरान के बीच छिड़े ताजा विवाद में ईरान का जवाब देना लोग तय मानकर चल रहे हैं हालांकि सेना के स्तर पर ईरान अमेरिका के खिलाफ कहीं नहीं ठहरता है इसलिए सीधे अमेरिका से टकराने से तो वह परहेज करेगा लेकिन ऐसे में वह अपने आसपास के अमेरिका के मित्र राष्ट्रों को निशाना बना सकता है। जिसमें इराक साफ्ट टारगेट बन सकता है। फिलहाल मध्यस्थता की संभावना से भी इस मसले का हल निकलने के आसार नहीं हैं।
चूंकि अमेरिका ने सीधा हमला कर अपनी ताकत का अहसास करा दिया है जिसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। दूसरे डोनाल्ड ट्रंफ ने सत्ता में आते ही ईरान से परमाणु संधि को रद कर दिया था, ऐसे में परमाणु संधि के समय अहम भूमिका निभाने वाले देशों के लिए भी इस विवाद में मध्यस्थता के लिए आगे आने की जगह नहीं बन रही है। ऐसे में तनाव के यह हालात लंबे खिंच सकते हैं।
-एक बात और अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह दांव ऐसे समय खेला है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं। 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी इराक पर हमला उस समय किया था जब 2004 में राष्ट्रपति चुनाव थे। कहा यह भी जाता है कि हमले के चलते ही बुश चुनाव जीते थे। यही दांव ट्रंफ का भी है। इसी साल चुनाव भी होने हैं।
-खाड़ी के तनाव का असर पूरी दुनिया सहित भारत पर पड़ना तय है। हमले के बाद क्रूड के दाम चार फीसदी बढ़ गए हैं। अगर खाडी युद्ध छिड़ता है तो चीन के बाद ईरान से सबसे अधिक तेल खरीदने वाले भारत पर असर पड़ना तय है। इसके अलावा खाड़ी देशों में लगभग काम कर रहे लगभग एक करोड़ भारतीय संकट में घिर सकते हैं। इन लोगों को युद्ध क्षेत्र से लाना बड़ी चुनौती होगी। जबकि अमेरिका अपने नागरिकों से इस क्षेत्र को छोड़ने को पहले ही कह चुका है। खाड़ी देशों में अपरा तफरी के हालात बनने शुरू हो गए हैं।
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अमेरिका ईरान में विवाद की शुरुआत कब हुई
-दोनो देशों के बीच विवाद की जड़ में तेल के कुएं हैं।
-मोटे तौर पर 1953 वह वर्ष था, जब अमेरिका ईरान के बीच कटुता की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि उस समय अमेरिका ने ईरान में तख्तापलट करवाया था और निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक को हटाकर ईरान के शाह रजा पहलवी के हाथ में सत्ता दे दी थी। यह तेल के कुओं पर अपना वर्चस्व बनाए रखने का अमेरिका का पहला कदम था।
-1979 में ईरान में एक नया नेता उभरा-आयतोल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी। आयतोल्लाह पश्चिमीकरण और अमेरिका पर ईरान की निर्भरता के सख्त खिलाफ थे। शाह पहलवी उनके निशाने पर थे। ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान में असंतोष को हवा मिली और एक दिन तख्ता पलट हो गया। शाह को ईरान छोड़ना पड़ा। 1 फरवरी 1979 को ख़ुमैनी निर्वासन से लौट आए।
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-1979-81 में ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो गए। तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में ले लिया। 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। 2012 में इस विषय पर हॉलीवुड फिल्म-आर्गो आई। इसी बीच इराक ने अमेरिका की मदद से ईरान पर हमला कर दिया। युद्ध आठ साल चला।
-2015-परमाणु समझौता: ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते समय दोनों देशों के संबंध थोड़ा सुधरने शुरू हुए। ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। इसके बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी गई। लेकिन ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया। दुश्मनी फिर शुरू हो गई।
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किसकी कितनी ताकत
अमेरिका के पास जहां 12.81 लाख सैनिक हैं तो ईरान के पास 5.23 लाख, इसी तरह अमेरिका के पास 48422 टैंक और तोपें हैं तो ईरान के पास 8577, जहाज और पनडुब्बी में भी अमेरिका भारी है लेकिन ज्यादा अंतर नहीं हैं अमेरिका के पास 415 तो ईरान के पास 398 जहाज और पनडुब्बी हैं। सिर्फ 12 मिसाइल्स के साथ ईरान का पलड़ा भारी है अमेरिका के पास सात हैं। हवाई ताकत के रूप में एयरक्राफ्ट और हेलीकाप्टर्स अमेरिका के पास 10170 हैं तो ईरान के पास 512 रक्षा बजट में तो दोनो देशों में कोई मेल ही नहीं है अमेरिका का रक्षा बजट 716 बिलियन डालर का है तो ईरान का 6.3 बिलियन डालर है। कुल मिलाकर अमेरिका के सामने ईरान कहीं नहीं टिकता लेकिन अगर ये तनाव लंबा खिंचता है या इसमें दूसरे देश कूदते हैं तो खाड़ी संकट भयावह रूप ले सकता है।