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रिश्तों की हत्याः ये कौन सा नया युग, जिसका अंजाम बहुत भयानक
यह धर्म , यह रोल तो हमें ठीक से निभाना होगा। क्योंकि ज़िंदगी में लेने व देने, पाने और खोने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि यह भी हम नहीं मानते, मानने को तैयार नहीं बैठें तो ज्ञान की नहीं, विज्ञान की बात सुनें।
योगेश मिश्र
आज सुबह सुबह मन बहुत परेशान हो उठा। कोरोना के भय, आतंक व दहशत में ज़िंदगी जीने वाला समाज कोरोना काल में ही इतना वीभत्स, भयानक व घृणास्पद हो जायेगा। यह सोच पाना हमारे लिए संभव नहीं था।
भय, आतंक व दहशत लोगों को जोड़ते हैं। एक साथ आने को मजबूर करते हैं। एक साथ आने की आधार भूमि तैयार करते हैं। पर हो सब उल्टा रहा है। लोग आपदा में अवसर तलाशने लगे हैं।
हिला देने वाली सुर्खियां
मोबाइल उठाते ही न्यूज़ ट्रैक के ग्रुप में एक साथ कई खबरें हमें ऐसी देखने को मिलीं की मैं अंदर तक हिल गया।
एक खबर रायबरेली से। जिसमें सरेनी थाना क्षेत्र के पांडेय का पुरवा गाँव में खेत पर काम करने गए बाप को बेटे ने धारदार हथियार से वार कर मार डाला। हत्यारा बेटा मौके से फरार।
दूसरी घटना हरदोई की है। कोतवाली पिहानी के गांव में भाई ने भाई को तलवार से काट डाला। बाप को गोली मार दी। भाई की मौत, बाप अस्पताल में भर्ती। आरोपी भाई फरार।
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भाभी से कर ली शादी
तीसरी बिहार से भी परेशान करने वाली ख़बर आई है। वहाँ एक देवर पंडित राकेश और भाभी पुनीता कुमारी के बीच प्यार इस क़दर परवान चढ़ा कि गाँव वालों को शिव मंदिर में दोनों की शादी करवानी पड़ी।
मामला मझौली थाने के गुरचुरवां गाँव का है। चार साल पहले पंडित हरिहर प्रसाद के बड़े बेटे से पुनीता की शादी हुई थी। लेकिन शादी के तुरंत बाद से ही देवर भाभी का प्यार परवान चढ़ने लगा।
गाँव में जब यह बात आग की तरह फैल गयी तब गाँव के लोगों ने पुनीता और राकेश की शिव मंदिर में शादी करवा दी। शादी के बाद पुनीता ने यह राज खोला कि उसके दोनों बच्चे देवर राकेश कुमार के ही हैं। यह प्रेम चार साल से चल रहा था।
ससुर बहू को ले भागा
चौथी खबर, वैसे तो बहू और ससुर का रिश्ता बाप और बेटी का होता है। लेकिन हरियाणा में यह रिश्ता भी शर्मसार हुआ। पानीपत में एक परिवार ने पुलिस को शिकायत दर्ज कराई कि ससुर अपनी बहू को लेकर 28 अगस्त से ग़ायब है।
28 अगस्त की रात दोनों ने मिलकर घर वालों को खाने में नशे की गोलियां खिला दीं। पुलिस को CCTV में ससुर, बहू और 10 माह की उसकी बच्ची एक साथ जाते हुए दिखे। तब जाकर पुलिस को इस शिकायत पर यक़ीन हुआ।
कानपुर देहात के गजनेर थाना क्षेत्र में एक पिता ने अपनी बेटी की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी। वजह यह थी कि बेटी अपने प्रेमी के घर जाकर वहीं रहने की ज़िद पर अड़ गई थी। पिता को यह बात नागवार लगी। वह कुल्हाड़ी लिए बेटी के प्रेमी के घर पहुँचा। जहाँ उसने बेटी को मौत के घाट उतार दिया है।
गर्म रोटी के लिए सास की पीटकर हत्या
मध्य प्रदेश के खंडवा में गर्म रोटी बनाकर नहीं देने पर ग़ुस्से में दामाद सुरेश ने अपनी 55 वर्षीय सास गुजर बाई की पीट-पीटकर हत्या कर दी।
घटना बिल्लौर गाँव की है। दामाद बहुत दिनों से अपने ससुराल में ही रहता था। रात को जब वह खाने पर आया तो उसकी पत्नी सो गई थी।
उसने अपनी सास से गर्म रोटी बनाकर देने को कहा। सास ने मना कर दिया तो वह आगबबूला हो गया। उसने इस घटना को अंजाम दे दिया।
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बेटे बेटियों ने सुध न ली मां ने दे दी जान
बिहार के गिरिडिह में एक बुजुर्ग महिला कमला देवी ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके तीन बेटियां और एक बेटा है। बेटा राजकुमार चौधरी दिल्ली में रहकर मज़दूरी करता है।
बेटा अपनी माँ को 5 हज़ार रुपये महीने भेजता भी था। लेकिन घर में अकेली रह रही माँ को ज़िंदगी बोझ लगने लगी थी। लिहाज़ा उसने फाँसी लगा ली। पर इसका पता तब चला जब बुजुर्ग महिला की लाश से बदबू आने लगी। कीड़े पड़ गये। तब अग़ल बग़ल वालों ने दरवाज़ा तोड़ यह मंजर देखा।
अपने अकेलेपन से कमला देवी इतना परेशान थी कि वह पहले भी आत्महत्या की कोशिश कर चुकी थी। यानी साफ़ है कि कई दिनों से उसके बेटे-बेटियों ने उसकी कोई सुधि नहीं ली थी।
हिन्दू नाम रखकर करता रहा रेप
तीन सितंबर को मेरठ के कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र के एक किशोरी गायब हो गई थी। परिजनों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी। तेरह दिन बाद कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र की पुलिस ने अब्दुल्ला नाम के एक शख्स को गिरफ्तार किया। पूछताछ में अब्दुल्ला ने बताया कि वह खुद को अमन कहता है। पहले किशोरियों को प्रेम जाल में फंसाता है। फिर उनके साथ दुष्कर्म जैसी घिनौनी वारदात को अंजाम देता है।
इन सबकी ज़िम्मेदारी हम सरकार पर कैसे डाल सकते है?
कैसे उसे क़ानून व्यवस्था के हवाले कर सकते है?
समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर किस समाज में हम जी रहे हैं?
बाप बेटे का नहीं हो रहा है। भाई भाई का नहीं हो रहा है। पत्नी पति की नहीं हो रही है। पति पत्नी का नहीं हो रहा है। बच्चे माँ बाप के नहीं हो रहे है। कुछ मां बाप बच्चों के नहीं हो रहे है। मुसलमान हवस के लिए धर्म बदल कर अपनी बेटी की उम्र की बच्ची से मुँह काला कर रहा है। यहाँ उसे अपने धर्म की याद नहीं आई। कोई किसी का नहीं हो रहा है।
यूज एंड थ्रो
सब उपयोगितावाद को जीवन का आधार मान बैठे हैं। जो अनुपयोगी है, उसे ख़त्म कर दें। जो उसे सूट करे उसे करो। पहले आदमी पर समाज का एक बंधन था। दबाव था। लेकिन वैश्वीकरण ने यह लोक लाज भी ख़त्म कर दी है।
लोक है नहीं। लोक ग़ायब हो गया है। है तो केवल मैं। मैं भी तमाम बुराइयों के साथ है। मैं भी इतना सीमित है, इतना आत्मकेद्रित है कि वह सिर्फ़ आज में, आज के पल में, यानी अभी में जी रहा है।
वह यह नहीं सोच पा रहा है कि दिन सबके ढलते है, बनते हैं, बिगड़ते है। आज हमारी, कल तुम्हारी, देखो बच्चों बारी बारी। यह उसे विस्मृत हो उठा है। दंड व पुरस्कार का चलन उसे याद नहीं। उसमें मर्म नहीं रह गया।
एक बेटी के लिए बाप के प्रेम से बड़ा प्रेमी का प्रेम बन बैठता है।
गर्म रोटी ज़िंदगी की क़ीमत पर?
छोटे भाई से भाभी का लिहाज़ ख़त्म हो जाता है।
ससुर शरीर की भूख के लिए बहू को नहीं छोड़ता है।
हम किस समाज में जी रहे हैं?
हमने कैसा समाज रचा है जो सिर्फ़ ज़रूरत के लिए जीता है। वह भी अपनी ज़रूरत के लिए। चाहे पेट की ज़रूरत हो या देह की। इससे आगे की वह सुन व समझ नहीं पा रहा है। वह भटकसुन्न हो गया है।
धर्म या रोल
हम धर्म को मानें तो धर्म हमें यह सब ऐसा कुछ करने की इजाज़त नहीं देता। कोई भी धर्म हो। यदि हम वह धर्म नहीं मानते जो भगवान, ईश्वर, ख़ुदा या गॉड से जुड़ता है। यानी हम नास्तिक हों तो भी हमारा हर काल खंड, हर रिश्ते, हर समाज, हर ज़रूरत, हर अवसर पर एक धर्म होता है। जिसे हम रोल कह सकते हैं।
यह धर्म , यह रोल तो हमें ठीक से निभाना होगा। क्योंकि ज़िंदगी में लेने व देने, पाने और खोने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि यह भी हम नहीं मानते, मानने को तैयार नहीं बैठें तो ज्ञान की नहीं, विज्ञान की बात सुनें।
विज्ञान में हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। विज्ञान को आप अनदेखा नहीं कर सकते। जब विज्ञान आपके किये धरे पर लागू होगा तब आपकी क्या स्थिति होगी। जरा सोचिये!