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एक बार फिर प्रेरित कर गए धोनी

महेंद्र सिंह धोनी के बारे में अकसर कहा जाता है कि वो दुनिया के सबसे बेहतरीन फिनिशर हैं। क्रिकेट वर्ल्ड कप 2011 का वो विनिंग सिक्स कौन भूल सकता है। उऩ्होंने सैकड़ों ऐसी पारियों खेली हैं जिसने देश के लिए हार की मुंह जाते मैच को दुश्मन के जबड़ों से खींच लिया था।

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Published on: 23 Aug 2020 9:43 PM IST
एक बार फिर प्रेरित कर गए धोनी
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MS Dhoni

अनुराग शुक्ला

महेंद्र सिंह धोनी के बारे में अकसर कहा जाता है कि वो दुनिया के सबसे बेहतरीन फिनिशर हैं। क्रिकेट वर्ल्ड कप 2011 का वो विनिंग सिक्स कौन भूल सकता है। उऩ्होंने सैकड़ों ऐसी पारियों खेली हैं जिसने देश के लिए हार की मुंह जाते मैच को दुश्मन के जबड़ों से खींच लिया था। धोनी के शानदार फिनिशर होने के बारे में तब भी सोशल मीडिया पर मीम बने थे जब उन्होंने टेरीटोरियल आर्मी में बतौर सैनिक बाकयदा अपनी भूमिका निभाई थी। उनकी इस भूमिका के दौरान ही जम्मू कश्मीर में धारा 370 खत्म की गयी। लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए फिनिशर धोनी को इस बहाने भी याद किया था।

धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अपनी पारी को भी के अलग अंदाज में फिनिश किया। मैं पल तो पल का शायर हूं। इस गाने के 4 मिनट और सात सेकेंड के वीडियो में अपनी क्रिकेट जीवन की थाती को समेटने वाले हमारे कैप्टन कूल यानी महेंद्र सिंह धोनी ने बतौर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी अपनी आखिरी मैसेज में भी बहुत से संदेश दिए हैं। जो क्रिकेट खेल रहे युवा खिलाड़ी हैं उन्हें तो संदेश दिया है साथ ही जो आज के चमकते सितारे हैं या फिर सामान्य लोग जो सिर्फ क्रिकेट को जानते हैं उन्हें भी धोनी ने संदेश दिया है।

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महेंद्र सिंह धोनी ने हमेशा पूरे देश को प्रेरित किया है। एक साधारण से घर का असाधारण प्रतिभाशाली महेंद्र सिंह धोनी ने अपने हर काम से सबको प्रेरित किया है। फील्ड में टीम को और स्क्रीन पर मैच देखने वाले हर भारतीय को उसकी जिंदगियों में कभी ना हार मानने की सीख दी है। मध्यम वर्गीय परिवार के माही से विश्व के महानतम कप्तान तक की उनकी यात्रा नसीहतों से भरी हुई है। विश्व का सफलतम कप्तान इसलिए क्योंकि वो क्रिकेट इतिहास के अकेले ऐसे कप्तान हैं जिसने आईसीसी की तीन ट्राफियां जीती हैं। इसके साथ ही सबसे ज्यादा 600 दिन तक भारत को नंबर एक टेस्ट क्रिकेट टीम बनाने का सेहरा भी माही के सिर ही बंधा है।

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टीवी स्क्रीन पर सचिन के बाद अगर किसी को देखकर पूरा देश निश्चिंत होता रहा है तो वो धोनी ही हैं। टॉप आर्डर ध्वस्त होने के बाद भी अगर ये कहा जाता रहा कि अरे अभी धोनी तो खेल रहा है तो ये विश्वास धोनी ने कमाया था। स्टंपिंग और रनआउट को लेकर विकेट के पीछ से अगर धोनी आउट की उंगली उठा दें तो विकेट के सामने खड़े अंपायर की उंगली उठे ना उठे भारत के लोग जश्न मनाने लगते थे। धोनी रिव्यू सिस्टम का नाम उनकी गिद्ध की नज़र और चीते की तेजी को ही दर्शाती है।

माही ने एक खिलाड़ी के तौर पर ही नहीं बल्कि इंसान के तौर पर दो दशक तक भारत के बहुत बड़े वर्ग को प्रेरित किया है। उनकी सादगी, विवाद का जवाब देने के लिए खेल के स्तर को उठाना, लगातार बिना रुके, बिना थके टीम बनाना, टीम कैसे बनाई जाती है ये सिखाना, टीम के बारे में सोचते हुए खुद की इमेज पर पड़ने वाले असर के बारे में ना सोचना ये मंत्र युवाओँ को धोनी ने ही दिए हैं। टीम फर्स्ट को कैसे खुद से ऊपर रखना है ये धोनी की देन सिर्फ क्रिकेट को नहीं बल्कि हर उस युवा प्रोफेशनल को है जो टीमवर्क करता है। धोनी ने दिखाया कि टीम से बड़ा कोई खिलाड़ी नहीं, टीम सबसे बड़ी है। उन्होंने कई बार खुद को ही नजीर बनाया है।

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महेंद्र सिंह धोनी ने अपने इस्तीफे से भी बहुत कुछ सिखाया है। कर्मण्येवाधिकारास्ते को किक्रेट के मैदान का मंत्र भी बनाया जा सकता है ये धोनी से समझा जा सकता है। धोनी ने अपने गुडबाय वीडियो में अपनी विफलताओं की कहानी भी लिखी है। डक पर आउट होने के चित्र भी ड़ालें हैं। उऩके खुद के पोस्टर जलऩे की तस्वीरें भी हैं। कोई भी सर्वकालिक महान कप्तान और क्रिकेट खिलाड़ी अपनी विदाई के दिन अपनी विफलताओँ को याद नहीं करना चाहता है। पर माही तो माही हैं। उन्होंने अपने इस वीडियो से साफ कर दिया कि हमारा अधिकार प्रयासों पर है परिणाम पर नहीं। यही वजह है कि धोनी कभी भी सफलता को सिर पर नहीं चढ़ने दिया। मैच जिताकर प्यारी सी स्माइल से ज्यादा फील्ड पर ना तो जश्न और हारने पर झल्लाहट की तल्खी कभी धोनी के चेहरे पर नहीं दिखी। ना विफलता को हावी होकर उऩ्हें तोड़ने की ताकत दी।

धोनी ने सिखाया कि खेल और खेल भावना का असली मतलब क्या है? स्पोर्ट्स और स्पोर्ट्समैन स्पिरिट की सबसे अच्छी बात ये हमें हार पचाना सिखा देती है। जो हारना सीख जाता है उसे जीतने से कोई रोक नहीं सकता है। यही वजह है कि धोनी भारत के सफलतम कप्तान हैं। उनकी सफलता आकंड़ों की मोहताज नहीं है वो दिलों पर राज करते हैं।

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धोनी ने साहिर लुधियानवी की नज्म पर बने गाने से सिर्फ अपनी गुडबाय फिल्म ही नहीं बनाई बल्कि उसके एक एक शब्द को अपने जीवन में उतारा है। इतने शानदार कैरियर के बाद इन गानों बोल क्यों कोई मुझको याद करे........ क्यों वक्त अपना बरबाद करे...का इस्तेमाल कोई सर्वकालिक महान ही कर सकता है। ऐसा खिलाड़ी जो खुद को खेल से छोटा समझता हो वही खेल का पर्याय बन सकता है शायद यही माही ने सिखाया है। माही ने बल्ला टांगा नहीं है पर नीली जर्सी में अब धोनी नाम के चमत्कार का दर्शन नहीं होगा। धोनी फील्ड पर भले नहीं है पर उनका खेल हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा, महानत खिलाड़ी होने के बावजूद खुद को खेल से छोटा समझने की ये सीख सिर्फ फील्ड में ही नहीं बल्कि पूरे देश में करोड़ों को प्रेरित करती रहेगी।



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