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पुलिसिया स्टोरी में झोल ही झोल

परिणाम आठ पुलिस वालों की निर्मम हत्या जो उत्तर प्रदेश पुलिस पर वो बदनुमा दाग जो शायद ही कभी भुलाया जा सके। इसके लिए उसके आला अधिकारी ज़िम्मेदार हैं।

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Published on: 9 July 2020 4:58 PM GMT
पुलिसिया स्टोरी में झोल ही झोल
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आठ पुलिस वालों का कातिल आतंक का पिछले 25 साल से प्रयाय- नाम विकास दूबे, करीब करीब हर राजनीतिक दलों ,सांसदों विधायकों, मंत्रियों की आखों का तारा एवं पुलिस वालों का हम प्याला हम निवाला। संगीन पे संगीन अपराध करता रहा। सरकारें आती रही जाती रही लेकिन उसका रसूख जिसके सामने प्रशासन नतमस्तक।

योगी सरकार की अपराधियों को ठोको आपरेशन में भी यह आदमी बेदाग रहा। यहां तक की एस टी एफ की हिट लिस्ट में भी इसका नाम नहीं था। परिणाम आठ पुलिस वालों की निर्मम हत्या जो उत्तर प्रदेश पुलिस पर वो बदनुमा दाग जो शायद ही कभी भुलाया जा सके। इसके लिए उसके आला अधिकारी ज़िम्मेदार हैं। लेकिन उन पर तो कोई कार्यवाही होगी नही,हलाल होंगें चंद छोटे अधिकारी जो प्रायः होता है।

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दूसरा सबसे चौकाने वाला पहलू बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में उज्जैन में आज मंदिर परिसर में मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी होती है। जिसके लिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने करीब 25 टीमें 6 दिन से उसको पकड़ने के लिए रात दिन एक किये हुए थीं। पुलिस को पता नही वो कहाँ हैं। पुलिस केवल अंधेरे में तीर चला रही है। लोकेशन पुलिस बताती है फरुखाबाद उसकी सीसीटीवी फ़ुटेज फरीदाबाद के एक होटल में मिलती है। उसमें भी संदेह उसकी आइडेंटिफिकेशन को लेकर है।

लेकिन वो तो उज्जैन में आराम से मंदिर में दर्शन कर रहा था बिल्कुल नार्मल कोई अपराध बोध नहीं चिल्ला कर कह रहा था मैं ही हूँ कानपुर का विकास दुबे। पुलिस ने उसके महलनुमा मकान को ज़मीदोज़ करके और उसकी गाड़ी को चकनाचूर करके ज़रूर बहुत बहादुरी का काम किया इसके लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को पुरस्कृत करना चाहिए। लेकिन इस नासूर की जो अनदेखी की गई और आतंकवाद का प्रयाय बनने दिया गया इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा।इसके लिए पुलिस,प्रशासन और वहां के हर दल के कद्दावर नेता दोषी है।

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इतना लचर और बिना किसी रोडमैप और बिना तैयारी के इनकाउंटर शायद पुलिस मुखिया के स्तर पर घोर लापरवाही बरती गई,जब 2 जुलाई की रात में 10 बजे राहुल तिवारी द्वारा एफआईआर विकास के खिलाफ दर्ज होती है जिससे उसका ज़मीन को लेकर विवाद था। पहले वो अपने क्षेत्र थाना चौबेपुर प्रभारी विनय तिवारी से शिकायत करता है वो राहुल तिवारी को लेकर विकास दुबे के घर जाता है जहां विकास दुबे राहुल को मारता है बचाने पर थाना प्रभारी को भी पिट देता है।विकास दुबे और विनय तिवारी की तकरार इससे पहले मार्च में भी होती है जिसमें मारपीट भी होती है।परिणाम भुगतने की धमकी विकास दुबे देता है जो पुलिस का वर्ज़न है।थाना प्रभारी विनय तिवारी राहुल को एस एस पी से मिलने को कहता है।

यहां सवाल जब एफआईआर रात को 10 बजे लिखी जाती है विकास का सहयोगी दयाशंकर अघिनोत्री के अनुसार कोई 8बजे चौबेपुर थाने से फ़ोन करके विकास दुबे को बताता है अगले 5 घंटे में रेड पड़ने वाली है जबकि तब तक एफआईआर भी दर्ज नही हुई थी और न कोई दबिश की बात थी तो कैसे यह संभव है। यह केवल ध्यान भटकाने वाली थ्योरी है। जब 10 बजे एस एस पी एफआईआर लिखने का आदेश देते है तो क्यों नहीं एस एस पी ने रेड कैसे पड़ेगी उसका रोड मैप ,बदमाश जिसके ख़िलाफ़ रेड पड़नी है उसकी तैयारी,घर की भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी, असलहों की जानकारी तथा उसके पास आदमियों की स्ट्रेंथ तथा इंटेलिजेंस इनपुट इसकी अनदेखी क्यों की और जब पी ए सी की मांग की गई तो उसकी भी अनदेखी की गई।

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और तो और कुछ पुलिस वालों को केवल डंडा लेकर भेजा गया था। सर्किल ऑफीसर देवेंद्र मिश्रा जो टीम को हेड कर रहे थे वो स्वयं निहत्थे थे। यानि पुलिस ने खुद को मौत के कुंड में डाल दिया था और परिणाम 8 पुलिस वालों की बलि हो जाती है। यहां डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस के 4 जून के आदेशों की भी अनदेखी की गई उसके अनुसार दबिश में दंगा रोधी उपकरणों से लैस हो। यहां तो पूरे आधुनिक असलहे भी नहीं थे और न ही किसी ने बुलेट प्रूफ जैकेट पहन रखी थी।

तीसरा सवाल जब थाना प्रभारी चौबेपुर विनय तिवारी की विकास दुबे से ठनी हुई थी विकास ने परिणाम भुगतने की धमकी दे रखी थी तो कैसे वो विकास दुबे की मदद कर रहा था। यह जांच का विषय है। जो दिखाया जा रहा है क्या इसके पीछे कोई राज़ है। दबिश के 9 घंटे पहले भी इसने हल्का प्रभारी के के शर्मा को फ़ोन पर गालियां दी थी और कहा था पुलिस अगर गांव में आई तो इन पुलिस वालों की इतनी लाश बिछ जायगी की कंधा देने वाला भी नही मिलेगा।

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जो इतना दुर्दान्त कुख्यात और दुःसाहसी हो और पुलिस ही आतंकित रहती हो जिसका परिणाम था। इन पुलिस अधिकारियों ने अपने उच्च अधिकारियों से यह बात छुपाई। इसके लिए स्वयं पुलिस ज़िम्मेदार है और उनके अधिकारी जो बस किसी बड़ी घटना के इंतज़ार में रहते है। पुलिस इतनी निरीह हो गयी है बस उसका ध्यान मलाईदार पोस्टिंग और सत्तानाशीनों कि चाटुकारिता और उनके संरक्षण में पलने वाले गुंडों मवालियों की आपराधिक गतिविधियों को नज़रअंदाज़ करना ,यही पोलिसिंग है।

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चौथा जो पत्र सर्किल ऑफीसर बिल्हौर दिवंगत देवेंद्र मिश्रा ने मार्च में तत्कालीन एस एस पी अनंत देव तिवारी को लिखा था जिसमे थाना प्रभारी चौबेपुर विनय तिवारी पर सीधा सीधा आरोप लगाया था कि वो विकास दुबे से मिला है और कोई बड़ी घटना हो सकती है, लेकिन जांच में सामने आया पत्र सर्किल अफसर कार्यालय के कंप्यूटर पर तो टाइप हुआ लेकिन एस एस पी आफिस में रिसीव ही नही हुआ। तो पत्र कहाँ गया। क्या यह पत्र दिवंगत अफसर द्वारा लिखा भी गया था या इसमें भी कोई राज़ छुपा है।

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इसकी भी ज्यूडिशियल जांच होनी चाहिए तथा दूध का दूध एवं पानी का पानी होना चाहिए। पुलिस तंत्र जिस 100 साल पुराने पैटर्न पर चल रहा है उस पर आमूल चूल परिवर्तन की ज़रूरत है। वोहरा कमेटी की रिपोर्ट जो 1993 से धूल चाट रही है उसको अमल में लाने की ज़रूरत हो रही है। इसके अनुसार राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ पर लगाम। इसके अलावा जो 250 के लगभग सुधार समिति की रिपोर्ट के सुझावों पर भी सरकार को सक्रिय होना चाहिये।यही समय की मांग है।

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