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राजस्थान सियासी दंगल: इसलिए कमलनाथ हुए पस्त, लेकिन गहलोत ने दी पटखनी

इन दिनों राजस्थान में चल रही सियासी उठापटक पूरे देश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनी हुई है।मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के तख्ता पलट के बाद सचिन पायलट की बगावत ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी सकते में ला दिया था।

Newstrack
Published on: 19 July 2020 5:58 PM IST
राजस्थान सियासी दंगल: इसलिए कमलनाथ हुए पस्त, लेकिन गहलोत ने दी पटखनी
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नई दिल्ली। इन दिनों राजस्थान में चल रही सियासी उठापटक पूरे देश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनी हुई है।मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के तख्ता पलट के बाद सचिन पायलट की बगावत ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी सकते में ला दिया था। ऐसा समझा जा रहा था कि भाजपा कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का फायदा उठाकर कांग्रेस से ये बड़ा राज्य भी छीन लेगी।लेकिन राजस्थान की राजनीति के माहिर खिलाड़ अशोक गहलोत ने फिलहाल अपनी सरकार बचाकर यह साबित कर दिया है कि उन्हें यूं ही राजस्थान की राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता।

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गहलोत का पलड़ा भारी

अपने पिछले शासनकाल में अल्पमत की कांग्रेस सरकार को बहुमत का बनाकर पांच साल तक राज करने वाले गहलोत ने बागी तेवर दिखा रहे पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को पटखनी दे दी है।

फिलहाल तो सियासी तराजू में गहलोत का पलड़ा भारी है।ऐसे में सवाल उठता है कि राजस्थान में गहलोत ने ऐसा क्या किया तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ नहीं कर पाए।

संख्याबल का खेल-

राजस्थान और मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा अंतर संख्या का है।मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच विधायकों की संख्या का अंतर बेहद कम था वहीं चुनाव में गहलोत ने राजस्थान में भाजपा को हराकर क्लियर विनर का खिताब लिया था।

यह बात औऱ है कि उन्हें 99 सीट ही मिली थी जो बहुमत के आंकड़े से दो कम थीं लेकिन भाजपा विधायकों की संख्या इससे कहीं कम थी।

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राजनीतिक प्रबंधन में माहिर गहलोत ने समय से पहले ही इस कमी को भी पूरा कर लिया जब उपचुनाव में एक सीट जीतकर उन्होंने अपनी पार्टी की संख्या 100 तक पहुंचाई और बाद में बसपा के जीते सभी 6 विधायकों को तोड़कर अपनी स्थिति को और मज़बूत कर लिया।

पायलट और सिंधिया का अंतर-

मध्य प्रदेश में बगावत करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के सेकंड जेनरेशन के कद्दावर नेताओं में से एक माने जाते थे।सचिन भले ही इसी पीढ़ी के तेज़ तर्रार नेता रहे हों लेकिन उनका कद सिंधिया के मुकाबले उन्नीस ही ठहरता है।

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सिंधिया राज घराने से संबंध रखते हैं और लोगों से लेकर विधायकों तक उनके प्रति उसी तरह श्रृद्धा रखते हैं जो सदियों से उनके परिवार को मिली है।सिंधिया का अपना राजनीतिक गढ़ है जबकि पायलट राजस्थान में सियासी तौर पर अपना किला उतना मज़बूत नहीं बना पाए हैं।

पॉलिटिकल मैनेजमेंट के माहिर हैं गहलोत-

गहलोत देश के उन चुनिंदा नेताओँ में से एक हैं जिन्हें पॉलिटिकल मैनेजमेंट में घाघ माना जाता है।हाल में हुए राज्यसभा चुनाव से पहले ही राजस्थान में यह अटकलें थीं कि गहलोत सरकार को बगावत का खतरा है।लिहाज़ा अशोक गहलोत ने अपने विधायकों पर सतर्क निगाह रखी।

चाहे राज्यसभा वोटिंग की बात हो या फिर वर्तमान संकट,उन्होंने ज्यादा से ज्यादा विधायक ऐसी जगह पर रखे जहां पर वह निगाह रख सकते हों।

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कहा तो यह भी जाता है कि भले ही पायलट को 30 विधायकों का समर्थन प्राप्त हो लेकिन उनके साथ सिर्फ 18 ही जा सके।बाकी बचे 11 विधायकों को गहलोत ने सत्ता ,एसओजी,दलबदल यानी साम, दाम, दंड, भेद के ज़रिए फिलहाल अपने पाले में रोक रखा है।

शिवराज और वसुंधरा के रवैये से पड़ा असर-

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत का एलान होते ही शिवराज समेत पूरी भाजपा ने उन्हें लपक लिया।वहीं राजस्थान के मामले में भाजपा की ऐसी तेज़ी देखने को नहीं मिली।इसके पीछे वसुंधरा राजे सिंधिया का रवैया भी अहम कारण बना।राजस्थान के सियासी जानकार कहते हैं कि खुद वसुंधरा नहीं चाहती थीं कि पायलट की भाजपा में एंट्री हो।

दरअसल पायलट के भाजपा में आने से जाट, गुज्जर और मीणा बोटबैंक का ऐसा समीकरण बन सकता था जो वसुंधरा और उनके राजपूत समर्थक वर्चस्व को चुनौती देता ।

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अपने दावे को हकीकत में भी बदलना चाहते

वसुंधरा के करीबी राजस्थान के पूर्व स्पीकर और भाजपा के वर्तमान विधायक ने खुद ही राजस्थान की अस्थिरता औऱ सरकार गिराने के प्रयासों की निंदा की जिसे बाद में सीएम अशोक गहलोत ने अपने ट्वीट में जगह दी।

वहीं एनडीए के सांसद हनुमान बेनिवाल ने तो खुलकर आरोप लगाय़ा है कि वसुंधरा राजे गहलोत सरकार को खुद बचा रही है।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल से मिलकर पूर्ण बहुमत का दावा किया है और राजस्थान में फ्लोर टेस्ट कराकर वह अपने दावे को हकीकत में भी बदलना चाहते हैं।

वहीं सचिव पायलट अपने सहयोगियों के कंधे पर बंदूक रखकर लड़ाई लड़ रहे हैं और इस जंग में अचानक चुप्पी भी ओढ़ लेते हैं।वसुंधरा की खामोशी टूटी ज़रूर है पर उनके हमलों में धार नहीं दिख रही है।

ऐसे में राजस्थान की राजनीति के माहिर मानते हैं कि गहलोत कमलनाथ की राह पर नहीं जाएंगे बल्कि सियासत की नई इबारत लिखेंगे।

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