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संकट भांपने में विफल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, लगातार ध्वस्त हो रहे सूबाई किले

कांग्रेस के हाथ से पहले कर्नाटक निकला, फिर मध्य प्रदेश और अब राजस्थान में भी वैसी ही स्थितियां पैदा हो गई हैं। इन तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व...

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Published on: 13 July 2020 10:10 AM IST
संकट भांपने में विफल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, लगातार ध्वस्त हो रहे सूबाई किले
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कांग्रेस के हाथ से पहले कर्नाटक निकला, फिर मध्य प्रदेश और अब राजस्थान में भी वैसी ही स्थितियां पैदा हो गई हैं। इन तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व संकट को भांपने में पूरी तरह विफल रहा है। छत्तीसगढ़ में भी हालात अच्छे नहीं बताए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में लगातार हो रही टूट से समझा जा सकता है कि पार्टी के लिए आगे की राह काफी मुश्किलों भरी है। राज्यों में विधायकों की लगातार बगावत कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के लिए मुसीबत बन गई है और पार्टी को इस संकट से बाहर निकालने वाले नेता ही नहीं दिख रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा को इसका जबर्दस्त फायदा मिल रहा है और विभिन्न देशों में उसकी स्थिति लगातार मजबूत हो रही है।

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दस जनपथ तक सीमित हैं सोनिया

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और तब से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है। सोनिया गांधी की सक्रियता सिर्फ 10 जनपथ तक सीमित है और विभिन्न सूबों में पार्टी का कामकाज देखने वालों से उनका मिलना-जुलना नहीं होता। हालत यह है कि कोई अपनी शिकवा-शिकायत पहुंचाने के लिए उनसे मिलना भी चाहें तो उसकी मुलाकात नहीं हो पाती। सोनिया गांधी 10 जनपथ में बैठकर रिमोट से पूरे देश में पार्टी का संचालन कर रही हैं। उनकी कार्यकर्ताओं के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर भी वैसी पकड़ नहीं है जैसी पूर्व में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की हुआ करती थी।

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राहुल गांधी की ट्विटर पर सक्रियता

कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद राहुल गांधी की सक्रियता ट्विटर पर ही ज्यादा दिख रही है। वे ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने में तो लगातार सक्रिय हैं मगर उनके अपने घर में क्या हो रहा है, इससे वे पूरी तरह कटे हुए हैं। हाल के दिनों में उन्होंने भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर पीएम मोदी पर बड़ा हमला बोला है मगर अपनी पार्टी की मजबूती के लिए उनकी ओर से शायद ही कोई कदम उठाया गया है।

प्रियंका गांधी यूपी तक सीमित

कांग्रेस की तीसरी मजबूत नेता प्रियंका गांधी राहुल की तरह ट्विटर पर ज्यादा सक्रिय हैं। उन्होंने खुद को उत्तर प्रदेश तक सीमित कर लिया है। वे दूसरे राज्यों के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं लेतीं। वे योगी सरकार पर तो लगातार हमलावर हैं मगर दूसरे राज्यों में पार्टी की गतिविधियों से पूरी तरह बेफिक्र दिखती हैं। इस तरह पार्टी के तीनों शीर्ष नेता विभिन्न राज्यों में पार्टी में चल रही उठापटक से पूरी तरह कटे हुए हैं।

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क्षेत्रीय क्षत्रपों के भरोसे कांग्रेस

पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता पहले ही किनारे लगाए जा चुके हैं। दूसरी पंक्ति के जिन नेताओं को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है उनकी पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं पर कोई पकड़ नहीं दिखती। विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की मजबूती भी गांधी परिवार से ज्यादा क्षेत्रीय क्षत्रपों के भरोसे ही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजस्थान में अशोक गहलोत, मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह और छत्तीसगढ़ में भूपेश सिंह बघेल के भरोसे ही पार्टी चल रही है। ऐसे में राज्यों में कोई भी असंतोष पैदा होने पर कांग्रेस आलाकमान कुछ भी नहीं कर पाता और सिर्फ मूकदर्शक बनकर कांग्रेसी किला ध्वस्त होते देखता रह जाता है।

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मध्य प्रदेश से नहीं सीखा कोई सबक

मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिरने पर भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने कोई सबक नहीं सीखा। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार ठीकठाक चल रही थी मगर सिंधिया की नाराजगी को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया गया और नतीजा यह हुआ कि मजबूती से चल रही कमलनाथ सरकार सिंधिया की बगावत के बाद अचानक भरभरा कर ढह गई। सिंधिया अपने साथ करीब दो दर्जन विधायकों को भी ले जाने में कामयाब रहे और इसका नतीजा यह हुआ कि कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई। इससे भाजपा को बड़ा फायदा हुआ और वह शिवराज सिंह की अगुवाई में मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हो गई।

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राजस्थान में काफी दिनों से तनातनी

वैसी ही स्थितियां अब राजस्थान में भी पैदा हो गई हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री तय करने में भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। उस समय राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष थे और वे कई दिनों की मशक्कत के बाद ही सचिन पायलट को अशोक गहलोत के नाम पर रजामंद कर पाए थे। दिसंबर 2018 में उन्होंने एक फोटो ट्वीट थी जिसमें उनके साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट दिख रहे थे। फोटो के साथ उन्होंने गहलोत के राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री होने की सूचना दी थी। उस समय भी सचिन पायलट सीएम पद के लिए अड़े हुए थे और राहुल गांधी को उन्हें डिप्टी सीएम पद के लिए तैयार करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।

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गहलोत-पायलट के मतभेदों को नहीं किया दूर

राजस्थान में अशोक गहलोत की अगुवाई में सरकार का गठन तो हो गया मगर सरकार गठन के बाद से ही लगातार उनके और सचिन पायलट के बीच मतभेद की खबरें आती रही हैं। राजस्थान में कांग्रेस को चुनाव जिताने में सचिन पायलट की बड़ी भूमिका रही है मगर निर्णायक मौके पर हाथ से सीएम का पद छिटक जाने की कसक उनमें लगातार बनी रही। बीच-बीच में अशोक गहलोत को लेकर उनकी तमाम शिकवा शिकायतें रही हैं मगर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सरकार गठन के बाद दोनों को बुलाकर इन मतभेदों को दूर करने का कभी प्रयास नहीं किया।

राजस्थान में आंखें मूंदे रहा शीर्ष नेतृत्व

स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का नोटिस मिलने के बाद सचिन पायलट बिफर उठे और उन्होंने धमाका करते हुए अपने विधायकों के साथ दिल्ली कूच कर दिया। हालांकि काफी कोशिशों के बावजूद उनकी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात नहीं हो सकी मगर राजस्थान के पूरे घटनाक्रम ने एक बात साफ कर दी कि अगर शीर्ष नेतृत्व समय पर जाग जाता तो स्थितियों को इतना बिगड़ने से बचाया जा सकता था।

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शीर्ष नेतृत्व की नाकामी से भाजपा को फायदा

विभिन्न प्रदेशों में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की नाकामी का भाजपा पूरा फायदा उठा रही है। मध्यप्रदेश में सरकार न बन पाने की भाजपा की कसम को दूर करने का मौका कांग्रेस की ओर से ही दिया गया और नतीजा यह हुआ कि सिंधिया की बगावत के बाद भाजपा एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब हो गई। ऐसी ही स्थितियां कर्नाटक में भी बनी थीं और वहां भी येदियुरप्पा की सीएम के रूप में ताजपोशी कराने में भाजपा कामयाब रही।

हालांकि राजस्थान का गणित थोड़ा अलग है और भाजपा के लिए यहां सरकार का गठन करना थोड़ा मुश्किल लग रहा है क्योंकि पायलट की बगावत के बाद भी अभी बहुमत का आंकड़ा जुटता नहीं दिख रहा है। लेकिन अगर यहां भाजपा गहलोत की सरकार को गिराने में कामयाब हो जाती है तो इसे भी उसकी बड़ी कामयाबी ही माना जाएगा।

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