TRENDING TAGS :
इन्होंने लिखी थी हनुमान चालीसा, सम्राट अकबर के कैद से मिली थी प्रेरणा
ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने ही हनुमान चालीसा को भी लिखा था। वहीं इसके रचयिता हैं। तुलसीदास का नाम तो जग जाहिर है।
लखऊ: लगभग हर हिंदू घर में आपको हनुमान चालीसा मिल जाएगी। भारी तादाद में लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस पाठ के करने से शांति के साथ-साथ शक्ति मिलती है और डर दूर होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि हनुमान चालीसा किसने लिखी थी। क्या आप इसको लिखने वाले के बारे में जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान चालीसा के रचयिता को सम्राट अकबर ने जेल में डाल दिया था। उसके बाद बंदरों के उत्पात मचाने के बाद उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा था।
गोस्वामी तुलसीदास ही हैं हनुमान चालीसा के रचयिता
ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने ही हनुमान चालीसा को भी लिखा था। वहीं इसके रचयिता हैं। तुलसीदास का नाम तो जग जाहिर है। सभी ने उनके नाम के बारे में पढा और सुना होगा। लेकिन उन्होंने किन हालातों में ये हनुमान चालीसा लिखी, इसे लेकर बहुत सी बाते कही जाती हैं।
यह भी पढ़ें: जरूरी जानकारी: क्या दिमाग पर भी पड़ रहा कोरोना वायरस का असर
कहां से मिली प्रेरणा?
ऐसा कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास को मुगल सम्राट अकबर की कैद से हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मिली थी। कहा जाता है कि एक बार गोस्वामी तुलसीदास को सम्राट अकबर ने अपने शाही दरबार में बुलाया था।
वहां पर तुलसीदास की मुलाकात अब्दुल रहीम खान-ए-खाना और टोडर मल से हुई। उन्होंने काफी देर तक तुलसीदास से बातचीत की। दरअसल, वह सम्राट अकबर की तारीफ में कुछ ग्रंथ लिखवाना चाहते थे। लेकिन तुलसीदास ने उन्हें इनकार कर दिया। उनके इनकार करने पर अकबर द्वारा उन्हें कैदी बना लिया गया था।
इस तरह हुए थे रिहा
ऐसा कहा जाता है कि अकबर द्वारा उन्हें कैदी बनाए जाने के बाद बहुत ही अजीब तरीके से उनकी रिहाई हुई। बनारस के पंडित इससे मिलती-जुलती एक और कहानी सुनाते हैं। इसके अनुसार, एक बार सम्राट अकबर ने तुलसीदास को दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। इसका जवाब देते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि वो सिर्फ भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुन अकबर ने तुलसीदास को कैदी बना लिया था।
यह भी पढ़ें: सावधान: BSE और NSE ने इन शेयरों में निवेश न करने की दी नसीहत
किंवदंती के मुताबिक, कारावास में ही तुलसीदास ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी थी। उसी दौरान फतेहपुर सीकरी के कारागार के आसपास ढे़र सारे बंदर आकर इकट्ठा हो गए। उन्होंने बड़ा उत्पात मचाया, बहुत ही नुकसान किया। जिसके बाद मंत्रियों की सलाह पर बादशाह अकबर ने तुलसीदास को कारागार से रिहा कर दिया।
हिंदी के कुछ अन्य विद्वानों का कहना है कि हनुमान चालीसा किसी और तुलसीदास की कृति है।
दुनियाभर में सबसे ज्यादा बार पढ़ी जाने वाली पुस्तिका
हनुमान चालीसा को दुनियाभर में सबसे ज्यादा बार पढ़ी जाने वाली पुस्तिका है। इसमें हनुमान के गुणों एवं कामों का अवधी भाषा में बखान किया गया है।
यह भी पढ़ें: लॉकडाउन से सब परेशान, ये कौन जो 1500 किसी से आ गया लखनऊ
हनुमान चालीसा की कुछ और बातें
1- हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहे से होती जिनका पहला शब्द है, 'श्रीगुरु', इसमें श्री का संदर्भ सीता माता से है। जिन्हें भगवान हनुमान अपना गुरु मानते थे।
2- हनुमान चालीसा के पहले 10 चौपाई में उनके शक्ति और ज्ञान के बारे में बताया गया है। फिर 11 से 20 तक के चौपाई में उनके प्रभु राम के बारे में बताया गया है। उसके बाद 11 से 15 तक में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के बारे में कहा गया है। आखिर की चौपाई में तुलसीदास ने हनुमान जी की कृपा के बारे में बखान किया है।
3- अंग्रेजी के अलावा भारत की सभी भाषाओं में हनुमान चालीसा का अनुवाद किया जा चुका है।
यह भी पढ़ें: मनोनयन से बचेगी उद्धव की कुर्सी, कैबिनेट ने राज्यपाल के पास भेजा प्रस्ताव
हनुमान चालीसा
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निजमनु मुकुरु सुधारि
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुँचित केसा
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेउ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन
बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचन्द्र के काज सँवारे
लाय सजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तें काँपै
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरन्तर हनुमत बीरा
संकट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै
सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा
तुह्मरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई
और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महा सुख होई
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप
यह भी पढ़ें: अरे ये क्या, लॉकडाउन में विधायक जी अपने सिर पर दो बोरी आटा लेकर जा रहे हैं!