×

भयानक खतरा निकट हैः यदि ये नहीं रहा, तो कोई भी नहीं बचेगा

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि पर्यावरण में बढ़ते निरन्तर प्रदूषण को तेजी से कम करने का प्रयास नहीं किया गया तो 21वीं सदी के अन्दर ही महाप्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। और युद्ध यदि बढ़ते गए तो पर्यावरण को कोई नहीं बचा सकता है।

Shreya
Published on: 6 Nov 2020 12:10 PM IST
भयानक खतरा निकट हैः यदि ये नहीं रहा, तो कोई भी नहीं बचेगा
X
भयानक खतरा निकट हैः यदि ये नहीं रहा, तो कोई भी नहीं बचेगा

रामकृष्ण वाजपेयी

वर्ल्ड डे टू प्रोटेक्ट द एनवायरनमेंट इन वॉर’: क्या आप जानते हैं। आज का दिन यानी छह नवंबर विश्वस्तर पर “इंटरनेशनल डे फॉर प्रीवेंटिंग एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ़ एनवायरमेंट इन वार एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट” अर्थात युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण की रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कैसे हुई शुरुआत

संयुक्त राष्ट्र ने 5 नवम्बर 2001 को 6 नवम्बर को ‘इंटरनेशनल डे फॉर प्रीवेंटिंग एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ़ एनवायरमेंट इन वार एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य युद्ध में होने वाली पर्यावरण क्षति के संरक्षण प्रति सदस्य राष्ट्रों को जागरूक करना है।

विश्व के तमाम देशों के बीच आज भी या तो युद्ध चल रहा है या फिर युद्ध जैसे हालात चल रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि पर्यावरण में बढ़ते निरन्तर प्रदूषण को तेजी से कम करने का प्रयास नहीं किया गया तो 21वीं सदी के अन्दर ही महाप्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। और युद्ध यदि बढ़ते गए तो पर्यावरण को कोई नहीं बचा सकता है। फिर ये विनाश और जल्दी होगा।

यह भी पढ़ें: अर्नब की गिरफ्तारी का विरोध, जमकर हुआ प्रदर्शन, CM का फूंका पुतला

pollution (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

विनाश के कगार पर मानवता

अपरम्परागत एवं घातक हथियारों के प्रयोग ने न केवल मानवता को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा किया है बल्कि इनके प्रभाव से प्राकृतिक पर्यावरण का बिगड़ता सन्तुलन भी मानवता को महाविनाश के गर्त में गिरने के लिये मजबूर कर रहा है। जिसे रोकने के लिये अपरम्परागत हथियारों के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों को रोकना आज की आवश्यकता है।

पर्यावरण प्रकृति का अनुशासन है, जब यह अनुशासन बिगड़ता है, तो प्राकृतिक सन्तुलन भी असन्तुलित हो जाता है, जिससे प्रदूषण पनपने के अवसर अधिक बढ़ जाते हैं।

नाभिकीय हथियारों के इस्तेमाल का क्या होगा असर

वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं, जो यह बताते हैं कि यदि बड़े पैमाने पर नाभिकीय हथियारों का इस्तेमाल हुआ, तो उससे विश्व का पर्यावरण बुरी तरह से प्रभावित ही नहीं होगा बल्कि पूरी तरह से लड़खड़ा जाएगा। सम्भावित प्रभाव होंगे जैसे- धूल, धुआँ एवं कालिख हो जाने के कारण सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचने वाली धूप व गर्मी में कमी आ जाएगी। आकस्मिक ऐसे परिवर्तन देखने को मिलेंगे जिससे मानव सभ्यता के साथ-साथ प्रकृति को भारी आघात लगेगा, जिससे जीव-जन्तुओं के साथ-साथ प्राकृतिक सम्पदा का सर्वस्व स्वाहा हो जाएगा।

environment (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह भी पढ़ें: बेबी प्लान से पहले हर कपल को कर लेनी चाहिए ये तैयारी, ऐसा करना न भूलें

प्रायः युद्ध क्षति को मृत सैनिकों और नागरिकों की संख्या, नष्ट हुई जीविका और शहरों की संख्या तक गिना जाता है. परन्तु युद्ध के दौरान कई बार सामरिक लाभ के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुँए के जल, फसलों, जंगलों, मृदा की उर्वरता को क्षति पहुंचाई जाती है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार पिछले 60 वर्षों में 40 प्रतिशत आंतरिक विद्रोह के कारण प्राकृतिक संसाधनों का भारी नुकसान हुआ है। इसके अतिरिक्त इन विद्रोहों में लकड़ी, हीरे, सोने और तेल जैसे उच्च मूल्य के संसाधन और उर्वरक एवं जल जैसे सीमित संसाधनों ने भी भारी क्षति का सामना किया है।

यह भी पढ़ें: दिल्ली की हवा हुई जहरीली: लोगों की खतरे में जान, प्रदूषण ने तोड़े सारे रिकार्ड

खतरे में पड़ जाता है मानव जाति का अस्तित्व

युद्ध की स्थिति में किसी क्षेत्र विशेष का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता है तो उसके व्यापक प्रभाव इतने अधिक होते हैं कि समूची मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।

आनुवांशिक प्रभावः किसी भी जीव की शारीरिक और शरीर-तंत्र की विशिष्टताओं को निर्धारित करते हैं। पैतृक असमान्यताएँ ही आनुवांशिक रोग के रूप में माता-पिता से बच्चों में स्थानान्तरित हो जाती हैं। एलर्जी, ब्लडप्रेशर, मधुमेह (डायबिटीज) आदि पूर्ण रूप से जीन सम्बन्धी नहीं हैं। फिर भी इन जीनाें की वातावरण से अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप ये बीमारियाँ होती हैं। पोषण, तनाव, संवेगों, हार्मोन, औषध (डंग) और अन्य पर्यावरणीय व्यवहार के कारण ये आगे प्रवर्तित हो जाती हैं।

यह भी पढ़ें: Bigg Boss 14: रुबीना पर आई बड़ी खबर, खतरे में ये तीन कंटेस्टेंट

व्यावहारिक प्रभावः मद्यव्यसनिता, धूम्रपान, दवाइयाँ (औषध) का उपयोग, तम्बाकू की लत और भोजन की अनियमित आदतों के कारण अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।

पर्यावरणीय प्रभावः पर्यावरण के अनेक घटक हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव छोड़ते हैं। इनको भौतिक, रासायनिक, जैविक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसलिए पर्यावरण से ही मानव जीवन है। हमें ये ध्यान में रखकर पर्यावरण को बचाना होगा।

यह भी पढ़ें: KBC की पहली करोड़पति: 20 साल से कर रही थी तैयारी, ऐसी है नाजिया की कहानी

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें



Shreya

Shreya

Next Story